मेसी की महानता पर बहस
२ मई २०११यह सच है कि आज का फुटबॉल क्रिस्टियानो रोनाल्डो या लायोनल मेसी के बिना पूरा नहीं होता. वह चीते की फुर्ती से गेंद पर झपटता है और फिर उसे लेकर गोली हो जाता है. यह गोली रुकती तभी है, जब गोल हो जाता है. फुटबॉल के साथ मेसी को देखना एक सुखद अनुभव देता है. लेकिन इतने भर से कोई खिलाड़ी इतिहास का हिस्सा नहीं बनता. मेसी ने बार्सिलोना के साथ खेलते हुए कुछ शानदार फुटबॉल जरूर दिखाया है. देखने वाले उनके छोटे कद और चीते की फुर्ती की वजह से उनकी तुलना माराडोना से भी जरूर करते हैं. उनके कई गोल का वीडियो यूट्यूब पर माराडोना के गोल के मुकाबले में दिखाया जाता है. उन्हें चाहने वालों की लंबी लिस्ट है.
पेले, माराडोना और जिदान की तरह मेसी भी दस नंबर की जर्सी पहनते हैं और गेंद के साथ उनकी दोस्ती भरी छेड़ छाड़ देखकर मन प्रसन्न हो उठता है. दो हजार चार से उनका बार्सिलोना क्लब के साथ रिश्ता रहा है. इस दौरान उन्होंने कोई पौने दो सौ मैच खेले हैं और इसमें लगभग एक सौ बीस गोल किए हैं.
कोई भी खिलाड़ी अपनी टीम की कामयाबी की वजह से ही महान बनता है. पेले को लेकर ब्राजील दो वर्ल्ड कप जीता है, माराडोना के साथ अर्जेंटीना ने एक जीता है, दूसरे के फाइनल तक पहुंचा है. जिदान ने भी फ्रांस की टीम को विश्व चैंपियन बनाया है. लेकिन मेसी के साथ ऐसा नहीं है. वह निजी तौर पर भले ही चमकते रहे हों लेकिन उन्होंने टीम के लिए कभी बड़ा कारनामा नहीं किया है. सच तो यह है कि उनके टीम में रहते हुए अर्जेंटीना ने अपनी सबसे बुरा हार देखी है. दो साल पहले बोलीविया ने वर्ल्ड कप क्वालीफाइंग में उसे एक के मुकाबले छह गोल से हरा दिया. इतना ही नहीं, 2010 वर्ल्ड कप में जब जर्मनी ने अर्जेंटीना को चार गोल से पीट दिया, तो उस टीम में भी मेसी थे. तब वे कुछ नहीं कर पाए.
लेकिन इन नाकामियों के बाद भी मेसी एक करिश्माई फुटबॉलर जरूर हैं, जिनके सामने एक बड़ा विशाल करियर खुला दिखता है. और अभी तो वह सिर्फ 23 साल के हैं.
रिपोर्ट: अनवर जे अशरफ
संपादन: ओ सिंह