"भारत है लोकतंत्र का सही मॉडल"
२२ जून २०११चीन में विकास की शानदार स्थिति और इसके ठीक विपरीत मानवाधिकार स्थिति पर जब बहस उलझ गई, तो मोरक्को के पत्रकार और विचारक अबुबकर जमाई ने इसे दिशा देते हुए कहा, "भारत ने अलग अलग संस्कृति और अलग अलग भाषा होने के बावजूद दिखा दिया कि विकास और लोकतंत्र को एक साथ चलाया जा सकता है. भारत लोकतंत्र का बिलकुल फिट मॉडल है."
बहस इस बात पर उठी कि विकासशील व्यवस्था के लिए क्या जरूरी है, लोकतंत्र या निरंकुश राज. हाल के दिनों में ऐसे तर्क भी सामने आए हैं, जिसमें निरंकुश शासन वाले देशों की जीडीपी लोकतांत्रिक देशों से कहीं तेजी से बढ़ रही है. लेकिन इसे आदर्श स्थिति न बनाने की अपील करते हुए ग्लोबल मीडिया फोरम में कहा गया कि बुनियादी मानवाधिकार और लोकतंत्र के बगैर सफल व्यवस्था की कल्पना करना ही बेमानी है.
चीन की मिसाल देते हुए जर्मन सरकार के मानवाधिकार कमिश्नर मार्कस ल्योनिंग ने कहा, "तेज विकास के बावजूद चीन में आजादी नहीं है. वह सही मॉडल नहीं है." उन्होंने वहां इंटरनेट पर पाबंदी से लेकर सरकार विरोधी प्रदर्शनों का जिक्र किया, जिसकी वजह से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया जाता है. चीन दुनिया में सबसे तेज गति से विकास करने वाला देश भले हो, लेकिन मानवाधिकारों की खराब स्थिति को लेकर पूरा विश्व उसकी तरफ अंगुली उठाता है.
मानवाधिकार एजेंडा
बहस उस वक्त दिलचस्प हो गई, जब हिस्सा ले रहे लोगों ने पश्चिमी देशों के मानवाधिकार एजेंडे पर गहरे सवाल पैदा कर दिए. अफ्रीका के एक प्रतिनिधि ने कहा कि जिम्बाब्वे के रॉबर्ट मुगाबे के बारे में तो सब बात करते हैं लेकिन पड़ोसी देश इथोपिया में क्या हो रहा है, कोई जानने की जहमत भी नहीं उठाता. उन्होंने सवाल किया कि क्या कोई बता सकता है कि पिछले चुनाव में सरकार को 99 फीसदी से ज्यादा वोट कैसे मिल गए.
आर्थिक विकास के पीछे भागती दुनिया को रुक जाने की सलाह देते हुए कहा गया कि सिर्फ अर्थव्यवस्था के पैमाने पर किसी देश का विकास नहीं आंका जा सकता है. बुनियादी मानवाधिकार और आजादी तथा बोलने के अधिकार को नहीं छीना जा सकता है. जमाई का कहना है कि इन पैमानों पर चीन खरा नहीं उतरता लेकिन भारत बिलकुल सटीक बैठता है.
पश्चिम का चश्मा
बॉन के ग्लोबल मीडिया फोरम में दुनिया भर के पत्रकार जमा हैं और कसरत इस बात पर चल रही है कि क्या पश्चिमी चश्मे से पूरी दुनिया की मानवाधिकार स्थिति देखी जा सकती है. धीरे धीरे इस बात पर भी सहमति बनती जा रही है कि वेस्ट ज्यादातर मामलों में जमीनी हकीकत से दूर है और उसे समझे बिना कुछ भी तय कर पाना संभव नहीं.
ल्योनिंग ने माना कि अरब देशों की क्रांति भले ही उन देशों में बदलाव के लिए हुई थी लेकिन इसने पश्चिमी जगत की भी आंखें खोल दीं. उन्होंने कहा, "मिस्र और ट्यूनीशिया की क्रांति ने बातचीत के लिए नया दरवाजा खोल दिया. इन दोनों घटनाओं ने उस मिथ को भी तोड़ दिया कि हर मुसलमान तालिबान होता है."
जर्मन कमिश्नर ने बाहरी दखल से परहेज करने की हिदायत देते हुए कहा कि किसी भी व्यवस्था में बदलाव अंदर से होनी चाहिए. "यह लोगों का अधिकार है कि वे विकास का रास्ता चुनें और अपने अधिकारों की आवाज उठाएं."
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ, बॉन
संपादनः ए कुमार