बिगड़ते पर्यावरण के प्रतीक बनते जलस्रोत
१७ नवम्बर २००९1960 के दशक में जनसंख्या वृद्धि के कारण बड़े पैमाने पर शुरू हुई सिंचाई परियोजनाओ के कारण अराल सागर में गिरने वाली नदियों आमू दरिया और साइर दरिया के जल को जल प्रबंधन नीति के अंतर्गत खेतों में सिंचाई के लिए मोड़ दिया गया. इसके फलस्वरूप आने वाले 40 सालों में अराल सागर का 90 प्रतिशत जल ख़त्म हो गया और 74 प्रतिशत से ज़्यादा सतह सिकुड़ गई.
1960 के बाद के दशकों में सूखे के कारण और पानी मोड़ने के लिए बनाई गई नहरों के कुप्रबंधन के चलते अराल सागर की तट रेखा में भी काफी कमी देखी गई, जहां बड़ी नौकाएं चलती थीं, वहां रेगिस्तान नज़र आने लगा था. सूखी रेत में खड़ी नौकाओं और सिकुड़ती तट रेखा की तस्वीरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छपने के बाद वैज्ञानिकों, राजनीतिज्ञों, पर्यावरण संस्थाओं और कार्यकर्ताओं का ध्यान इस ओर गया पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
जिस जगह कभी समंदर की लहरें हिलोरे मार रही थीं, वहां आज धूल उड़ रही है. इतना ही नहीं, सिकुड़ते समुद्र और सूखती झीलों से क्षेत्र की स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यावरण तबाह हो गया और आसपास के पारिस्थितिक तंत्र पर भी गंभीर असर हुआ है.
सूखते तलछट से निकलने वाली खारी धूल 300 वर्गकिमी तक फसलों को क्षतिग्रस्त कर रही है. यह धूल कीटनाशकों के भारी प्रयोग के बाद इतनी नुक़सानदेह हो चुकी है कि क्षेत्र के पशुओं व लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डाल रही है. सागर के आसपास के क्षेत्रों में जल की गुणवत्ता इतनी घटी है कि विषेशज्ञों ने स्थिति का वर्णन 'आपदा', 'तबाही' और 'त्रासदी' के रूप में किया है.
ग्रेट साल्क लेक को भी खतरा
कमोबेश कुछ ऐसा ही हाल मिसिसिपी स्थित 'ग्रेट साल्ट लेक' का भी है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में पश्चिम की सबसे बड़ी झील है और दुनिया में नमकीन पानी की चौथी सबसे बड़ी झील है. मनुष्य की एक अजीब और ख़तरनाक आदत रही है कि वह तात्कालिक ख़तरे को ले कर अत्यंत सजग हो जाता है, पर अक्सर दूरगामी संकट को भांपने में नाकाम रहता है. जन साधारण को इन आसन्न कठिनाइयों को सरल और स्पष्ट रूप से समझा कर हर स्तर पर प्रयास करने होंगे.
प्रवासी जलपक्षियों की शरणस्थली और स्थानीय तटीय पक्षियों की विशाल संख्या के लिए मशहूर यह झील आर्थिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है. नमक उत्पादन से लेकर झींगा उत्पादक क्षेत्र के कारण यहां के स्थानीय निवासियों के लिए यह झील रोजगार का एक अत्यंत महत्वपूर्ण साधन है.
पारिस्थितिकी, जलवायु और जल विशेषताओं में अराल सागर से विशेष रूप से उल्लेखनीय समानताएं होने से ग्रेट साल्ट लेक को भी जल प्रबंधन, जनसंख्या वृद्धि और जलवायु परिवर्तन की संभावना जैसी उन्ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जो अराल सागर के विनाश का कारण बनी.
चिल्का को लेकर चिंतन जरूरी
कुछ ऐसे ही ख़तरे भारत की सबसे बड़ी झील 'चिल्का' पर भी मंडरा रहे हैं. स्थानीय आबादी के पिछड़े होने की वजह से इस झील में उपलब्ध संसाधनों का जरूरत से ज्यादा दोहन किया जा रहा है. झील का समुचित प्रबंधन न हो पाने से इस झील के पारिस्थितिक तंत्र पर विपरीत असर पड़ रहा है, जिस पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता जाहिर की जा चुकी है.
हालांकि इसकी तुलना अराल सागर को हुए पर्यावरण क्षरण से नहीं की जा सकती, पर भविष्य में जल प्रबंधन की चुनौतियों, और अवश्यंभावी खतरों को कम आंकने की प्रवृत्ति से आने वाले कुछ सालों में यह अनुमान सच साबित हो सकता है. पर्यावरण क्षरण के चलते अराल सागर बीसवीं सदी में वैश्विक जल समस्याओं का एक प्रतीक बन गया है, जल संसाधनों की मांग में हुई वृद्धि का सामना अब वैश्विक स्तर पर किया जा रहा है.
अत्यधिक जटिल खतरों का विश्लेषण करने में जितने प्रयास होने चाहिए, उतने गंभीर प्रयासों के लिए पहले जन साधारण को इन आसन्न कठिनाइयों को सरल और स्पष्ट रूप से समझा कर हर स्तर पर प्रयास करने होंगे.