ब्रिटिश शहर ल्यूटन और टेरर टाउन की बदनामी
८ अगस्त २०११ल्यूटन के शांत रिहायशी इलाके में एक बहुत ही साधारण सा घर - पिछले साल वहां अचानक पत्रकारों का जमावड़ा लग गया था. कुछ पहले तक यहां तैमूर अब्दुलवहाब अल-अब्दाली रहा करता था. भरे पूरे परिवार वाले तैमूर ने रातों रात अपना बक्सा पैक किया और स्वीडन गया जहां क्रिसमस के लिए रोशनी से सजी धजी राजधानी स्टॉकहोम के केंद्र में उसने खुद को उड़ा लिया.
अपनी मौत से पहले उसने एक रिकॉर्ड पर बोला और स्वीडन के आम लोगों को मारने को अपना कर्तव्य बताया, अफगानिस्तान में स्वीडन के सैन्य अभियान का बदला लेने के लिए. उसने यह उम्मीद भी जताई कि अल्लाह उसकी शहादत को स्वीकार करेंगे.
कट्टरपंथी विचार-अपवाद या आम बात?
अल-अब्दाली जब ल्यूटन में रहता था तो वह शहर के इस्लामिक सेंटर में इबादत के लिए जाता था. वहां उसे कट्टरपंथी विचारों के लिए जाना जाता था. सेंटर के निदेशक अब्दुल अकदीर बख्श ने उसके साथ व्यक्तिगत तौर पर बातचीत की थी. बख्श कहते हैं, "वह इस्लाम की अपनी गलत व्याख्या और कुछ कट्टरपंथी विचारों का प्रचार कर रहा था. इसलिए मैंने उसे बुलाया और अपनी राय बताई." लेकिन इनका कोई नतीजा नहीं निकला तो बख्श ने एक सुबह अल-अब्दाली से दूसरे जमा लोगों के सामने बात करने का फैसला लिया. "अंत में वह बहुत तैश में था और गुस्से में मस्जिद से चला गया. उसके बाद मैंने उसे फिर कभी नहीं देखा."
स्टॉकहोम का आत्मघाती हमलावर उन बहुत से कट्टरपंथियों में से एक है जिसने ल्यूटन शहर की बदनामी में योगदान दिया है. 2009 के शुरू में इराक में तैनात रहे ब्रिटिश सैनिकों के स्वागत समारोह में मुसलमानों के एक छोटे दल ने उन्हें हत्यारा कहा था. उन्होंने मुसलमानों से ब्रिटिश दमन के खिलाफ आवाज उठाने की मांग की.
राई का पहाड़ ?
इस घटना ने अल्ट्रा दक्षिणपंथी और इस्लाम विरोधी इंगलिस डिफेंस लीग को सक्रिय कर दिया. इसके बाद तो ल्यूटन कट्टरपंथियों का गढ़ माना जाने लगा. वहां के बहुत से निवासी इसे सही नहीं मानते. जफर खान आस्था परिषद के अध्यक्ष हैं. यह बहुधर्मी संगठन ल्यूटन में सामाजिक सहिष्णुता के लिए काम करता है. उनके ख्याल से दोनों पक्षों में कट्टरपंथियों की संख्या बहुत कम है. "पिछले सालों में सब कुछ थोड़ा बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया है," जफर खान कहते हैं. "और कभी कभी तो प्रेस और राजनीतिक दलों ने इस छोटे अल्पमत पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया है, क्योंकि वे बहुत होहल्ला करते हैं."
लेकिन खान भी इस बात से इंकार नहीं करते कि ल्यूटन में समस्याएं हैं. लेकिन उनमें से कई होममेड नहीं है. "अफसोस से एक या दो मामले ऐसे रहे जिसमें ल्यूटन की भूमिका रही," वे बताते हैं कि जुलाई 2005 में लंदन के हमलावरों से ल्यूटन का यही संबंध है कि हमला करने के लिए वे इस शहर से होकर गए.
संबंधों के सबूत नहीं
ल्यूटन में रहने वाले 30,000 मुसलमानों का बड़ा हिस्सा बरी पार्क के इलाके में रहता है. ज्यादातर का कहना है कि उनका शहर मीडिया के दिखाये जाने वाले शहर से मिलता जुलता नहीं है. "ल्यूटन में एक बहुत सामान्य सा बड़ा मुस्लिम समुदाय है और मैं समझता हूं कि यहां अच्छी तरह रहा जा सकता है," कहना है कि शहर में रहने वाले एक युवा मुसलमान फैजल का. उसकी राय में, "यह जानकारी के अभाव और अक्खड़पन को दिखाता है कि लोग इस्लाम के बारे में टेलिविजन देखकर राय बनाते हैं." कुछ लोगों का यह भी मानना है कि बड़े शहरों में कट्टरपंथी राजनीतिक और धार्मिक विचार वाले लोगों का होना सामान्य बात है.
ब्रिटिश खुफिया सेवा की 2008 की एक रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षाबलों के बीच ल्यूटन, बर्मिंघम और लंदन की गिनती ऐसे शहरों में की जाती है जहां जहां इस्लामी कट्टरपंथियों का व्यापक नेटवर्क है. ल्यूटन का लंदन के निकट होना ही यह वजह है कि शहर कट्टरपंथियों के बीच इतना लोकप्रिय है. लेकिन अब तक हमले की किसी कोशिश के तार ल्यूटन से नहीं जुड़ते.
ल्यूटन की सांस्कृतिक बहुलता
इतना सारा अनचाहा प्रचार स्थानीय नेताओं के लिए चिंता का सबब बन गया है. नगर निगम ल्यूटन की सांस्कृतिक विविधता को सकारात्मक रोशनी में पेश करने की कोशिश कर रहा है. उसने पिछले साल विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के निवासियों को एक दूसरे के नजदीक लाने की पहल की है. निगम में सामाजिक न्याय कमिश्नर सैरा एलन कहती हैं, "हमें शहर के लिए गौरव और आत्मविश्वास के एक नए स्तर की जरूरत है. इसका मतलब यह नहीं है कि यहां भौंडे और अप्रिय विचारधारा वाले लोग नहीं हैं, जो उस पर अमल भी करना चाहते हैं, लेकिन वे ल्यूटन के निवासियों का प्रतिनिधित्व नहीं करते."
ब्रिटेन आतंकी हमलों का लक्ष्य बना हुआ है. निकट भविष्य में सुरक्षा एजेंसियां औसत से अधिक मुसलमान आबादी वाले हर शहर पर गहन निगरानी रखेगी. ल्यूटन के निवासियों को शायद उसकी आदत लग जाएगी. लेकिन वे शहर की प्रतिष्ठा को बेहतर बनाने के लिए कृतसंकल्प हैं.
रिपोर्ट: लार्स वेफांगर/मझा
संपादन: प्रिया एसेलबॉर्न