भूकंप के सौ दिन बाद भी हैती बेहाल
२० अप्रैल २०१०हैती दुनिया के सबसे गरीब देशों में गिना जाता है. वहां 12 जनवरी 2010 को आए भूंकप से हुई तबाही को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक लगभग डेढ़ अरब डॉलर की तुरंत ज़रूरत है. लेकिन अब तक सिर्फ़ आधी रकम ही दाता देशों ने मुहैया कराई है. कैंपों में गुजारा कर रहे लोगों की शिकायत है कि उन्हें अब तक हर वक्त साफ पानी या टिकाऊ तंबू नहीं मिल पा रहे हैं.
भूकंप पीड़ित खासकर हैती की सरकार से निराश हैं. वे कहते हैं कि राहत और मदद के काम में तालमेल की कमी रही है. पैट्रिक नाम का एक व्यक्ति कहता है, "मेरे पास सोने के लिए किसी तरह की चटाई नहीं है. दो हफ्तों से फिर पीने के पानी को लेकर दिक्कत आ रही है. मै इस तरह से नहीं जी सकता. पहले मेरा एक घर होता था. यहां बहुत मच्छर हैं. गंदगी है. इसी वजह से मेरी त्वचा में कोई बीमारियां हो गई हैं. हम वही खाते हैं, जो हमें दिया जाता है. मैं उम्मीद करता हूं कि जल्द मुझे कोई कम मिल जाए, ताकि मैं खुद, अपना और अपनी पत्नी का खर्च उठा सकूं."
काम, नए घर और स्कूल, हैती को आज इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है. भूकंप से राजधानी पोर्त-ओ -प्रांस और देश के कई हिस्से तबाह हो गए हैं. जर्मन सहायता संगठन जर्मन ऐग्रो एक्शन के मिशाएल कुएन कहते हैं, "तबाही बहुत ज्यादा है. पूरा समाज सदमे में है. इसलिए बहुत सकरात्मक चीज़ें मै अभी बता नहीं सकता हूं. फिर भी मै यह ज़रूर मानता हूं कि परिवहन से जुड़ी और अन्य तमाम समस्याओं के बावजूद अंततराष्ट्रीय सहायता लोगों तक पहुंच पाई हैं. लेकिन वह पर्याप्त नहीं है. लोगों के लिए नए घर बनाने हैं. लेकिन इस काम को पूरा करने में शायद दो साल लग सकते हैं."
समस्या यह है कि हैती में भूकंप से पहले भी 90 प्रतिशत लोग व्यवस्थित तरीके से काम नहीं करते थे. रेजिनल्ड बुर्गोस हैती के चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के अध्यक्ष हैं. वह कहते हैं कि हैती में समस्या यह है कि देश में कोई मध्यम वर्ग विकसित नहीं हो पाया है. कृषि क्षेत्र में भी बहुत समस्या है. छोटे कारोबार भी नहीं है. इसलिए वह एक नए हैती की मांग कर रहे हैं. उनके मुताबिक, "हमें नेतृत्व की ज़रूरत है और एक योजना की. मैं इस भूकंप को मौके के रूप में देखना चाहता हूँ. आप रवांडा में हुए नरसंहार को अवसर तो नहीं कह सकते हैं, लेकिन वह एक नई शुरुआत करने का मौका था. एक चीज खत्म हो गई है, और अब बारी नई शुरुआत की है."
रिपोर्टः डीडब्ल्यू/प्रिया एसेलबोर्न
संपादनः ए कुमार