भ्रष्टाचार के दलदल में फंसता रूस
२५ मई २०११रूसी सेना के वकील सर्गेई फ्रिडिस्की ने रूसी राजपत्र में कहा है, "हर साल रक्षा के लिए ज्यादा से ज्यादा पैसा दिया जाता है लेकिन सफल नतीजे नहीं मिलते हैं. बहुत ज्यादा पैसा चुराया जाता है. हर पांचवां रूबल (रूसी मुद्रा) चुरा लिया जाता है. सैनिकों को खराब क्वालिटी के हथियार मिल रहे हैं."
उन्होंने सटीक आंकड़ा नहीं दिया लेकिन संकेत दिए कि भ्रष्ट अधिकारी हर साल 10 अरब डॉलर डकार जाते हैं. फ्रिडिस्की के मुताबिक भ्रष्टाचारियों में अधिकारी, सेना के भ्रष्ट जनरल और धूर्त ठेकेदार शामिल हैं. रूस ने 2011 के लिए 53 अरब डॉलर का रक्षा बजट तय किया है.
रूस अब भी दुनिया में हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है. भारत समेत कई देश हर साल रूस से अरबों डॉलर के हथियार खरीदते हैं. सेना के वकील के मुताबिक भ्रष्टाचार इस हद तक पसर चुका है कि नौजवान रिश्वत देकर रक्षा क्षेत्र से जुड़ी सरकारी नौकरियां पाना चाहते हैं. भ्रष्टाचार आम जिंदगी का हिस्सा बन चुका है. ट्रैफिक पुलिस और डॉक्टरों से लेकर ऊंचे लेवल तक के ज्यादातर सरकारी कर्मचारियों में रिश्वतखोरी की परंपरा आम हो चली है.
भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल ने रूस को भ्रष्टाचार के मामले में 178 देशों की सूची में 154 स्थान पर रखा है. रूस में इतना ज्यादा भ्रष्टाचार पहले कभी नहीं देखा गया. भ्रष्टाचार के मामले में रूस ने भारत, चीन और ब्राजील जैसे धुरंधरों को पीछे छोड़ दिया है. ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की रैंकिंग में भारत 87वें, चीन 78वें और ब्राजील 69वें स्थान पर है.
रूस को निगल रहे इस दीमक की जानकारी राष्ट्रपति दिमित्री मेद्वेदेव को भी है. वह कहते हैं कि भ्रष्टाचार देश को पीछे की तरफ ढकेल रहा है. लेकिन रिश्वतखोरी के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि 2008 में मेद्वेदेव के सत्ता संभालने के बाद से हालात और बदतर हुए हैं.
एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर के बैंकों में अभी जितना काला धन जमा है उसमें सबसे ज्यादा पैसा भारतीयों का है, रूसी दूसरे नंबर पर हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: ए जमाल