भारत में भी थे डायनासोर!
२७ मार्च २०१०लंदन, कैम्ब्रिज और मेलबर्न के वैज्ञानिकों को ऐसे प्रमाण मिले हैं, जो संकेत देते हैं कि दक्षिण एशिया में टिरेनोसोरस हुए थे. इससे यह संभावना भी ज़ाहिर होती है कि किसी काल में भारत में भी डायनासोर रहे हों. साइंस पत्रिका में इन वैज्ञानिकों ने लिखा है कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया में डायनासोर कोव में टिरेनोसोरस रेक्स के पूर्वज की कूल्हे की हड्डी मिली है. इससे डायनासोर की इस प्रजाति के विकास के बारे में और खुलासा हुआ.
इससे एक और बड़ा सवाल खड़ा हुआ कि सिर्फ़ उत्तर में ही टिरेनोसोरस टी रेक्स जैसे बड़े भारी जीव में क्यों बदल गए. लंदन के नैचरल हिस्ट्री म्यूज़ियम के डॉक्टर पॉल ब्रैट कहते हैं, "दक्षिणी महाद्वीपों से टिरेनोसॉरॉइड्स अनियमित होते गए और उत्तर के डायनासोर ग्रुप्स दक्षिणी हिस्से में आए."
इससे साफ़ होता है कि टिरेनोसॉरॉइड्स अपने विकास के पहले ही दौर में दक्षिणी महाद्वीपों में पहुंच सके और इससे यह संभावना पैदा होती है कि भारत, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में दूसरी प्रजातियां मिल सकती हैं.
डायनासोर कोव की 30 सेंटीमीटर लंबी कुल्हे की हड्डी एक छड़ी जैसी लगती है जिसके दो सिरे हैं. इस हड्डी का एक सिरा कूल्हे से जाकर मिलता था और दूसरा एक जूते की तरह दिखाई देता है. शोध करने वाले दल के दूसरे वैज्ञानिक डॉक्टर रॉजर बेन्सन कहते हैं, यह हड्डी निश्चत ही टिरेनोसोरस की है क्योंकि उनकी कूल्हे की हड्डी बहुत अलग होती थी.
इस नए शोध से बात खारिज हो गई है कि टिरेनोसोरस दक्षिणी महाद्वीपों में गए ही नहीं. डॉक्टर बेन्सन कहते हैं कि यह शोध बहुत ही रोमांचक है. हालांकि हमें अभी एक ही हड्डी मिली है लेकिन इससे यह साबित होता है कि 11 करोड़ साल पहले धरती पर हर हिस्से में छोटे टिरेनोसोरस रहे होंगे. इस शोध से साफ हुआ है कि कैसे डायनासोर की यह प्रजाति विकसित हुई होगी.
जिस नए टिरेनोसोरस की हड्डी मिली है. उसका नाम है एनएमवी पी186069 जो 12 मीटर लंबे और चार टन वजन वाले टी रेक्स जैसे विशालकाय डायनासोर से बहुत छोटा था. टिरेनोसोरस महाद्वीपों के टूटने के दौरान के हैं. जब दक्षिणी अमेरिका, अंटार्कटिका, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया उत्तरी महाद्वीपों से अलग हो गए.
क्या टिरेनोसोरस दोनों हिस्सों में रहते थे अगर हां तो फिर टिरेनोसोरस धरती के उत्तरी हिस्से में टी रैक्स जैसे विशालकाय डायनासोर में कैसे विकसित हुए. इन सवालों ने अब भी वैज्ञानिकों के दिमाग में खलबली मचाई हुई है.
रिपोर्टः पीटीआई/आभा मोंढे
संपादनः ए जमाल