माकपा की मुसीबत बनी ममता की रैली
८ अगस्त २०१०बंगाल का लालगढ़ इलाका तो माओवादी गतिविधियों और माओवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के साझा अभियान की वजह से बीते डेढ़ साल से भी ज्यादा समय से सुर्खियों में है. लेकिन अब सोमवार को वहां तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता की रैली के मुद्दे पर दोनों पक्षों यानी तृणमूल और माकपा के बीच नए सिरे से तलवारें खिंची हुई हैं.
यह रैली राज्य की वाममोर्चा सरकार के लिए एक बड़ी मुसीबत बन गई है. कहने को तो यह रैली गैर-राजनीतिक आतंक विरोधी मंच के बैनर तले होगी, लेकिन जिस रैली में ममता के कद का नेता शामिल हो, वह राजनीतिक रंग से भला अछूती कैसे रह सकती है. इस रैली के मुद्दे पर तनातनी तो उसी दिन से चल रही थी जब ममता ने इसका औपचारिक एलान किया था. लेकिन अब यह तनातनी बढ़कर अपने चरम पर पहुंच गई है.
बीते साल लालगढ़ में उपद्रव और हिंसा की शुरुआत के बाद यह उस इलाके में पहली बड़ी रैली होग. इससे पहले बीती मई में केंद्रीय गृह मंत्री पी.चिदंबरम लालगढ़ का दौरा कर चुके हैं. उन्होंने उसी समय कहा था कि राजनेताओं को इलाके का दौरा कर लोगों से मिलना-जुलना चाहिए.
पहले यह रैली तृणमूल कांग्रेस के बैनर तले होनी थी. बाद में ममता ने इसे गैर-राजनीतिक करार दिया. प्रदेश माकपा पहले से ही माओवादियों और तृणमूल के बीच साठ-गांठ के आरोप लगाती रही है. अब इस रैली ने उसे एक मुद्दा दे दिया है. माओवादियों और उससे जुड़ी पुलिस अत्याचार विरोधी समिति ने इस रैली का समर्थन किया है.
लेकिन ममता को भेजे एक खुले पत्र में माओवादियों ने उनसे कई सवाल भी पूछे हैं. इनमें मुख्य सवाल यह है कि ममता माओवादियों के खिलाफ जारी ऑपरेशन ग्रीन हंट को रोकने की पहल क्यों नहीं करतीं. रैली की अनुमति देते हुए राज्य सरकार ने कई शर्तें भी रखी थीं. ये शर्तें मुख्य रूप से सुरक्षा व्यवस्था से जुड़ी थीं. लेकिन ममता ने इन शर्तों को मानने से इंकार कर दिया है.
माकपा शुरू से ही तृणमूल पर माओवादियों के साथ मिल कर अपने कॉमरेडों की हत्या का आरोप लगाती रही है. राज्य में हिंसा की राजनीति में वैसे तो जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत पहले से ही चरितार्थ हो रही है, लेकिन लालगढ़ इलाके में बीते एक-डेढ़ साल जिस तेजी से माकपाइयों की हत्या हुई है उससे इलाके में लाल रंग ही मिटता नजर आ रहा है. कॉमरेडों की एक पूरी पीढ़ी लगभग साफ हो गई है. कई इलाकों में तो वामपंथ का कोई नामलेवा तक नहीं बचा है. माओवादी चुन-चुन कर माकपा कार्यकर्ताओं को मार रहे हैं. उनका आरोप है कि ये लोग सुरक्षा बलों के लिए मुखबिरी कर रहे हैं.
तृणमूल ने इस रैली में राज्य के दूसरे जिलों के कार्यकर्ताओं को भाग लेने से मना कर दिया गया है. इस रैली में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और स्वामी अग्निवेश हिस्सा लेंगे. दूसरी ओर लालगढ़ रैली को शीर्ष माओवादी नेता किशनजी ने पूरा समर्थन देने की घोषणा की है. माओवादी नेता ने कहा कि यह आतंकरोधी मंच के बैनर तले होने वाली गैर-राजनीतिक रैली है. हम पूरा सहयोग कर इसे कामयाब बनाएंगे.
किशनजी ने कहा है कि माओवादी इस रैली को सफल बनाएंगे क्योंकि स्वामी अग्निवेश व मेधा पाटकर जैसे सामाजिक कार्यकर्ता इसमें शामिल हो रहे हैं. नक्सली नेता ने आरोप लगाया कि माकपा और पुलिस लोगों को रैली में शामिल न होने के लिए धमका रही है.
ममता की रैली में सुरक्षा की जिम्मेदारी सीआरपीएफ को सौंपी जाएगी. सभा-जुलूस से लेकर लालगढ़ के आसपास के क्षेत्रों में सीआरपीएफ के जवान तैनात होंगे. राज्य पुलिस के अतिरिक्त जवान भी तैनात किए जाएंगे. मुख्य सचिव अर्द्धेंदु सेन ने बताया कि केंद्र से 9 अगस्त को लालगढ़ में ममता की सभा में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सीआरपीएफ जवान तैनात करने की अनुमति मांगी गई थी. इसकी अनुमति मिल गई है. इस बारे में सरकार ने राज्यपाल एमके नारायण को भी रिपोर्ट भेज दी है. राज्यपाल ने सरकार से उक्त रैली के लिए समुचित सुरक्षा व्यवस्था करने का अनुरोध करते हुए इस बारे में तफसील से जानकारी मांगी थी.
ममता ने कहा है कि वह 9 अगस्त को लालगढ़ में लोकतंत्र दिवस के रूप में मनाएंगी. उन्होंने आरोप लगाया है कि माकपा इस रैली में बाधा पहुंचाने की कोशिश कर रही है. मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ममता बनर्जी के लालगढ़ कार्यक्रम का पहले ही विरोध कर चुके हैं. उन्होंने कहा था कि लालगढ़ के हालात वैसे नहीं हैं कि इस तरह के कार्यक्रम किए जाएं.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता की इस रैली के दूरगामी नतीजे होंगे. अगर वह रैली बिना किसी बाधा के संपन्न होती है तो वामपंथी कटघरे में खड़े हो जाएंगे और अगर इस दौरान कोई हिंसा होती है तो सरकार की मंशा पर सवालिया निशान लग सकता है. यानी ममता की इस रैली ने माकपाई कॉमरेडों को एक ओर कुआं और दूसरी ओर खाई वाली हालत में खड़ा कर दिया है.
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः वी कुमार