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भ्रूणहत्या रोकने की अनोखी पहल

२७ जुलाई २०१२

भारत में कन्या भ्रूणहत्या के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. पिछले साल के आंकड़ों के अनुसार आजादी के बाद से नवजात लड़कियों की अनुपात इतना कम कभी नहा रहा, जितना अब है. लेकिन पंजाब का शहर पूरे देश के लिए मिसाल बन रहा है.

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तस्वीर: Fotolia/Carlush

पंजाब का नवांशहर सही मायनों में एक नया शहर बन गया है. यहां कन्या भ्रूणहत्या के मामले न के बराबर हैं. सरकार लोगों में जागरूकता भी फैला रही है और हर घर पर नजर भी रखी जा रही है. 2004 में नवांशहर में जन्मे बच्चों में लड़कियों का अनुपात बहुत कम था. हर हजार लड़कों पर सिर्फ 795 लड़कियों का जन्म हुआ. जबकि अब आठ साल बाद के आंकडे देख कर ऐसा नहीं लगता कि कभी इस शहर में कन्या भ्रूणहत्या इतनी बड़ी समस्या रही होगी. ताजा आंकड़ों के अनुसार अब यहां हर हजार लड़कों पर 949 लड़कियों का जन्म होता है. यह प्राकृतिक जन्म दर अनुपात 1000:952 के बहुत करीब है.

हर घर पर नजर

यह बदलाव आया सरकारी अधिकारी कृष्ण कुमार की पहल से. 2005 में उन्होंने गर्भवती महिलाओं पर लिंग जांच को ले कर सख्ती बरती. हालांकि भारत में लिंग जांच गैरकानूनी है और इसके लिए डॉक्टरों का लाइसेंस तक रद्द हो सकता है, लेकिन जगह जगह सस्ती अल्ट्रासाउंड मशीनें होने से इस पर ठीक से लगाम नहीं लगाई जा पा रही है. कुमार ने दो साल के बीच नवांशहर में करीब दो तिहाई अल्ट्रासाउंड सेंटर बंद करवा दिए. तीन मामलों में अधिकारियों ने स्टिंग ऑपरेशन भी किए. छिपे कैमरों की मदद से डॉक्टरों का पर्दाफाश किया गया. ये मामले अब अदालत में चल रहे हैं.

नवांशहर में प्रशासन ने ऐसा तरीका अपनाया है, जिससे न केवल डॉक्टरों पर दबाव बनाया जा सके, बल्कि मां बाप पर भी पूरी नजर रखी जा सके. कर्मचारी घर घर जा कर गर्भवती महिलाओं के बारे में पता करते हैं. इन आंकड़ों को का डाटाबेस तैयार किया जाता है. इसमें महिला के प्रसव के समय के बारे में भी लिखा जाता है, ताकि अधिकारी एक बार फिर घर आ कर सुनिश्चित कर सकें कि किसी कारण गर्भपात तो नहीं कराया गया है. यदि परिवार जवाब देने से इनकार कर दे या गर्भपात के बारे में बताए, तो पूरी छानबीन की

Symbolbild Embryo im Mutterleib Ultraschall
तस्वीर: Fotolia/ ingenium-design.de

मां बाप शर्मसार

इस काम में कई एनजीओ भी जिला प्रशासन का सहयोग कर रहे हैं. उपकार कोऑरडीनेशन सोसाइटी चलाने वाले जसपाल सिंह गिद्दा बताते हैं कि ऐसे मामलों में उनके कार्यकर्ता घर के बाहर बच्चे की मौत का मातम मनाते हुए गीत गाते हैं ताकि पूरे मुहल्ले को इस बारे में पता चल सके और परिवार को शर्मिंदगी महसूस हो. उनका कहना है कि इस तरह से लोगों पर सामजिक दबाव पड़ता है, वे शर्मसार होते हैं और भविष्य में ऐसे कदम से बचते हैं.

नवांशहर में चल रहा यह प्रयास पूरे भारत में सुर्खियां बटोर रहे हैं. लिंग परिक्षण कराए जाने के खिलाफ मुहिम चलाने वाले साबू जॉर्ज का मानना है कि यह तरीका सही नहीं है, "सरकार के इरादे नेक हैं. लेकिन उनका तरीका अनैतिक और गलत है. इस तरह से वे महिलाओं पर दबाव बढ़ा रही है. पहले ही महिलाओं पर परिवार की ओर से काफी दबाव होता है."

लेकिन नवांशहर के डॉक्टरों के विचार अलग हैं. यहां काम करने वाली डॉक्टर उषा किरण का कहना है कि भ्रूणहत्या को रोकने के लिए यही एक तरीका सही है, "जब तक सरकार बीच में नहीं आएगी, लोग खुद कुछ नहीं करेंगे. अगर ऐसा नहीं किया गया होता तो वे लोग जो बेटे की चाह में बेटियों की जान लेते हैं, वे आगे भी ऐसा ही करते." उषा किरण का कहना है कि पिछले कुछ समय में उन्होंने लोगों के रवैये में बदलाव देखा है, "पहले लोग मेरे पास आ कर कहते थे कि हमें बेटा चाहिए. लेकिन अब काफी वक्त से किसी ने मुझसे यह नहीं कहा है. इन दिनों मेरे क्लीनिक में महिलाएं उतनी ही बेटियों को जन्म देती हैं जितना बेटों को."

आईबी/एजेए (एएफपी)

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