बॉलीवुड में हम दूसरे दर्जे के नागरिक: मनोज
२७ नवम्बर २०११ईमानदारी के लिए सिस्टम से लड़ता शूल का जिद्दी पुलिस इंस्पेक्टर खुद को बॉलीवुड की आम धारा से कटा कटा महसूस करता है. इसमें शक नहीं है कि मनोज वाजपेयी एक मंजे हुए कलाकार है. सत्या, शूल, जुबैदा और फरेब जैसी फिल्मों के जरिए वह दर्शकों को अपने अभिनय का कायल बना चुके हैं. लेकिन मनोज को लगता है कि फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें अब भी वह सम्मान नहीं मिला है, जिसके वह हकदार हैं. वह कहते हैं, "बॉलीवुड़ में चरित्र अभिनेताओं के साथ ठीक व्यवहार नहीं किया जाता. उन्हें अच्छा पैसा नहीं दिया जाता, उनके साथ दूसरे दर्जे के नागरिक की तरह व्यवहार होता है."
1998 में रामगोपाल वर्मा की फिल्म सत्या से बॉलीवुड में एंट्री करने वाले मनोज खूबसूरत पार्क या स्विटजरलैंड की वादियों में ठुमके लगाने और हैरतंगेज व वास्तविकता को ठेंगा दिखाकर मार धाड़ करने वाले किरदारों पर यकीन नहीं रखते. वह जानते है कि उनका चेहरा बॉलीवुड द्वारा तय किए हीरो के पैमाने पर फिट नहीं बैठता है. वह जमीन से जुड़े लगते हैं, वह चेहरे से आधुनिक दौर के अमीर लग ही नहीं पाते हैं.
मनोज कहते हैं, "मैं अपनी सीमा में रहना चाहता हूं और उसी में राज करना चाहता हूं. जिस दिन मैंने यह फैसला किया था कि मैं अभिनेता बनूंगा उसी दिन मैंने चाहा कि मैं अलग अलग किस्म के रोल करुंगा. मैं जानता हूं कि मेरा चेहरा पंरपरा से काफी हटकर है. मैं अपनी सीमाएं जानता हूं और मैं यह भी जानता हूं कि मैं किस चीज में अच्छा हूं. मैं नए दौर और नई भूमिकाओं के जरिए होने वाले प्रयोगों से प्यार करता हूं"
42 साल के मनोज वाजपेयी आखिरी बार प्रकाश झा की फिल्म आरक्षण में दिखे गए थे. फिल्म में उन्होंने अमिताभ बच्चन को कड़ी टक्कर दी. मनोज अक्स, रोड और वीर जारा में भी नकारात्मक भूमिका निभा चुके हैं. लेकिन विलेन शब्द से उन्हें आपत्ति है, "विलेन कहना ठीक नहीं है. ग्रे चरित्र असल जिंदगी के बहुत करीब है. वह भी हर किसी की तरह इस दुनिया में एक आम इंसान हैं. उनमें कुछ अच्छे और कुछ बुरे गुण हैं, इसीलिए हम उन्हें ग्रे कैरेक्टर कहते हैं."
दिसंबर में मनोज वाजपेयी की नई फिल्म लंका आ रही है. फिल्म नौ दिसंबर को रिलीज होगी. मनोज फिल्म को आधुनिक दौर में ढाली गई रामायण की कहानी बताते हैं. लंका में वह रावण के जैसी भूमिका में नजर आएंगे. ऐसी भूमिका में जो किसी महिला से एकतरफा मुहब्बत करने लगता है.
रिपोर्ट: पीटीआई/ओ सिंह
संपादन: एन रंजन