भूकंप की भविष्यवाणी टेढ़ी खीर
१३ फ़रवरी २०१०जर्मनी में बर्लिन के पास पोट्सडाम का भूगर्भ शोध केंद्र अपने ढंग का एक जाना-माना शोध संस्थान है. उस के वैज्ञानिक हैती भूकंप के तुरंत बाद यह तो कह सके कि अगले कुछ ही दिनों में एक और बड़ा झटका आयेगा, जो रिष्टर पैमाने पर छह से अधिक शक्ति का हो सकता है. लेकिन, मुख्य भूकंप की कोई भविष्यवाणी वे भी नहीं कर सके थे.
प्रोफ़ेसर योख़न चाओ इस केंद्र में भूकंप के ख़तरों और उनकी भविष्यवाणी संबंधी विभाग के प्रमुख हैं. कहते हैं "कुछ साल पहले तक हमें पूरा विश्वास था कि कुछ ऐसी प्रतिभासी घटनाओं के आधार पर, जो भूकंपों के पहले अक्सर देखने में आती हैं, एक दिन हम सही सही भविष्यवाणी कर सकेंगे. लेकिन, बाद के दशकों के सघन अवलोकनों ने हमें सिखाया कि ये प्रतिभासी घटनाएं बहुत ही अनियमित क़िस्म की होती हैं. भूकंप से पहले कभी कोई ख़ास घटना होती है, तो कभी नहीं होती. कभी हज़ारों किलोमीटर दूर तो होती होती है, लेकिन भूकंप वाली जगह के आस-पास कुछ नहीं होता. कभी एक घटना होती है, तो कभी कोई दूसरी घटना. इस सबसे एक बड़ा ही अनियमित और भ्रामक चित्र बनता है."
कैसे करें
भूकंप जिन जगहों पर आते हैं, वहां पृथ्वी के ऊपरी ठोस आवरण वाली भूपर्पटी वहुत ही अस्थिर, परिवर्तनशील अवस्था में होती है. कई कई किलोमीटर मोटी यह भूपर्पटी कई टुकड़ों में बंटी हुई है, जिन्हें भू-प्लेटें कहते हैं. ये प्लटें बहुत ही मंद गति से कहीं तो एक-दूसरे के निकट आ रही हैं-- एक- दूसरे से टकरा रही हैं, टकराने से उनके किनारे हिलते-डुलते और टूटते हैं या एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाते हैं-- तो कहीं ये प्लेटें एक-दूसरे दूर भी जा रही हैं "ऐसी जगहों पर भूपर्पटी बहुत ही केऑटिक , बहुत ही अव्यवस्थित ढंग से व्यवहार करती है. मामूली-सी बातों के बहुत ही भारी प्रभाव हो सकते हैं. जहां कोई नियम, कोई व्यवस्था ही न हो, उस के बारे में अनुमान लगाना और भविष्यवाणी करना भी उतना ही मुश्किल है. इसी वजह से अब एक केऑस थियरी बन गयी है, जो भूपर्पटी की इसी विशेषता पर मथापच्ची करती है."
क्यों है मुश्किल
प्रश्न पूछा जा सकता है कि ज्वालामुखी उद्गारों का भी तो भूपर्पटी की बनावट से ही संबंध है. उनके बारे में तो अक्सर पहले से बताया जा सकता है कि अगला उद्गार कितना निकट या दूर है. तो फिर भूकंपों के बारे में ऐसा क्यों नहीं संभव है? "ज्वालामुखियों के प्रसंग में भी ऐसी कोई भविष्यवाणी सरल नहीं है. तब भी, एक आसानी ज़रूर हैः हमें पता रहता है कि ज्वालामुखी हैं कहां. भूकंपों के मामले में हम यह नहीं जानते. जिन्हें भूकंप के ख़तरे वाले इलाके माना जाता है, वे सैकड़ों-हज़ारों किलोमीटर के विस्तार वाले बड़े-बड़े इलाके हैं. हम वहां भूकंप आने की केवल संभावना को प्रतिशत में बता सकते हैं. ज्वालामुखी पर हम सरा समय नज़र रख सकते हैं. वे उद्गार से पहले हमेशा कुछ ठेठ संकेत देते हैं. लेकिन, सारे संकेतों के बावजूद यह भी हो सकता है कि कोई ज्वालामुखी फिर से ठंडा पड़ जाये और सो जाये."
प्रो. योख़न चाओ का कहना है कि उनका भूगर्भ शोध केंद्र अब यह बताने की कोशिश कर रहा है कि भूकंप के ख़तरे वाले किस क्षेत्र में अगले कितने वर्षों में कोई बड़ा भूकंप आने की संभावना कितने प्रतिशत के बराबर है. इन अनुमनों पर पहुंचने के लिए ऐसे क्षेत्रों में अतीत में आये भूकपों के आंकड़ों और वहां की भूपर्पटी वाली प्लेटों के बीच मापे गये वर्तमान तनावों को कंप्यूटर मॉडलों का रूप दिया जाता है.
रिपोर्ट- राम यादव
संपादन- उज्ज्वल भट्टाचार्य