ममता ने खुले रखे हैं विकल्प
१९ सितम्बर २०१२बनर्जी का पूरा राजनीतिक करियर ही ऐसे फैसलों से भरा है. केंद्र सरकार के समर्थन वापस लेने के बाद भी चित भी मेरी और पट भी मेरी की तर्ज पर यूपीए में वापसी का विकल्प खुला रखा है. उन्होंने अपने मंत्रियों के इस्तीफे से पहले केंद्र को 72 घंटे का और समय दे दिया है. पेट्रेलियम उत्पादों की मूल्यवृद्धि, रेल किराए, एनसीटीसी के गठन, राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपित चुनाव और एफडीआई समेत विभिन्न मुद्दों पर इस साल की शुरुआत से ही ममता और यूपीए सरकार के बीच तकरार होती रही है.
डीजल की कीमतों में वृद्धि और रसोई गैस की नियंत्रित सप्लाई के फैसले पर ममता की नाराजगी अभी खत्म ही नहीं हुई थी कि सरकार ने मल्टीब्रांड खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को हरी झंडी दिखा कर आग में घी डाल दिया. इससे पहले जब मई में डीजल और पेट्रोल की कीमतें बढ़ी थीं तब ममता के विरोध के चलते बाद में सरकार को कीमतें घटानी पड़ी थीं.
ममता ने इस बार हुई बढ़ोतरी के विरोध में सड़क पर उतर गईं. उन्होंने इस दौरान यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी को एक एसएमएस भेज कर कहा, "मैडम इन फैसलों को वापस लेने की व्यवस्था कीजिए. ऐसा नहीं होने की स्थिति में गठजोड़ टूट जाएगा." लेकिन सोनिया या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोई कदम नहीं उठाया. केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने उल्टे यह कर ममता की नाराजगी और बढ़ा दी कि सरकार फैसलों को वापस नहीं लेगी. आखिर मंगलवार को शाम को तीन घंटे से ज्यादा समय तक चली बैठक के बाद ममता ने समर्थन वापसी का एलान कर दिया.
बैठक में क्या हुआ
पहले यह बैठक महज तृणमूल कांग्रेस संसदीय दल की थी. लेकिन बाद में राज्य के मंत्रियों और दूसरे नेताओं को भी बुला लिया गया. दिल्ली में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की होने वाली बैठक के बाद शायद ममता के पास कोई संदेश आ सकता है, इस उम्मीद में बैठक लंबी खिंचती रही. लेकिन कांग्रेस की ओर से कोई संदेश नहीं मिलने के बाद मजबूरन ममता ने खचाखच भरी प्रेस कांफ्रेंस में यूपीए से नाता तोड़ने का एलान कर दिया.
इससे पहले पूरे दिन इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि ममता केंद्रीय मंत्रिमंडल से अपने मंत्रियों को भले हटा लें, यूपीए को बाहर से समर्थन जारी रखेंगी. ममता कई बार कह चुकी थीं कि तृणमूल कांग्रेस सरकार गिराने के पक्ष में नहीं है. बैठक के दौरान तृणमूल के तीन केंद्रीय मंत्रियों ने शायद सत्ता छिन जाने के डर से समर्थन वापसी के फैसले का दबे स्वर में विरोध किया. लेकिन बाकी तमाम नेता इसके पक्ष में थे. नतीजतन केंद्रीय मंत्रियों को भी मन मार कर इस फैसले पर हामी भरनी पड़ी.
समझौते की राह
ममता ने अपने फैसले का एलान करते हुए केंद्र सरकार को और 72 घंटे का अल्टीमेटम देते हुए कहा कि उनके मंत्री शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद शाम तीन बजे प्रधानमंत्री को अपने इस्तीफे सौंप देंगे. उन्होंने कहा, "हमारी तीन शर्तें हैं. पहली केंद्र सरकार मल्टीब्रांड खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश रोके, दूसरा डीजल की कीमत में तीन से चार रुपये तक कटौती करे और तीसरा रसोई गैस के सब्सिडी वाले सिलेंडरों की सप्लाई साल में छह से बढ़ा कर 12 करे." तृणमूल अध्यक्ष ने कहा कि केंद्र सरकार अगर शर्तों को मान लेती है तो समर्थन वापसी के फैसले पर दोबारा विचार कर सकती हैं.
ममता का असमंजस
ममता शुरू से ही पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ाए जाने के खिलाफ रही हैं. वर्ष 2000 में एनडीए सरकार के कार्यकाल में रेल मंत्री रहते हुए भी उन्होंने सहयोगी अजित पांजा के साथ इसी मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था. हालांकि बाद में वह इस्तीफा वापस ले लिया. इससे पहले जब जब कीमतों में बढ़ोतरी हुई, उन्होंने सड़क पर उतर कर विरोध जताया.
लेकिन अबकी ममता बनर्जी बीजेपी और वामपंथियों के मुकाबले पिछड़ रही थीं. एनडीए ने इसी मुद्दे पर 20 सितंबर को भारत बंद की अपील की है. मौके की नजाकत भांपते हुए सीपीएम की अगुवाई वाले वाम मोर्चा ने भी इसी मुद्दे पर उसी दिन आम हड़ताल की अपील कर दी है. इससे ममता को लगा कि विपक्षी राजनीतिक पार्टियां कहीं इस मुद्दे पर उनसे आगे न निकल जाएं.
ऐसे में अगले तृणमूल कांग्रेस पर जनविरोधी होने का ठप्पा लग सकता है. इस तरह समर्थन वापसी का फैसला कर ममता ने एक तीर से कई शिकार किए हैं. अगर सरकार दबाव में आ कर कीमतों में कुछ कटौती का फैसला करती है तब भी ममता की छवि निखरेगी और अगर नहीं तो यूपीए से नाता तोड़ कर ममता जता सकती हैं कि वे देश के आम लोगों के हित में कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं. ममता ने कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए कहा कि कोलगेट यानी कोयला घोटाला दबाने के लिए ही कांग्रेस ने एफडीआई गेट खोल दिया है.
आगे की राह
ममता के बाहर जाने के बाद पहला समीकरण तो यह बनता है कि कांग्रेस उनकी शर्तें कुछ हद तक मान ले और वह यूपीए में लौट आएं. दूसरी सूरत में तृणमूल की जगह समाजवादी पार्टी सरकार में शामिल हो सकती है. मध्यावधि चुनाव अंतिम विकल्प है. इसकी वजह यह है कि सरकार की विरोधी या उसे बाहर से समर्थन देने वाली कोई भी पार्टी चुनाव के लिए तैयार नहीं है. ऐसे में सरकार ममता की गैरमौजूदगी में दूसरे दलों की बैसाखी पर बाकी का कार्यकाल पूरा कर सकती है.
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः ए जमाल