बांग्लादेश की सेना में चरमपंथियों की घुसपैठ
२० जनवरी २०१२बांग्लादेश की सेना ने गुरुवार को सरकार गिराने के षड़यंत्र को विफल करने का दावा करते हुए कहा कि उसने रिटायर्ड और सेवारत सेनाधिकारियों के विद्रोह के प्रयास को विफल कर दिया है. खुफिया एजेंसियों के अनुसार षड़यंत्रकारी मुस्लिम बहुमत वाले देश में शरीया कानून लागू करना चाहते थे. सेना ने कहा है कि विद्रोह के प्रयास पर प्रभावी ढंग से काबू पा लिया गया है और अब अपराधियों को सजा देने की प्रक्रिया चल रही है.
सेना में चरमपंथी
इंटेलिजेंस अधिकारियों का कहना है कि हाल के वर्षों में सैकड़ों इस्लामी कट्टरपंथी अधिकारियों और जवानों की सेना में भर्ती की गई है और उनमें से बहुत से मध्यवर्ती रैंकों में पहुंच गए हैं. एक सूत्र के अनुसार प्रतिबंधित हिजबुत तहरीर ने सेना में एक पर्चा बांटा था जिसमें कहा गया था कि सेना के मध्य स्तर के अधिकारी जल्द ही बदलाव ला रहे हैं.
सेना बांग्लादेश का प्रमुख धर्मनिरपेक्ष संस्थान है. उसका कहना है कि तख्तापलट की योजना का दिसंबर में भंडाफोड़ हुआ और उसमें कुछ अनिवासी बांग्लादेशियों के अलावा 16 सेवारत या रिटायर्ड सेनाधिकारी और प्रतिबंधित इस्लामी कट्टरपंथी संगठन हिजबुल तहरीर शामिल हैं. देश के सबसे बड़े कैंटोनमेंट के कमान संभालने वाले एक मेजर जनरल को ढाका वापस बुला लिया गया है जबकि एक कर्नल सहित दो पूर्व अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया है.
सैनिक विद्रोह का प्रयास ऐसे समय में हुआ है जब जमाते इस्लामी पार्टी के पूर्व प्रमुख गोलाम आजम सहित दूसरे कट्टरपंथी नेताओं के खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ है. जमात पर 1971 की आजादी के लड़ाई के समय पाकिस्तान से आजादी का विरोध करने और युद्ध अपराध करने के आरोप हैं. वह देश की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी है और देश तथा सेना में उसके हजारों उग्र समर्थक हैं.
धर्मनिरपेक्ष सेना
ढाका विश्वविद्यालय में सुरक्षा मामलों के प्रोफेसर दिलवार होसैन कहते हैं, "मैं इसलिए चिंतित हूं कि एक अनुशासित और धर्मनिरपेक्ष सेना में कट्टरपंथी और चरमपंथी विचार अप्रत्याशित हैं." उनका कहना है कि इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
बांग्लादेश में 1971 में पाकिस्तान से आजादी पाने के बाद से राजनीतिक हिंसा, सैनिक तख्तापलट का इतिहास रहा है. देश के जनक और पहले राष्ट्रपति तथा वर्तमान प्रधानमंत्री के पिता मुजीबुर रहमान की 1975 में एक सैनिक तख्तापलट के दौरान हत्या कर दी गई थी. वहां 1990 तक सत्ता पर सेनाधिकारियों का कब्जा रहा है.
1991 में लोकतंत्र बहाल हो गया लेकिन शेख हसीना और उनकी प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया के समर्थकों के बीच संघर्ष के कारण 2007 में सेना को फिर से हस्तक्षेप करना पड़ा. हालांकि सैनिक शासन ने इस्लामी कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए संविधान में अल्लाह में पूर्ण विश्वास को शामिल कर इस्लाम को राजकीय धर्म बना दिया है, लेकिन सेना के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के साथ कोई छेड़ छाड़ नहीं की गई है.
सरकार को पलटने के षड़यंत्र का पता चलने के बाद कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने उसकी गंभीरता पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि सेना के निशाने पर अपनी कतारों में इस्लामी गुट हैं. बांग्लादेशी सेना के विशेषज्ञ और सिंगापुर राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी के सिनीयर रिसर्चर अताउर रहमान कहते हैं, "ऐसा लगता है कि यह सैनिक विद्रोह नहीं था, बल्कि विरोध और अव्यवस्था थी, सेना अनुशासित फोर्स होने के कारण जिस पर शुरू में ही काबू पाने की कोशिश कर रही है." रहमान का कहना है कि विफल तख्तापलट के बारे में खुली बातचीत कर सेना यह संदेश देना चाहती है कि वह धार्मिक चरमपंथ की ओर कोई बदलाव बर्दाश्त नहीं करेगी.
इस्लामी गुटों से खतरा
2009 में भारी बहुमत से सत्ता में आने वाली शेख हसीना की सरकार को इस्लामी गुटों की ओर से नियमित खतरा रहा है. 2009 में ही अर्द्धसैनिक बलों का विद्रोह ढाका से शुरू होकर 15 अन्य शहरों में फैल गया था. उसमें 51 सेनाधिकारियों सहित 70 लोग मारे गए थे. विद्रोह को दो दिन बाद दबा दिया गया लेकिन उसके बाद से और विद्रोह की आशंका बनी हुई है.
बांग्लादेश के संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को मजबूत बनाने के प्रयासों का पिछले साल इस्लामी गुटों ने डटकर विरोध किया था. उनकी सरकार ने 1971के स्वतंत्रता संघर्ष से संबंधित युद्ध अपराध मुकदमे भी शुरू किए हैं, जिसका प्रमुख निशाना देश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी के नेता रहे हैं. नॉर्थ साउथ यूनीवर्सिटी के प्रोफेसर अब्दुर रॉब कहते हैं, "कुछ इस्लामी कट्टरपंथी निश्चित तौर पर इन मुकदमों से खुश नहीं हैं."
विफल षड़यंत्र की खबर सार्वजनिक किए जाने के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग ने कहा है कि षड़यंत्र में शामिल लोगों को कठोर सजा दी जाएगी. बांग्लादेश की सेना संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में सबसे ज्यादा जवानों को भेजती है. सुरक्षा विश्लेषकों के अनुसार यह कार्यक्रम इतना फायदेमंद है कि सेना अधिकारियों की राजनीतिक सत्ता हथियाने में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है.
रिपोर्ट: एएफपी, रॉयटर्स/महेश झा
संपादन: आभा एम