भारत से चैंपियंस ट्रॉफी की मेजबानी छिनी
६ सितम्बर २०११अंतरराष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन ने कहा है कि भारत ने प्रशासनिक गड़बड़ियों के कारण इस साल चैंपिंयस ट्रॉफी की मेजबानी का हक खो दिया है और उससे अन्य भावी आयोजन भी छीने जा सकते हैं. हॉकी के प्रशासन की अंतरराष्ट्रीय संस्था ने भारत सरकार की मध्यस्थता में हॉकी इंडिया और इंडियन हॉकी फेडरेशन के बीच हुए शांति समझौते को नकार दिया और कहा कि खेल के प्रशासन के लिए एक से ज्यादा संगठन नहीं हो सकते.
'खेल को बचाने का एकमात्र रास्ता'
अंतरराष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष लियांद्रे नेग्रे ने एक बयान में कहा, "हमें अफसोस है कि हमें चैंपियंस ट्रॉफी भारत से हटानी पड़ रही है. यह टीमों, आयोजकों और फैंस के लिए बुरा है लेकिन हम समझते हैं कि हमारे खेल की अखंडता को बनाए रखने के लिए यह एकमात्र रास्ता है." फेडरेशन के बयान मे कहा गया है कि एफआईएच दूसरे देशों की अर्जी पर विचार कर रहा है और 3-11 दिसंबर तक होने वाले आयोजन के नए मेजबान का फैसला एक सप्ताह के अंदर कर लिया जाएगा.
चैंपियंस ट्रॉफी की मेजबानी छीने जाने का मतलब अब भारत के लिए यह भी है कि उसे आठ टीमों वाले टूर्नामेंट में क्वालिफाई करने के लिए नवबंर में दक्षिण अफ्रीका में चैंपियंस चैलेंज में खेलना होगा. निरंतर जारी राजनीति के कारण आट बार ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत में हॉकी की हालत पस्त है.
हॉकी की अधिशासी संस्था ने अपने बयान में कहा है कि ओलंपिक चार्टर और एफआईएच की यह मौलिक और मोलतोल न होने वाली शर्त है कि किसी देश में एक खेल का प्रशासन चलाने वाली सिर्फ एक संस्था होगी.
खेलों में राजनीति और भ्रष्टाचार
भारतीय हॉकी फेडरेशन को 2008 में तब भंग कर दिया गया था जब उसके सचिव को एक खिलाड़ी के चयन के लिए रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया था. पिछले साल एक अदालत ने उसे फिर से वैध ठहरा दिया. एफआईएच हॉकी इंडिया को मान्यता देता है. उसने भारतीय खेल मंत्रालय द्वारा पेश इस फॉर्मूले को ठुकरा दिया कि खेल का प्रशासन दोनों संगठनों से बनी एक संयुक्त कार्यकारिणी करेगी.
एफआईएच के फैसले पर भारतीय हॉकी फेडरेशन के सचिव अशोक माथुर की प्रतिक्रिया थी, "यह हास्यास्पद है." उन्होंने कहा कि जब हम ईमानदार इरादों के साथ एक समझौते पर पहुंचे हैं तो एफआईएच के टूर्नामेंट वापस लेने का कोई मतलब नहीं है. हॉकी इंडिया के अधिकारी प्रतिक्रिया के लिए उपलब्ध नहीं थे.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: ओ सिंह