मनमोहन तालिबान से मेलमिलाप के हक में
१२ मई २०११मनमोहन सिंह ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान अपने समाज को फिर से खड़ा करने के लिए भारत की मदद पर निर्भर कर सकता है. गुरुवार को दो दिन की अफगान यात्रा पर पहुंचे सिंह की अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई से मुलाकात हुई. इस दौरान क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद के खिलाफ सहयोग बढ़ाने और अफगान-भारत सामरिक साझेदारी को मजबूत करने पर बात हुई.
मनमोहन सिंह ने निजी रूप से करजई से बात की. बाद में दोपहर को अपने सम्मान में दिए गए भोज में सिंह ने अफगान राष्ट्रपति और वरिष्ठ अधिकारियों के सामने भाषण भी दिया. इसमें उन्होंने तालिबान के साथ बातचीत की अफगान सरकार की कोशिशों का समर्थन किया.
छह साल में पहला काबुल दौरा
पिछले छह साल में यह मनमोहन सिंह का पहला काबुल दौरा है. लेकिन यह ऐसे समय में हुआ जब अमेरिका जल्द ही अफगानिस्तान से वापसी शुरू करना चाहता है और हाल ही में पाकिस्तान के एबटाबाद शहर में अल कायदा नेता ओसामा बिन लादेन एक अमेरिकी अभियान में मारा गया.
अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों का एक साथ हटना भारत के लिए चिंता का विषय है. उसे डर है कि वहां फिर से कहीं तालिबान का दबदबा कायम न हो जाए जिसका झुकाव भारत के प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान की तरफ है. 2001 में अमेरिकी हमले के बाद ही भारत ने अफगानिस्तान के साथ राजनयिक रिश्ते कायम कर लिए जो इससे पहले लगभग दो दशक तक टूटे रहे. तब से भारत ने अफगानिस्तान को लगभग 1.3 अरब डॉलर की मदद दी है जो सड़क से लेकर बिजली लाइनें बिछाने पर खर्च की गई. भारत ने नई अफगान संसद का भी निर्माण कराया है.
लेकिन अफगानिस्तान में भारत की मदद से हो रहे विकास कार्यों पर पाकिस्तान को सख्त एतराज है. पाकिस्तान की सरकार और मजबूत सेना हमेशा अफगानिस्तान को अपनी सामरिक पूंजी मानती है. पाकिस्तान के पूर्व सैन्य जनरल तलत मसूद का कहना है, "भारत और अफगानिस्तान के बीच रिश्तों को मजबूत करने वाला कोई भी घटनाक्रम पाकिस्तान की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाता है."
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः ईशा भाटिया