मां बनने के पहले और बाद की चुनौतियां
३ फ़रवरी २००९भारत में हर सात मिनट में कोई न कोई गर्भवती स्त्री प्रसव संबंधी कारणों से मौत का शिकार बनती है. विश्व भर में होने वाली सालाना ऐसी 5 लाख मौतों में से 20 प्रतिशत अकेले भारत में होती हैं जहां हर साल 78 हज़ार गर्भवती महिलाएं बेमौत मारी जाती हैं. देश में 15 से 49 वर्ष तक की एक लाख गर्भवती महिलाओं में से वर्तमान में तीन सौ एक महिलाओं की प्रसव सम्बन्धी विभिन्न कारणों के चलते मृत्यु होती है जबकि संयुक्त राष्ट्र के पांचवे सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य पर अमल करते हुए इसे वर्ष 2015 तक 109 से नीचे लाया जाना है. सुरक्षित मातृत्व के इस लक्ष्य के तहत प्रसव संबंधी मृत्यु दर को तीन चौथाई तक कम किया जाना है. साथ ही प्रजननीय स्वास्थ्य सुविधाओं का दायरा भी सभी ज़रूरतमंदो तक फैलाया जाना है.
भारत में विभिन्न सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के कारण गर्भवती महिलाएं डॉक्टरों और अस्पतालों तक ही नहीं पहुंच पाती. ग्रामीण क्षेत्रों में तो स्थिति इतनी ख़राब है कि 60 प्रतिशत से ज़्यादा प्रसव अब भी घरों में ही कराये जाते है और वह भी किसी अप्रशिक्षित दाई की देखरेख में. 40 प्रतिशत से भी कम ग्रामीण महिलाएं गर्भधारण के बाद बेहद ज़रूरी समझी जाने वाली तीन डॉक्टरी जांचों के लिए अस्पताल पहुंचती है.
भारत में गर्भवती महिलाओं की मृत्यु आमतौर पर रक्तस्त्राव, संक्रमण, बाधित प्रसव, असुरक्षित गर्भपात, कम उम्र में गर्भधारण और उच्च दबाव से होने वाली गडबडियों के कारण होती है. गर्भवती महिलाओं को अस्पताल ले जाने में देरी और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में देरी वह कारण है जो मातृक मृत्यु दर यानि मैटरनल मोर्टिलिटी रेट में वृद्धि करते है. देश की आधी से ज़्यादा महिलाओं में ख़ून की कमी पाई जाती है जिसके चलते प्रसव के दौरान होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है. गर्भधारण के बाद टिटनेस के टीके और आवश्यक आयरन दवायें भी कई भारतीय महिलाओं को नहीं मिल पाती हैं.
यूं तो मातृक मृत्यु दर कम करने के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना, जननी सुरक्षा योजना और प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम लागू किये है और प्रसव के बाद अनुदान राशि और यातायात सहायता राशि भी दी जा रही है लेकिन इनकी पहुंच सभी महिलाओं तक नहीं है.
अनुमान है कि भारत में में एक वर्ष में दो करोड़ अस्सी लाख प्रसव होते है और इन सभी को चिकित्सा और उपचार सुविधा सुलभ हो सके, इसके लिए आवश्यक है डॉक्चरों और मेडिकल सुविधाओं की भरपूर उपलब्धता जो फिलहाल सम्भव नहीं हो पा रही है. देश की मातृक मृत्यु का दो तिहाई भाग 9 राज्यों - बिहार, झारखण्ड उड़ीसा मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ राजस्थान उत्तर प्रदेश और असम में केन्द्रित है. मातृक मृत्यु दर केरल में सबसे कम है तो वहीं उत्तर प्रदेश उत्तराखण्ड और राजस्थान इस मामले में सबसे आगे हैं.
अशिक्षा, गरीबी, वांछित साधनों और जागरुकता का अभाव चंद ऐसे कारण है जो इस पांचवे सहस्त्राबदी लक्ष्य की राह में सबसे बड़े बाधक है. ऐसे में अगले 6 वर्षो में इसे हासिल कर पाना संभव नहीं दिखता.