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माली का संकट और फ्रांस की प्रतिष्ठा

१४ जनवरी २०१३

अफ्रीका में जब दुनिया भर के देशों की नजरें लगी हैं, तब फ्रांस ने माली में सैनिक अभियान चला कर एक बड़ा जोखिम उठाया है. इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ कार्रवाई नए राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलांद के लिए यह लिटमस टेस्ट साबित होगा.

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तस्वीर: Reuters

माली में फ्रांसीसी नागरिकों को अगवा किया गया है और यह इलाका फ्रांसीसी लोगों का पसंदीदा रहा है. आस पास के क्षेत्रों में करीब 30,000 फ्रांसीसी नागरिक रहते हैं, जिनके लिए सेना की यह कार्रवाई घातक साबित हो सकती है. इसके बाद फ्रांस के अंदर भी विरोध शुरू हो सकता है लेकिन राष्ट्रपति पद संभालने के बाद यह ओलांद का सबसे अहम फैसला माना जा रहा है.

फ्रांस की राजधानी पेरिस में महीनों से रणनीतिकारों की बैठक चल रही थी, जिसमें इस बात पर चर्चा हो रही थी कि फ्रांस के पूर्व उपनिवेश के मसले को किस तरह निपटाया जाए और क्या अफ्रीकी नेतृत्व वाली सेना को सहायता दी जाए. लेकिन यह रणनीति गुरुवार को उस समय फेल हो गई, जब आतंकवादियों ने कोना शहर पर कब्जा कर लिया. यह राजधानी बमाको का रास्ता है. माली की सेना के नाकाम होने के बाद ओलांद ने अपने राष्ट्रपति काल में पहले हमले का आदेश दिया. इसके बाद फ्रांसीसी सैनिक तैनात किए गए, वायु सैनिक तैनात हैं, हेलिकॉप्टरों की मदद ली जा रही है और रफाएल युद्धक जेट भी तैयार हैं, तो मामला कहां जा रहा है?

Mali Einsatz Polizei
तस्वीर: Issouf Sanogo/AFP/Getty Images

फ्रांस की यह दखल ऐसे वक्त में आई है, जब अफ्रीका के दूसरे देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में वह विद्रोहियों के दबाव के बीच राष्ट्रपति को बचा पाने में नाकाम रहा. इसके बाद राष्ट्रपति फ्रांसोजा बोजीजी ने सत्ता में बंटवारे का फैसला किया. फ्रांस ने जोर देकर कहा है कि माली में प्रवेश का मतलब किसी तरह का कब्जा नहीं है.

उसका कहना है कि यह संयुक्त राष्ट्र के नियमों के तहत हुआ है, जिसमें माली की सेना को समर्थन देने की बात कही गई है. फ्रांस का कहना है कि यह वैसा ही है, जैसा ब्रिटेन और फ्रांस ने लीबिया में मुअम्मर गद्दाफी की सेना के खिलाफ 2011 में हमले के वक्त किया था.

Mali Einsatz Französische Soldaten Kampfflugzeug
तस्वीर: Reuters

संयुक्त राष्ट्र और ब्रिटेन ने फ्रांस का साथ देने का एलान किया है, जबकि फ्रांस के विरोधी पार्टियों ने भी इसे सही कदम बताया है. विद्रोहियों के कब्जे वाले इलाकों में शरीया कानून लागू कर देने और लोगों के हाथ पांव काट देने की रिपोर्टें आ रही हैं, जिसके बाद फ्रांसीसी नागरिकों के भी सरकार के कदम का विरोध करने की वजह नहीं दिखती है.

लेकिन क्या फ्रांस के लिए यह अभियान इतना आसान होगा. कार्रवाई से पहले यह जितना आसान दिखता था, वैसा है नहीं. पहले ही दिन विद्रोहियों ने फ्रांस के एक हेलिकॉप्टर को मार गिराया. बताया जाता है कि लीबिया में विद्रोह के दौरान उनके हाथ अच्छे खासे हथियार आए हैं. उन्हें अल कायदा का समर्थन हासिल बताया जाता है.

Mali Einsatz Französische Soldaten Kampfflugzeug
तस्वीर: Reuters

फ्रांस के बंधक लंबे समय से अल कायदा के इन इस्लामी मगरीब के हाथों में हैं और उन्हें छुड़ाने की तमाम कोशिशें नाकाम रही हैं. पेरिस में सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक इंटेलिजेंस ऑन द अफ्रीकन कॉन्टिनेंट (सिस्का) के मथिऊ पेलेरिन का कहना है, "इस कार्रवाई के साथ फ्रांसीसी राष्ट्रपति यह दिखाना चाहते थे कि बंधकों के साथ वह खुद भी बंधक नहीं बनना चाहते हैं. यह राजनीतिक हिम्मत का काम है."

माली के कई विद्रोही अपने परिवारों के साथ रह रहे हैं और हमलों में उनके भी हताहत होने का खतरा है. फ्रांस के एक राजनयिक ने कहा कि अगर हम हमला करते हैं तो महिलाओं और बच्चों के मारे जाने का अंदेशा है. इस बात का भी खतरा है कि पड़ोसी मुस्लिम राष्ट्रों बुरकीना फासो, नाइजर और सेनेगल में रह रहे फ्रांसीसियों पर इसका असर पड़े.

यूरोप में सबसे ज्यादा करीब 50 लाख मुसलमान फ्रांस में रहते हैं. उसे पता है कि इस कार्रवाई का असर उसके घर पर भी पड़ सकता है. पिछले साल अल कायदा से प्रभावित एक शख्स ने टुलूस में सात लोगों की हत्या की थी. ओलांद ने कहा है कि हमलों की चिंता उन्हें भी है और इसलिए देश की सुरक्षा और कड़ी कर दी गई है.

एजेए/एनआर (रॉयटर्स)