ब्रिटिश वीजा नियमों से मुश्किल में भारतीय जायका
२७ जुलाई २०१०माना जाता है कि ब्रिटेन में यह करी उद्योग सालाना साढ़े तीन अरब पाउंड का कारोबार करता है. लेकिन नए वीजा नियमों ने इस उद्योग की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. नए कानून के मुताबिक वीज़ा का आवेदन पांच स्तरों पर होता है. देश में आने से पहले हर आवेदक को इस प्रणाली के अनुसार कुछ अंक हासिल करने होंगे. आवेदकों को अंग्रेजी भाषा की जानकारी साबित करनी होगी. इसके अलावा उनकी शिक्षा को भी ध्यान में रखा जाएगा.
नई स्कीम को अगर लागू किया जाता है तो दक्षिण एशिया से बावर्चियों को लाया नहीं जा सकेगा क्योंकि इन लोगों के पास आम तौर पर औपचारिक पढ़ाई के सबूत नहीं होते हैं. बांग्लादेश केटरर्स एसोसिएशन के बजलूर रशीद का कहना है कि नए कानून के बाद ब्रिटेन के रेस्तरां में विदेशी खाना पकाने वालों को लाना मुश्किल हो जाएगा. वह कहते हैं, "इस वक्त हमारे पास जरूरत के हिसाब से पूरे लोग नहीं हैं. पिछले पांच साल से हमारे उद्योग में 30,000 लोगों की कमी हो रही है. हम सरकार से काफी समय से बात कर रहे हैं ताकि दक्षिण एशिया से लोगों को यहां ला सकें. अब सरकार इस पर रोक लगा रही है. इससे हमारे उद्योग को घाटा होगा और कई लोगों की नौकरियां जाएंगी."
करी उद्योग में काम कर रहे ज्यादातर कर्मचारी बांग्लादेश से आते हैं. बांग्लादेश केटरर्स एसोसिएशन में एक लाख से ज्यादा लोग काम करते हैं और ब्रिटेन में इसके लगभग 12,000 रेस्तरां हैं. रशीद का मानना है कि करी बनाना मुश्किल काम है और स्थानीय कर्मचारी इसे ठीक से नहीं पका सकते. वह कहते हैं, "एक सांस्कृतिक रुकावट है. जब वे बांग्ला या हिंदी बोलने वाले लोगों के साथ काम करते हैं, तो भाषा से परेशानी होती है. हमें करी की खुशबू जितनी पसंद है, वे उतना सहन नहीं कर सकते हैं. मेरा मतलब है कि हमें करी पसंद है और करी की खुशबू पसंद हैं. उन्हें लगता है कि करी से उनके कपड़ों में बदबू आती है."
रशीद और उनका संगठन सरकार से अपनी बात मनवाना चाहते हैं. लेकिन ब्रिटेन की सरकार के मुद्दे अलग हैं. उनका कहना है कि 2003 और 2008 के बीच ब्रिटेन में भारी संख्या में लोग आए थे. उस वक्त ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था 3 प्रतिशत से बढ़ रही थी लेकिन अब देश आर्थिक मंदी से गुजर रहा है.
इस हफ्ते इमिग्रेशन के नए कानून को अस्थायी तौर पर लागू किया जाएगा. ब्रिटेन के इमिग्रेशन मंत्री डेमियन ग्रीन अगले साल अप्रैल तक इमिग्रेशन को सीमित करने के सुझाव पर सलाह मशविरा कर रहे हैं.
रिपोर्टः जैसू भुल्लर
संपादनः एम गोपालकृष्णन