मुक्के वाली मेरी की शोहरत
१३ अगस्त २०१२थोड़ी देर में इंतजार खत्म हुआ. भारत की कांस्य पदक विजेता मुक्केबाज मेरी कोम ने पब में कदम रखा. मणिपुर यूरोपीयन एसोसिएशन ने उन्हें सम्मानित करने के लिए यहां बुलाया था. वहां मौजूद हर शख्स ने गर्मजोशी के साथ कोम का स्वागत किया. भले ही मेरी ब्रिटेन की निकोला एडम्स से सेमीफाइनल का मुकाबला हार गई हों लेकिन लोकप्रियता में वह उनसे जरूर आगे हैं.
मेरी कोम के विक्टोरिया पब में आते ही चहल पहल तेज हो गई. हर कोई उनसे हाथ मिलाना चाहता था, उनके साथ फोटो खिंचवाना चाहता था. सबको मौका मिला. रिंग के अंदर धीर गंभीर मेरी ने इस मौके पर मणिपुरी भाषा में चटपटे चुटकुले सुना कर सबको अपना अलग रंग दिखाया. लगता ही नहीं था कि यह वही मेरी कोम हैं, जिन्होंने पांच बार अपने मुक्के के दम पर पूरी दुनिया में बादशाहत पाई है.
इसी बीच मणिपुर के दूसरे बॉक्सर देवेंद्रो सिंह भी यहां पहुंच गए. फिर तो पूरा माहौल मणिपुरी हो गया. कार्यक्रम शुरू होते ही मणिपुर के मुख्यमंत्री इबोबी सिंह का फोन आ गया. उन्होंने मेरी से पूछा, "आपको राज्य की ओर से और क्या चाहिए." कोम ने बिना किसी लाग लपेट के पुराना वादा याद दिलाया, "मेरी अकादमी के लिए जो दो एकड़ जमीन का वादा था, वह अभी तक पूरा नहीं हुआ है."
अपने दो जुड़वां बच्चों के साथ मणिपुर में रहने वाली मेरी कोम वहीं एक बॉक्सिंग अकादमी भी चलाती हैं. उन्हें उस तरह की सुविधाएं नहीं मिली हैं, जैसी दिल्ली या दूसरी जगहों पर मुक्केबाजों को मिलती हैं. फिर भी मेरी अपने पति के साथ इस काम में लगी हैं. मुख्यमंत्री से बात करने के बाद मेरी ने कहा, "मैंने उनसे कह दिया कि अब तो मैं ओलंपिक पदक विजेता हूं. मेरा हक ज्यादा बनता है."
बातचीत खत्म होने के बाद जश्न का मौका आया. शैंपेन की बोतल खोलने में मेरी कोम को अपने मुक्के से भी ज्यादा जोर आजमाना पड़ा. लेकिन जब पॉप की आवाज के साथ बोतल खुली तो माहौल तालियों से गड़गड़ा उठा. तभी फिर फोन की घंटी बजी. इस बार फोन यूरोप के ही स्विट्जरलैंड से आया था और बोलने वाला मणिपुरी में बात कर रहा था. फोन करने वाले ने कोम को अकादमी के लिए 1000 डॉलर देने का वादा किया.
थोड़ी सी भावुक होते हुए मेरी कोम ने फोन रख दिया. दूसरे कोने में बैठी उनकी मां की आंखें नम हो चुकी थीं. उन्हें इस बेटी पर प्यार और लाड से ज्यादा गर्व हो रहा था. दूसरे कोने में पति ओनलर खड़े थे. वह खामोश थे लेकिन चमकीली आंखें शायद कह रही थीं कि हर कामयाब पत्नी के पीछे एक पति का हाथ होता है.
रिपोर्टः नॉरिस प्रीतम, लंदन
संपादनः अनवर जे अशरफ