1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भाई भाई से दुश्मन दुश्मन

५ अक्टूबर २०१२

भारत और चीन के बीच भले ही लड़ाई सिर्फ एक महीने चली हो लेकिन ये लड़ाई बहुत मुश्किल साबित हुई. एशिया के दो सबसे बड़े देशों के बीच का संघर्ष आज भी नहीं सुलझ पाया है, लेकिन दोनों ने अपने रास्ते बदल दिए हैं.

https://p.dw.com/p/16Krq
तस्वीर: Getty Images

चीन से युद्ध हारने के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर खासा दबाव पड़ा और उन पर कटाक्ष भी किए गए. भारतीय मीडिया ने यहां तक कहा कि नेहरू मासूम बने रहे और उनके पास दूरदृष्टि नहीं थी. "नेहरू खुद इस बात से उबर नहीं पाए", कहते हुए योआखिम बेत्स बताते हैं कि भारत के सैनिक अधिकारियों ने कई बार चेतावनी दी थी कि उनके पास जंग के लिए जरूरी साजोसामान नहीं हैं, "अधिकारियों ने यह भी कहा कि यह इलाका चीन के लिए फायदेमंद है क्योंकि भारत को पहाड़ियों के ऊपर चढ़ना पड़ता है और रणनीतिक तौर पर चीन ऊपर है, जिसका उसे फायदा मिलता है." बेत्स हैम्बर्ग के गीगा इंस्टीट्यूट में एशिया विशेषज्ञ हैं.

चीन ने 20 अक्तूबर 1962 को दो तरफ से भारत पर जब हमला बोला, तो उसके सैनिकों की संख्या भारत से पांच से दस गुना ज्यादा थी. चीनी सेना मौजूदा भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश और अकसई चिन में बहुत अंदर तक घुस आई. महीने भर चले युद्ध में 2000 लोग मारे गए.

ऐतिहासिक अहमियत

भारत और चीन के बीच लंबे अर्से से चले आ रहे विवाद की वजह से युद्ध की आशंका तो हमेशा से बनी थी लेकिन भारत युद्ध के लिए तैयार नहीं था. 18वीं सदी में भारत ब्रिटिश उपनिवेश बना. इसमें आज के भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार के कुछ हिस्से शामिल थे. 1835 के आस पास ब्रिटेन और रूस के बीच ग्रेट गेम शुरू हुआ और दोनों देश मध्य एशिया में अपना प्रभुत्व जमाने की होड़ में शामिल हो गए. रूस की कोशिश थी कि वह एशिया के दक्षिणी हिस्से में कब्जा जमाए लेकिन तिब्बत ब्रिटिश भारत और रूस के बीच में आ गया.

Map India China Historical Border
अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों को लेकर भारत और चीन में विवाद

20वीं सदी की शुरुआत में तिब्बत ब्रिटेन का संरक्षित राज्य बन गया. हालांकि 1912 में चीन ने दावा किया कि तिब्बत उसका हिस्सा है लेकिन 1913 में तिब्बत ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी. 1914 में शिमला कांफ्रेंस हुआ, जिसमें ग्रेट ब्रिटेन के अलावा चीन और तिब्बत ने भी हिस्सा लिया. उस वक्त हेनरी मैकमेहोन ब्रिटिश भारत के विदेश मंत्री थे.

मैकमेहोन ने साफ कर दिया कि ब्रिटेन तिब्बत पर किसी तरह का कब्जा नहीं चाहता है. साथ ही उन्होंने चीन के साथ एक सीमा रेखा तय की, जो आज भी मैकमेहोन लाइन के नाम से मशहूर है. चीन ने तभी कह दिया था कि 3000 किलोमीटर लंबी यह रेखा एक अस्थायी सीमा होगी लेकिन भारत ने उसे एक पक्की रेखा मान लिया. राजनीतिशास्त्री बेत्स का कहना है, "चीन ने मैकमेहोन लाइन को हमेशा उपनिवेश काल की सीमा रेखा के रूप में देखा. यानी उपनिवेशवाद खत्म होने के साथ रेखा पर सहमति भी खत्म होनी चाहिए."

भाई भाई में दुश्मनी

1947 में जब ब्रिटिश इंडिया आजाद हुआ, तो यह भारत और पाकिस्तान दो देशों में बंट चुका था. 1949 में चीन पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना बना. दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की चीन मामलों की जानकार अनुराधा चिनॉय का मानना है कि चीन और भारत नए रूप में प्रवेश करने के साथ अपने उपनिवेशवादी इतिहास को भुलाना चाह रहे थे और इसलिए उन्होंने पहले बहुत दोस्ताना रिश्ते रखे, "नेहरू का एक नजरिया था कि चीन से दोस्ती रखी जाए", नेहरू का मानना था कि दोनों देशों में कई ऐतिहासिक समानताएं हैं और दोनों ने काफी मुश्किलें देखी हैं. नेहरू समझते थे कि इसे ध्यान में रख कर भारत चीन ध्रुव बनाया जा सकता है. चिनॉय का कहना है, "इसलिए नारा बना, हिन्दी चीनी भाई भाई."

1954 में दोनों देशों ने पंचशील सिद्धांत पर दस्तखत किए, जिसमें शांतिपूर्ण तरीके से साथ साथ रहने के पांच सूत्र तय किए गए. चीन ने भारत के सामने प्रस्ताव रखा कि अगर उसे अकसई चिन मिल जाए, तो वह मैकमेहोन रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा मान लेगा. तिब्बत को काबू में करने के दौरान चीन अकसई चिन में काफी अंदर तक घुस आया था. एक तरह से वहां चीन की ही हुकूमत चल रही थी. एशिया विशेषज्ञ बेत्स कहते हैं, "चीन के लिए आर्थिक तौर पर अकसई चीन ज्यादा महत्व नहीं रखता है और न ही वह भौगोलिक क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए यह इलाका हासिल करना चाहता था", लेकिन वह इसके सहारे अपने पश्चिमी हिस्सों तक आसानी से पहुंच सकता था और इसे पुल बना कर देश के बुनियादी ढांचे का विकास करना चाहता था.

Indisch-Chinesischer Grenzkrieg 1962
सीमा विवाद की वजह से भारत और चीन के बीच 1962 में जंग छिड़ीतस्वीर: Getty Images

अनुराधा चिनॉय युद्ध की वजह को इन शब्दों में बताती हैं, "दोनों देशों में उस वक्त राष्ट्रवाद बढ़ने लगा." चीन भारत सीमा पर हल्की फुल्की झड़प भी बढ़ती गई. 1959 में दलाई लामा ने तिब्बत से भाग कर भारत में शरण लिया. ये द्विपक्षीय रिश्तों में गहरी दरार साबित हुई.

सीमित टकराव

भारत और चीन ने कभी भी औपचारिक तौर पर युद्ध की घोषणा नहीं की. दोनों पक्षों ने विवाद को सीमित रखना चाहा. फिर भी इस विवाद को दुनिया भर में बहुत चिंतित नजरों से देखा गया क्योंकि उसी वक्त क्यूबा संकट भी चल रहा था. भारत चीन युद्ध में एक लोकतांत्रिक और एक वामपंथी देश उलझे थे. पूरी दुनिया में क्यूबा संकट के साथ शीत युद्ध एक नए मुकाम पर था. 20 नवंबर 1962 को चीन ने अपनी तरफ से युद्धविराम घोषित किया और मैकमेहोन लाइन से 20 किलोमीटर पीछे हट गया, "अपनी तरफ से", कहती हैं अनुराधा चिनॉय.

लड़ाई शुरू होने के बाद भारत ने अमेरिका से भी सैनिक मदद मांगी थी. चीन पीछे क्यों हटा, इसकी क्या वजह थी. क्या चीन को डर था कि अमेरिका के शामिल होने पर विवाद बढ़ जाएगा या चीन को डर था कि खराब होते मौसम में उसके सैनिक टिक नहीं पाएंगे या फिर चीन का मकसद सिर्फ इतना था कि भारत को अपनी ताकत बता दी जाए. इस बात पर इतिहासकारों में अब तक कोई राय नहीं बन पाई है.

रिपोर्टः प्रिया एसेलबॉर्न

संपादनः महेश झा

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें