मुश्किल वक्त में ईयू चीन शिखर सम्मेलन
१४ फ़रवरी २०१२मुश्किल वक्त में हो रहा ईयू चीन शिखर सम्मेलन अहम है. वैसे तो दोनों पक्ष पिछले अक्तूबर में ही मिलना चाहते थे, लेकिन ग्रीस और यूरो संकट की वजह से सम्मेलन को स्थगित करना पड़ा. यूरोप का आर्थिक और वित्तीय संकट इस बार भी बातचीत के केंद्र में होगा जब यूरोपीय संघ के अध्यक्ष हर्मन फॉन रोम्पाय और यूरोपीय आयोग के प्रमुख जोसे मानुएल बारोसो चीनी प्रधानमंत्री वेन जिआबाओ से मिलेंगे. चीन के पास अरबों डॉलर का दुनिया का सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है. इसीलिए जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने भी चीन यात्रा में चीन से कहा था कि वह यूरोप को संकट में मदद करे. लेकिन चीन ने इसको लेकर बहुत ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया.
चार दशक के रिश्ते
जबसे 1975 में कूटनीतिक रिश्तों की शुरूआत हुई तबसे चीन और यूरोप के करीबी आर्थिक रिश्ते रहे हैं. 2010 में दोनों के बीच 400 अरब यूरो का व्यापार हुआ. ऐसे में चीन के लिए यूरोपीय संघ सबसे बड़ा आर्थिक साझेदार है. साथ ही ऐसा लग रहा है कि चीन यूरोप का भी सबसे प्रमुख व्यापारिक साझीदार बननेवाला है. अब तक अमेरिका यूरोपीय संघ का सबसे प्रमुख कारोबारी साथी था. चीन की दिलचस्पी है कि यूरोप आर्थिक लिहाज से स्थिर बना रहे. इसके अलावा चीन भारत, रूस, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील की तरह ईयू का रणनीतिक साझेदार भी है. ईयू की विदेश मामलों की प्रभारी कैथरीन ऐश्टन ने कुछ ही दिन पहले कहा था "ब्रिक्स देशों को अपनी आर्थिक मजबूती को राजनीतिक शक्ति में बदलना चाहिए और उन्हें आत्मविश्वास और महात्वकांक्षा के साथ आतंकवाद के खिलाफ युद्ध, जलवायु परिवर्तन और नागरिक अधिकारों की रक्षा जैसे मुद्दों को लेकर ईयू की मदद करनी चाहिए."
आर्थिक और राजनीतिक स्थिति
चीन यूरोपीय संघ को आर्थिक लिहाज से मजबूत मानता है. लेकिन उसे लगता है कि राजनीतिक लिहाज से ईयू की भूमिका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा नहीं है. इसकी वजह यह है कि यूरोपीय संघ अकसर बड़े फैसलों पर एकमत नहीं होता और ऐसे में वह दुनिया भर में विश्वसनीय नहीं माना जाता. चीन का आत्मविश्वास कितना बढ गया है वह इस बात से स्पष्ट है कि उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सीरिया के खिलाफ प्रस्ताव पर रूस के साथ वीटो कर दिया, जिसकी वजह से वह पारित नहीं हो पाया. ईयू के अध्यक्ष हर्मन फॉन रोम्पाय कहते हैं " हमको एक दूसरे के साथ ईमानदार होना है. राजनीतिक ढांचा बिलकुल अलग है और बहुत सारे ऐसे प्रश्न हैं, जिन पर हमारे विवाद है. लेकिन हम दोनों रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं."
कई तरह के मतभेद
वैसे चीन और ईयू के बीच कई मतभेद हैं. चीन चाहता है कि उसे बाजार अर्थव्यवस्था के रूप में मान्यता मिले और हथियार न बेचने के प्रतिबंध को खत्म किया जाए. ईयू चाहता है कि चीन अपने जहरीले गैसों के उत्सर्जन को कम करे और मानवाधिकारों की स्थिति में सुधार लाए.
एक दूसरे के करीब आने के लिए बीजिंग में हो रहे शिखर सम्मेलन के दौरान आपसी संबंधों को बढाने के लिए कई नई योजनाओं का एलान हो सकता है, उदाहरण के लिए टिकाऊ तरीके से शहरों का विकास और ऊर्जा के क्षेत्र में साझेदारी.
रिपोर्टः माथियस फॉन हाइन/पीए
संपादनः ए जमाल