भारत के बच्चों का कुपोषण राष्ट्रीय शर्मः प्रधानमंत्री
१० जनवरी २०१२भारत के 9 राज्यों में रहने वाले 73,000 परिवारों से बात करने के बाद यह हंगामा (हंगर एंड मालन्यूट्रीशन) रिपोर्ट तैयार की गई है. प्रधानमंत्री ने दिल्ली में रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, "कुपोषण की समस्या राष्ट्रीय शर्म है. जीडीपी में शानदार विकास होने के बावजूद देश में कुपोषण इतने ऊंचे स्तर पर है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता."
गैर सरकारी संगठनों के जरिए तैयार हुई इस रिपोर्ट से प्रधानमंत्री को भारत की 'चिंताजनक' स्थिति का पता चला है हालांकि वो इसे 'उत्साह बढ़ाने वाला' भी बता रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक 1.2 अरब की आबादी वाले देश में दुनिया के सबसे ज्यादा बच्चे रहते हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि पांच साल से कम उम्र वाले कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या में पिछले सात साल के दौरान 11 फीसदी की कमी आई है हालांकि इसके बावजूद यह 42 फीसदी के उच्च स्तर पर है. पांच साल से कम उम्र के 59 फीसदी बच्चों का विकास रुका हुआ है. प्रधानमंत्री ने कहा, "इतने सारे कुपोषित बच्चों के साथ हम एक स्वस्थ भविष्य की उम्मीद नहीं कर सकते."
भारत की अर्थव्यवस्था ने 1991 में उदारीकरण की शुरुआत के बाद पिछले 20 सालों में काफी तरक्की की है और कई दशकों से गरीब देश की छवि वाला भारत अब उभरती अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया है. पिछले कुछ सालों से यहां सालाना विकास दर 10 फीसदी के आसपास रही है. विदेशी कंपनियों के साथ ही भारत की घरेलू दिग्गज कंपनियों ने भी भारी निवेश किया है और यहां के बढ़ते मध्यम वर्ग के हाथों में कारें, विलासिता के सामान और पश्चिम जीवनशैली की पहचान मानी जाने वाली चीजें पहुंचने लगी हैं.
रिपोर्ट तैयार करने वाले गैरसरकारी संगठनों में से एक नादी फाउंडेशन की रोहिणी मुखर्जी कहती हैं कि देश में इतनी संपत्ति बढ़ रही है कि पिछले महज एक साल में ही 57 अरबपति तैयार हुए हैं लेकिन इसका फायदा देश की बहुसंख्यक गरीब जनता तक नहीं पहुंचा है. कुपोषण के मामले में भारत की कोशिशें अफ्रीकी देशों से भी बुरी हालत में हैं. यह हालत तब है जब दुनिया का सबसे बड़ा बचपन संवारने वाला सरकारी कार्यक्रम आईसीडीएस (इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेज) भारत में चल रहा है. सच्चाई यह है कि यह कार्यक्रम भ्रष्टाचार और अक्षमता का शिकार है. यूनिसेफ के ताजा आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के हर तीन कुपोषित बच्चों में एक भारत में है. इनमें से तीन साल से कम के 47 फीसदी बच्चों का वजन जरूरी वजन से कम है.
भूखे नहीं भारत के बच्चे
नई रिसर्च में यह भी पता चला है कि कुपोषित बच्चों में से बहुत कम ही ऐसे हैं जो भूखे हैं. इन बच्चों के कुपोषण के पीछे ज्यादा वजह उनकी मांओं को पोषक आहार के बारे में कम जानकारी और लापरवाही है. मुखर्जी ने बताया, "यह बिल्कुल साफ है कि अफ्रीका में कुपोषण की वजह गरीबी है, वो भूखे हैं लेकिन हमारे (भारत के) मामले में ऐसा लगता है कि बच्चों को खिलाने पिलाने की आदतें इसकी जिम्मेदारी हैं. यहां एक बहुत बड़ा खालीपन है. जिन बच्चों को हमने मापा वो कभी भूखे नहीं रहे लेकिन ज्यादातर वक्त वो केवल कार्बोहाइड्रेट खाते हैं." बहुत कम भारतीय महिलाएं शुरुआत के छह महीनों में शिशुओं के लिए स्तनपान का महत्व जानती हैं." रिपोर्ट के मुताबिक 92 फीसदी भारतीय माएं पोषक आहार के बारे में नहीं जानतीं.
भारत में बच्चों के स्वास्थ्य के लिए काम करने वाली ज्यादातर एजेंसियां उन्हें बीमारियों से बचाने पर काम कर रही हैं. पीने के साफ पानी, पोषक आहार और सेहतमंद जीवनशैली पर ज्यादा ध्यान नहीं है. ऐसे में बच्चों की भूख मिटाने और बीमारियों से बचाने में तो सफलता मिली है लेकिन पोषण के मामले में निराशा ही हाथ लगी है.
रिपोर्टः एएफपी, डीपीए, पीटीआई/एन रंजन
संपादनः महेश झा