बृहस्पति की राह पर निकलेगा जूनो
५ अगस्त २०११मानवरहित इस यान को फ्लोरिडा के केप केनेवेरल एयर फोर्स स्टेशन से स्थानीय समय के अनुसार सुबह 11.34 बजे एटलस4 रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में छोड़ा जाएगा. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने बताया कि प्रक्षेपण के एक घंटे के भीतर ही जूनो रॉकेट से अलग हो जाएगा. उस वक्त बृहस्पति पांच साल और 174 करोड़ मील (280 करोड़ किलोमीटर) दूर होगा.
जुलाई 2016 में अपनी वापसी पर जूनो बृहस्पति की ध्रुवीय कक्षा में परिक्रमा करेगा. इस ग्रह का द्रव्यमान पूरे सौरमंडल के सभी ग्रहों के द्रव्यमान के दोगुने से भी ज्यादा है और इसे सूर्य के आसपास आकार लेने वाला पहला ग्रह भी माना जाता है.
मिलेंगे कई रहस्य
इस मिशन का मकसद एक साल में 30 परिक्रमाएं करना है. जूनो नासा के बाकी अंतरिक्ष यानों के मुकाबले बृहस्पति के सबसे ज्यादा नजदीक होगा. टेक्सास के सेंट एंटोनियो में जूनो मिशन से जुड़े वैज्ञानिक स्कॉट बोल्टन का कहना है कि यह इस ग्रह की ध्रुवीय कक्षा की परिक्रमा की पहली कोशिश है. वह बताते हैं, "अगर हम वापस पुराने समय में जाना चाहते हैं और यह समझना चाहते हैं कि हम कहां से आए हैं और कैसे ग्रह बने तो बृहस्पति के पास इसका रहस्य है."
नासा ने 1989 में बृहस्पति की छानबीन करने गैलिलियो भेजा था जो 1995 में उसकी कक्षा में प्रवेश कर गया लेकिन 2003 में वह इस ग्रह से टकरा कर नष्ट हो गया. वोयागर 1 और 2, उलीसेस और न्यू होरिजंस जैसे नासा के दूसरे अंतरिक्ष यान भी दूरी के अनुसार सूर्य से पांचवें ग्रह बृहस्पति के करीब से होकर आए.
बृहस्पति के नजदीक पहुंचने पर जूनो कई तरह के उपकरणों का इस्तेमाल करेगा जिनमें से कई यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के साझीदार इटली, बेल्जियम और फ्रांस ने मुहैया कराए हैं. इस तरह ग्रह से जुड़ी कई अहम जानकारियों मिलेंगी.
सदियों लंबा तूफान
बोल्टन ने बताया कि दो मुख्य प्रयोग इस बात को परखेंगे कि बृहस्पति पर कितना पानी है और क्या उसके केंद्र में भारी तत्व हैं या फिर क्या वहां पर सिर्फ गैस ही गैस है. वैज्ञानिक बृहस्पति के चुंबकीय क्षेत्रों और ग्रेट रेड स्पॉट के बारे में भी अहम जानकारियां मिलने की उम्मीद कर रहे हैं.
ग्रेड रेड स्पॉट बृहस्पति की भूमध्यीय रेखा के 22 डिग्री दक्षिण में लगातार चलने वाले चक्रवात विरोधी तूफान है जो कम से कम 181 साल और ज्यादा से ज्यादा 346 साल चला. यह तूफान इतना बड़ा होता है कि दूरबीन के जरिए पृथ्वी से देखा जा सकता है. बोल्टन का कहना है, "एक बुनियादी सवाल तो यही है कि रेड स्पॉट की जड़ें कितनी गहरी हैं. कैसे यह इतने सालों से बना हुआ है."
जब 2003 में जूनो की योजना बन रही थी तो नासा ने कुछ समय के लिए इसमें परमाणु ईंधन इस्तेमाल करने पर विचार किया लेकिन जल्द ही इंजीनियरों ने फैसला किया कि इसे सौर ऊर्जा से चलाना आसान और कम जोखिम भरा होगा.
मंगल पर फिर पानी मिला
इस बीच नासा के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर पानी की मौजूदगी के नए प्रमाण खोजे हैं जिससे लाल ग्रह पर जीवन की संभावानओं को बल मिलता है. वैसे नासा को मंगल पर पानी होने के सबूत एक दशक पहले ही मिल गए थे, लेकिन उस वक्त ऐसे संकेत मिले कि यह पानी ज्यादातर जमा हुआ और ध्रुवों पर इकट्ठा होगा.
इस ग्रह की टोह ले रहे ऑर्बिटर ने हाल में नासा को जो तस्वीरों भेजी हैं उनसे गहरे ऊंगली जैसे निशान दिखते हैं जो मार्टियन ढलानों से गर्मी के मौसम में बसंत के दौरान निकलते हैं और सर्दियों में गायब हो जाते हैं. एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में भूभैतिकीशास्त्री फिलिप क्रिस्टिनसेन का कहना है, "यह हमारे पास अब तक का सबसे अच्छा प्रमाण है कि मंगल पर अब भी तरल अवस्था में पानी का निर्माण हो रही है."
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः ए जमाल