माओवादी भट्टराई बने नेपाल के प्रधानमंत्री
२९ अगस्त २०११रविवार को 601 सदस्यों वाली संविधान सभा में 340 सदस्यों ने बाबू राम भट्टराई की उम्मीदवारी का समर्थन किया. नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार राम चंद्र पौडेल को 235 मत मिले. भट्टराई ने कहा है कि उनकी जिम्मेदारी शांति प्रकिया को पूरा करना और नया संविधान बनाना है.
संविधान बनाने में देर
संविधान बनाने की समय सीमा कई बार बढ़ाई जा चुकी है. उसकी वर्तमान समय सीमा इसी महीने के अंत में समाप्त हो रही है. माओवादियों के नेतृत्व में सरकार बन जाने के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि नया संविधान बनाने के लिए सरकार को और कुछ महीने का समय दे दिया जाएगा.
इससे पहले मध्य अगस्त में कम्युनिस्ट पार्टी एमाले के झालानाथ खनाल ने छह महीने तक पद पर रहने के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने कहा था कि दूसरी पार्टियों का समर्थन न मिलने से वे नया संविधान बनाने और माओवादियों के साथ शांति समझौते को पूरा करने में बाधा आ रही है.
माओवादी विचारक
नेपाल के नए प्रधानमंत्री भट्टराई माओवादी पार्टी के विचारक हैं जिन्हें विद्रोही छापामारों के संगठन को राजनैतिक पार्टी में बदलने का श्रेय जाता है. 2008 में शांति संधि के बाद संविधान सभा के चुनावों में माओवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उबरी थी. पेशे से इंजीनियर 57 वर्षीय भट्टराई माओवादी पार्टी के उपाध्यक्ष हैं. 2008 के चुनावों के बाद माओवादियों ने पार्टी प्रमुख प्रचंड के नेतृत्व में एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था लेकिन उनकी सरकार ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाई थी और मई 2009 में गिर गई.
भारत में पढ़ाई करने वाले बाबूराम भट्टराई प्रधानमंत्री प्रचंड की सरकार में वित्त मंत्री थे. विश्व के सबसे गरीब मुल्कों में शामिल नेपाल में राजस्व में वृद्धि के कारण उनका बड़ा नाम हुआ था. गोरखा जिले में पुजारी परिवार में पैदा हुए भट्टराई ने अपना जीवन राजशाही के खात्मे के लिए लगाया, जिसे 2008 में समाप्त कर दिया गया. 1970 के दशक में नई दिल्ली में इंजीनियरिग की पढ़ाई करते हुए भट्टराई को भारत में निर्वासन में रह रहे कम्युनिस्ट नेताओं से साम्यवाद की दीक्षा मिली.
राजशाही की समाप्ति
2005 में माओवादी विद्रोह के शिखर पर भट्टराई ने दूसरी राजनैतिक पार्टियों के साथ सहयोग का पक्ष लिया था, जिसके बाद 2006 में नेपाल में राजशाही के खिलाफ जन प्रदर्शन हुआ. इसका अंत दो साल बाद शांति संधि और राजशाही की समाप्ति के साथ हुआ. लंबे समय तक प्रचंड और बाबू राम भट्टराई को एक दूसरे का प्रतिद्वंद्वी कहा जाता रहा है लेकिन प्रचंड ने स्वयं प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी के बदले झालानाथ खनाल के इस्तीफे के बाद भट्टराई का नाम प्रस्तावित किया.
नेपाल की राजनीति में हाल के वर्षों में सत्ता के लिए संघर्ष करती राजनैतिक पार्टियों के बीच नियमित रूप से गतिरोध पैदा होते रहे हैं. राजशाही की समाप्ति के बाद आवश्यक सुधारों की दिशा में ज्यादा प्रगति नहीं हुई है. भट्टराई ने प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद कहा, "मैं समझता हूं कि देश का भविष्य अत्यंत उज्जवल है और हम संविधान बनाने और शांति प्रक्रिया के समापन का कर्तव्य पूरा कर सकते हैं." यह इस बात पर निर्भर करेगा कि भट्टराई गठबंधन को साथ लेकर चलने में सफल हो पाते हैं या नहीं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: आभा एम