भारत में मुश्किल से मिलते दो निवाले
३ अगस्त २०१२ग्रामीण भारत में अब भी लोग एक दिन में औसतन 45 रुपये ही खर्च कर सकते हैं. शहरों में लोग करीब 86 रुपये रोज खर्च कर पाते हैं. भारत सरकार के नेशनल सैंपल सर्वे ने ये आंकड़े जारी किये हैं. दो साल बाद जारी होने वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि गांवों मे अब भी एक घर की जरूरतें 1,281 रुपये में पूरी करनी पड़ती हैं.
सर्वे के प्राथमिक आंकड़ों में आम आदमी तक पहुंचते आर्थिक विकास के दावों की पोल खुली है. आंकड़े कहते हैं कि ग्रामीण आबादी के आठ करोड़ लोग अब भी एक दिन में मात्र 17 रुपये कमाते हैं. यानी महीने में वह 503 रुपये में गुजर बसर करने के लिए मजबूर हैं. 1.2 अरब आबादी वाले भारत की 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती है.
शहरों की हालत भी अच्छी नहीं है. शहरों में महीने का औसत खर्च 2,401 रुपये है. इसी पैसे से किराया, स्कूल की फीस, स्वास्थ्य सेवाओ का खर्च, परिवहन और खाने पानी का इंतजाम किया जाता है.
महंगाई की मार ने परेशानी को और बढ़ाया है. शहरियों का खर्च बीते दो साल में 34 फीसदी बढ़ा है. इससे पता चलता है कि दहाई के अंकों में दौड़ रही महंगाई लोगों को कैसे सता रही है. ग्रामीणों का प्रति व्यक्ति खर्च भी 38 फीसदी बढ़ा है.
सर्वे के ये आंकड़े एक लाख घरों के सर्वेक्षण में जुटाए गए. विस्तार से आंकड़े 2013 में जारी किये जाएंगे. भारत में गरीबी नापना मुश्किल और विवादों से घिरा मुद्दा रहता है. सरकारी एजेंसी यह काम करती है. उस पर आरोप लगते हैं कि वह सरकार को फायदा पहुंचाने के लिए गरीबी के गलत पैमाने तय करती है. इसी साल योजना आयोग ने कहा कि शहरों में 28 रुपये 65 पैसे और गांवों में 22.42 रुपये खर्च करने वाला गरीब नहीं कहा जा सकता है.
इस तरह के अजीबोगरीब तर्क देकर योजना आयोग ने कहा कि भारत में गरीबी कम हुई है. दावा किया गया कि 2004-05 में गरीबी 37.2 फीसदी थी जो 2009-10 में 29.8 प्रतिशत रह गई. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक एक दिन में 68 रुपये खर्च न कर सकने वाला गरीब है.
ओएसजे/एमजी (एएफपी)