बातचीत की मेज पर अमेरिका और उत्तर कोरिया
२३ फ़रवरी २०१२अमेरिका, उत्तर कोरिया को यूरेनियम संवर्धन बंद करने के बदले खाना देने के लिए समझैता करने की कोशिश में है. उत्तर कोरियाई शासक किम जोंग इल की पिछले साल 17 दिसंबर को मौत के बाद हालात बदलने की बात कही जा रही है. किम की मौत के बाद इतनी जल्दी बातचीत की मेज पर लौटने के लिए रजामंद हो कर संबंध बढ़ाने के संकेत मिल रहे हैं. देश की सत्ता अब पूर्व शासक के युवा बेटे और उनके सलाहकारों के हाथ में है.
हालांकि लंबे समय से परमाणु हथियार विकसित करने में जुटे और परमाणु परीक्षण कर चुके देश की खुद को पत्थरों के दीवारों में कैद रखने की नीति नई सरकार के भीतर भी असहमतियों का तूफान उठा सकती है.
उत्तर कोरिया की सरकार के लिए के कामकाज और नीतियों को पहले से आकलन कर पाना बेहद मुश्किल है. ऐसे में अब विश्लेषकों और विदेशी सरकारों की नजरें गुरुवार को बीजिंग में होने वाली बातचीत पर टिकी हैं. दक्षिण कोरिया की क्युंगनाम यूनिवर्सिटी में उत्तर कोरिया के जानकार किम क्वेन सिक कहते हैं, "उत्तर कोरिया का बातचीत की मेज पर आने का मतलब है कि देश में आंतरिक रूप से स्थिरता है. लेकिन हम उत्तर कोरिया की स्थिरता को इस बात से तुरंत नहीं जोड़ सकते कि बातचीत कितनी सफल रहेगी."
मुश्किल समय
उत्तर कोरिया के नए नेता किम जोंग उन के लिए यह एक संवेदनशील समय है. लंबे समय से भोजन की कमी से जूझ रहे देश के आगे फिलहाल इतिहास की कुछ बेहद अहम तारीखें आ रही हैं. 15 अप्रैल को उत्तर कोरिया के संस्थापक किम इल सुंग की जन्मशताब्दी है. युवा शासक ने शपथ ली है कि यह साल उनके देश को उन्नति के मार्ग पर ले जाएगा. उत्तर कोरिया लंबे समय से पड़ोसियों और अमेरिका से कटा हुआ है. ये देश उसके परमाणु कार्यक्रम को हमेशा के लिए बंद कराना चाहते हैं.
बीजिंग में हो रही बातचीत जुलाई के बाद तीसरे दौर की है इसका मकसद छह देशों के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण पर चर्चा करना है. इन देशों में चीन, जापान, रूस और दक्षिण कोरिया भी शामिल हैं. उत्तर कोरिया 2009 में इस बातचीत से बाहर हो गया और दूसरा परमाणु विस्फोट किया. हालांकि दिसंबर से ही अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच परमाणु समझौते पर बातचीत की उम्मीदें तेज हो रही हैं.
मदद की दरकार
उस वक्त एसोसिएटेड प्रेस ने खबर दी है कि अमेरिका जल्दी ही उत्तर कोरिया को भोजन के लिए एक बड़ी सहायता का एलान करने वाला है. उसके कुछ दिन बाद यूरेनियम संवर्धन को रोकने पर रजामंद होने की खबरें भी आईं.
छह देशों के बीच बातचीत एक बार शुरू हो गई तो उसका मकसद उत्तर कोरिया के बाकी बचे परमाणु कार्यक्रमों को बंद कराना होगा, जिसके बदले में उसे बड़ी सहायताएं मिलेंगी. अगर उत्तर कोरिया संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षकों को यूरेनियम संवर्धन रोके जाने की निगरानी करने की इजाजत दे देता है यह बड़ी सफलता होगी.
क्या फिर पलटेगा उत्तर कोरिया
जानकारों को आशंका है कि वो पिछले मौकों की तरह इस बार भी पलट सकता है. ऐसी स्थिति में वह यूरेनियम संवर्धन का ज्यादा फायदा उठाने के लिए भी इस्तेमाल कर सकता है. जानकार कहते हैं कि बिना निगरानी के यूरेनियम संवर्धन पर रोक ऐसी बात है जैसे कि कोई एक ही घोड़े को बार बार बेचे.
उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर दुनिया की चिंता नवंबर 2010 के बाद बढ़ गई जब उसने यूरेनियम संवर्धन के नए प्लांट को दुनिया के सामने पेश किया. इसके दम पर वह परमाणु हथियारों की खेप तैयार कर सकता है. इसके अलावा प्लूटोनियम आधारित परमाणु कार्यक्रम उसके पास पहले से ही मौजूद है.
शी युआनहुआ फुडान यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर कोरियन स्टडीज के निदेशक हैं. युआनहुआ का कहना है, "उत्तर कोरिया के नए शासन का दावा है कि वो किम जोंग इल की पुरानी नीतियों पर कायम रहेंगे. अगर उत्तर कोरियाई जनता को लगता है कि अभी किम जोंग इल का शरीर ठंडा भी नहीं पड़ा और नीतियों में बदलाव शुरू हो गया तो आंतरिक कलह छिड़ जाएगा."
कोरिया कोरिया में कलह
विभाजित कोरियाई प्रायद्वीप 2010 के खूनखराबे से अभी भी तनाव में है. तब उत्तर कोरिया की गोलाबारी में चार दक्षिण कोरियाई मारे गए इसके अलावा 46 दक्षिण कोरियाई नाविकों को डुबोने वाले जहाज हादसे के पीछे भी उत्तर कोरिया पर ही आरोप हैं. उत्तर कोरिया के पूर्व शासक किम जोंग इल की मौत के बाद लोग देश में अस्थिरता की आशंकाएं पहले से ही जता रहे हैं.
पूर्वी एशिया मामलों के अमेरिकी विदेश मंत्रालय के पूर्व अधिकारी एवान्स रेवेरे का कहना है, किम की मौत के बाद ज्यादा संकेत यथास्थिति के बने रहने के हैं न कि बदलाव के. हालांकि इसके बावजूद उनका कहना है कि उत्तर कोरिया अगर अमेरिका की मांगें मान लेते हा ते उसके बदले में उसे 240,000 टन अनाज की पेशकश की जाएगी जो उसकी जरूरतों के हिसाब से काफी है. अमेरिका का यह भी कहना है कि उत्तर कोरिया और अमेरिका के सहयोगी दक्षिण कोरिया के बाच बर्फ का पिघलना बहुत जरूरी है जिसके कि कूटनीति अपने पांव बढ़ा सके. रेवेरे के मुताबिक अमेरिका की उम्मीदें बहुत ज्यादा नहीं बढ़ी हैं लेकिन ऐसी खबरें हैं कि बातचीत की मेज पर आने के लिए उत्तर कोरिया ने ही आग्रह किया है यह एक सकारात्मक संकेत है.
रिपोर्टः एपी/एन रंजन
संपादनः ए जमाल