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महिलाओं का मार्केटः ईमा मार्केट

४ दिसम्बर २०१०

पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की राजधानी इम्फाल का यह ईमा यानी मदर्स मार्केट अकेला ऐसा बाजार है जहां तमाम दुकानें महिलाओं की हैं और यह बाजार कोई छोटा मोटा नहीं है. 19वीं सदी के बाजार में 3000 महिलाएं अलग अलग सामान बेचती हैं.

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मणिपुर का एक नजारातस्वीर: Bdnews24.com

कोई अपने बागान में उगाई सब्जियां बेचती है तो कोई हैंडलूम के कपड़े और फर्नीचर. इस बाजार में घर परिवार की जरूरत की हर चीज मिल जाती है. इनमें से कई महिलाएं तो ऐसी हैं जो अकेले यहां दुकान लगा कर ही अपना पूरा परिवार पालती हैं.

इस बाजार में हैंडलूम के कपड़े बेच कर छह लोगों का परिवार चलाने वाली ईबेमथोई उनमें से ही एक हैं. वह कहती हैं, "मैं 10 साल यहां हैंडलूम के कपड़े बेचती हूं. मेरी कमाई से बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्च निकल जाता है. मेरा एक बेटा बीए में पढ़ रहा है. पति मजदूरी करते हैं."

Menschen geben ihre Stimme ab in einerm Wahllokal
तस्वीर: Fotoagentur UNI

ईमा मार्केट सिर्फ एक बाजार ही नहीं. महिलाएं यहां राजनीतिक मुद्दों पर भी बहस करती नजर आती हैं. 18 साल पहले सरकार ने जब इन महिलाओं को हटाने का प्रयास किया तो इन लोगों ने एकजुट होकर सरकार का मुकाबला किया और उसे अपना फैसला वापस लेने पर मजबूर कर दिया था. वह महिला आंदोलन इतिहास बन चुका है.

ईमा मार्केट में प्लास्टिक के सामान बेचने वाली शांतिबाला कहती हैं, "मैं कई साल से अपने बूते ही घर चला रही हूं. इससे मैं आत्मनिर्भर हो गई हूं. अपनी मेहनत से चार पैसे कमाने की वजह से मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ा है. अब मैं अपने पैसे से जो चाहे, कर सकती हूं. बच्चे अब बड़े हो गए हैं. वह भी मेरी सहायता करते हैं. इस बाजार में मेरे जैसी कई महिलाएं हैं."

लेकिन राज्य की आदिवासी महिलाओं के लिए इस बाजार में कोई खास जगह नहीं है. एक गैरसरकारी संगठन की सदस्य लालिंगपुई कहती हैं कि आदिवासी महिलाएं शहर से दूर गांवों में रहती हैं. शहर में रहने वाली महिलाएं बाजार में दुकानों के आवंटन के मौके पर आवेदन देकर अपने नाम से दुकानें ले लेती हैं. ऐसे में ग्रामीण महिलाओं को थोक बिक्रेताओं के हाथों में अपना सामान बेचना पड़ता है. लालिंगपुई कहती हैं, "अगर इन आदिवासी महिलाओं के लिए ईमा मार्केट में दुकानें आरक्षित कर दी जाएं तो उनको अपनी उपज को और ज्यादा कीमत मिल सकती है. इस बाजार में रोजाना हजारों लोग आते हैं. बाजार में जगह मिलने की स्थिति में आदिवासी महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति और सचेत हो सकती हैं."

मणिपुर की महिलाएं बेहद मेहनती होती हैं. घर परिवार चलाने में भी इनकी भूमिका अहम है. इस बाजार ने महिलाओं को न सिर्फ अपने पैरों पर खड़े होने की ताकत दी है, बल्कि यह महिला सशक्तिकरण का केंद्र बन कर भी उभरा है. 35 साल की अरिंगलुई अपने खेतों में उगी सब्जियां और फल यहां बेचती है. उनका कहना है, "मैं अपने खेत में सब्जियां और फल उगाती हूं. सरकारी नौकरी नहीं होने की वजह से मैं बाजार में इनको बेच कर घर का खर्च चलाती हूं. ईमा मार्केट में मैं फल और सब्जियां बेचती हूं और उससे होने वाली आय से घर की रोजमर्रा की जरूरत का सामान खरीदती हूं."

बाजार के एक छोर पर सब्जी बेचने वाली रेसी कामेई की कहानी भी कुछ ऐसी है. आखिर वह रोज कितना कमा लेती है. इस सवाल पर कामेई बताती हैं, "यह तो सीजन पर निर्भर है. लेकिन रोज कम से कम 200-300 रुपये की आय तो हो ही जाती है. मेरे पति केले के फार्म में काम करते हैं. हम दोनों की कमाई से घर का खर्च आसानी से चल जाता है. मैं सप्ताह में चार पांच दिन इस बाजार में अपनी दुकान लगाती हूं."

यहां की महिलाएं मेहनती तो हैं. लेकिन वे अपने अधिकारों से पूरी तरह अवगत नहीं हैं. ईमा मार्केट इन महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक बनाने में भी अहम भूमिका निभा रहा है. देश के पूर्वोत्तर कोने में बसा यह बाजार दूसरे राज्यों के लिए भी एक मिसाल है.

रिपोर्टः प्रभाकर, इम्फाल से

संपादनः ए जमाल

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