बाजार तो खुल गया लेकिन क्या आएगा पैसा
१५ जनवरी २०१२दिल्ली के व्यस्त बाजार कनॉट प्लेस में संजय बहल के दफ्तर की घंटियां लगातार बज रही हैं. वित्तीय सेवा देने वाली कंपनी के प्रबंध निदेशक संजय पिछले दो दशकों से शेयरों के कारोबार में हैं. संजय और उनकी टीम के पास पिछले कुछ दिनों से लगातार विदेशी निवेशकों की तरफ से भारतीय शेयरों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए फोन आ रहे हैं.
संजय ने बताया, "अब तक विदेशी संस्थागत निवेशकों को ही म्युचुअल फंड में निवेश करने की अनुमति थी. पर अब इसे खोले जाने से बाजार का उतार चढ़ाव घटेगा और लंबे समय में इसका फायदा दिखेगा." संजय बहल के पास मध्यपूर्व के देशों और कुछ यूरोपीय देशों से जानकारी के लिए फोन आ रहे हैं.
नई नीति सिर्फ क्वालिफाइड विदेशी निवेशकों पर लागू होगी जिनमें व्यक्तिगत निवेशक, संस्थाएं या समूह, विदेशों में रहने वाले लोग शामिल हैं जो फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के हिसाब से है. यह संस्था राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नीतियों को इस तरह से बढ़ावा देती है कि आतंकवादियों के लिए पैसों के लेन देन और हवाला कारोबार को रोका जा सके.
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कठिन समय
भारत का शेयर बाजार हाल के दिनों में कठिन रास्तों से गुजर रहा है. यूरोपीय संघ का कर्ज संकट और मंद पड़ती पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएं भारत में कम होते निवेश के लिए जिम्मेदार हैं. इनके अलावा कुछ घरेलू कारणों ने भी खेल बिगाड़ा है. ऊंची ब्याज दर, 9 फीसदी के आसपास रहती महंगाई की दर और डॉलर के मुकाबले रूपये की गिरती दर ने विदेशी फंडों के सोते को सुखा दिया है. इसके साथ ही संस्थागत निवेशकों जैसे कि पेंशन और निवेश फंडों ने आसानी से अपने शेयरों को बेच कर भारत के शेयर बाजार को और नीचे पहुंचा दिया है. आर्थिक जानकार एमके वेणु कहते हैं, "मुमकिन है कि सरकार के इस कदम से विदेशी पुंजी के भारतीय शेयरों तक पहुंचने में तुरंत तेजी न आए क्योंकि भारतीय शेयर फिलहाल अच्छा नहीं कर रहे और उत्साह हल्का पड़ा है. लेकिन थोड़े या फिर कुछ ज्यादा समय के बाद यह फायदा देना शुरू कर देगा."
क्या विदेशी खरीदेंगे?
2011 में भारतीय बाजार से विदेशी निवेश बड़ी तेजी से गायब हुआ. पिछले साल कुल 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर की रकम निवेशकों ने बाहर निकाल ली जबकि 2010 में रिकार्ड 29 अरब और 2009 में 19 अरब अमेरिकी डॉलर की पूंजी विदेश से भारत के शेयर बाजार में आई थी. भारत और अमेरिका के बीच कारोबारी संबंधों को मजबूत करने के लिए बनाए गए अलायंस फॉर यूएस इंडिया बिजनेस(एयूएसआईबी) ने भारत सरकार के इस कदम का स्वागत किया है. एयूएसआईबी के अध्यक्ष संजय पुरी ने कहा, "भारत को विदेशी निवेश की तुरंत जरूरत है और इसका एक तरीका व्यक्तिगत निवेश है. भारतीय अर्थव्यवस्था में लोगों की बहुत दिलचस्पी है और विदेशी लोग भारत में निवेश करना चाहते हैं. हमें खुशी है कि इस बदलाव से हम लोगों की रुचि का फायदा ले सकेंगे."
भारत के वित्त मंत्रालय में पुंजी बाजार विभाग के निदेशक सीएस महापात्रा ने डॉयचे वेले से कहा कि शेयर बाजार की हालत से फिलहाल निराश होने की जरूरत नहीं है, भले ही सेंसेक्स 2011 में करीब 25 फीसदी नीचे चला गया है. उन्होने कहा, "हमें संतुष्ट नहीं होना चाहिए लेकिन साथ ही दूसरे दौर के सुधारों को लागू करने में हिचकना भी नहीं चाहिए."
और लचीली अर्थव्यवस्था की जरूरत
शेयर बाजार के लिए मुश्किल साल होने के बावजूद यह देखना सकारात्मक है कि भारत सरकार इस तरह के कदम उठा रही है लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो मानते हैं कि विदेशी लोगों का निवेश भारत के विकास पर निर्भर करेगा. जानकारों का मनना है कि सालाना विकास दर ने रफ्तार पकड़ी हुई है और औद्योगिक विकास बेहतर हो रहा है. इसके साथ ही एक्सचेंज की दर के उतार चढ़ाव भी संभल रहे हैं, यह सब जल्दी ही कुछ अच्छी खबरें लाएंगे.
दुनिया भर के बैंकों की तुलना में भारत के बैंक औसत रूप से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं और इस तिमाही में भी इसके बेहतर रहने की ही संभावना है. बाजार खोलने का क्या असर हो रहा है इस पर भारत के साथ दुनिया भर की नजरें टिकी हैं.
रिपोर्टः मुरली कृष्णन/एन रंजन
संपादनः एम गोपालाकृष्णन