"मैर्केल सारकोजी पर भरोसा नहीं"
२० अगस्त २०११शुक्रवार को जर्मनी में एक सर्वे जारी हुआ जिसमें पता चला कि जर्मनी के ज्यादातर लोगों को अपनी नेता अंगेला मैर्केल पर भरोसा नहीं है. इस सर्वे के मुताबिक 20 फीसदी लोग तो इस बात को मानने को तैयार ही नहीं हैं अंगेला मैर्केल आर्थिक संकट को हल कर सकती हैं. साथ ही 55 फीसदी लोगों का भरोसा भी बहुत कम यानी न के बराबर है. हालांकि वह पूरी तरह खारिज नहीं करते. लेकिन टीवी चैनल एआरडी पर जारी इस सर्वे में कहा गया कि कुल मिलाकर 75 फीसदी लोगों को अंगेला मैर्केल पर भरोसा नहीं है.
सोरकोजी और मैर्केल नाकाम
ऐसे लोग 22 फीसदी हैं जिन्हें पूरा भरोसा है कि यूरोप की सबसे सफल अर्थव्यस्था जर्मनी की नेता अंगेला मैर्केल यूरो संकट से देश और यूरोप को निकालने की काबिलियत रखती हैं. इन्फ्राटेस्ट डिमाप ने यह सर्वेक्षण करने के लिए बीते मंगलवार और बुधवार को एक हजार एक लोगों से बातचीत की.
अंगेला मैर्केल ने मंगलवार को फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोजी से मुलाकात की थी. यूरोपीय संघ के इन दो सबसे बड़े नेताओं ने यूरोप में फैल रहे कर्ज संकट के हल खोजने पर चर्चा की. इस वक्त 17 देश यूरो को अपनी मुद्रा के रूप में इस्तेमाल करते हैं. ये सभी देश कर्ज संकट की जद में हैं.
ग्रीस, आयरलैंड और पुर्तगाल पहले ही मदद पा चुके हैं. लेकिन संकट का फैलाव रुकने का नाम नहीं ले रहा है. इटली और स्पेन भी इसके मुहाने पर खड़े हैं. खतरा यहां तक पहुंच चुका है कि इस महीने यूरोपीयन सेंट्रल बैंक को बॉन्ड मार्केट में दखल देना पड़ा ताकि इटली और स्पेन का उधार इस हद तक न चला जाए कि उन्हें भी बेलआउट पैकेज की जरूरत पड़ने लगे.
बाजार धराशायी
पूरा यूरोप सारकोजी और मैर्केल की ओर देख रहा है क्योंकि यही दोनों संकट से उबरने के लिए चल रही कोशिशों का नेतृत्व कर रहे हैं. लेकिन मैर्केल के साथ साथ सारकोजी की साख भी गिर रही है. कम से कम जर्मनी में तो 75 फीसदी लोगों को उन पर भरोसा नहीं है. इन्फ्राटेस्ट के सर्वे में 75 फीसदी लोगों ने सारकोजी के भी खिलाफ ही मत दिया.
यह सर्वे ऐसे समय में आया है जब यूरोप के शेयर बाजार धड़ाधड़ गिर रहे हैं. निवेशकों के टूटते भरोसे को दिखाते पूरे यूरोप के बाजार शुक्रवार को भी खराब हालत में ही रहे. जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में डीएएक्स इंडेक्स की शुरुआत ही चार फीसदी से ज्यादा की गिरावट से हुई. गुरुवार को यह छह फीसदी से ज्यादा गिरा था जो कि 2008 के बाद से सबसे बड़ी गिरावट है.
जर्मनी में तो लोग अपने देश को लेकर बेहद फिक्रमंद हैं क्योंकि जब भी संकटग्रस्त देशों की मदद की बात आती है तो सबसे पहले उन्हीं के देश से उम्मीद की जाती है. ऐसे में लोगों को लग रहा है कि यूरोजोन के बाकी देशों की खराब मैनेजमेंट का नुकसान उन्हें भुगतना पड़ रहा है. समस्या यह भी है कि ज्यादातर लोगों को समझ में ही नहीं आ रहा है कि संकट हल करने के लिए किस तरह के उपाय किए जा रहे हैं. सर्वे में 71 फीसदी लोगों ने कहा कि यूरोपीय स्तर पर उठाए जा रहे कदम उनकी समझ से बाहर हैं. इस सर्वे से यह संकेत भी मिला कि अगर आज चुनाव हो जाते हैं तो अंगेला मैर्केल की सरकार की सत्ता में वापसी नहीं होगी.
पूरे यूरोप में असंतोष
मैर्केल और सारकोजी की समस्या सिर्फ जर्मनी तक नहीं है. यूरोप के कई देश इसी सुर में बोल रहे हैं. मसलन सारकोजी और मैर्केल ने बैठक के बाद जो बातें की, वे ऑस्ट्रिया, फिनलैंड और आयरलैंड को सख्त नागवार गुजरीं. दोनों नेताओं ने कुछ कड़े कदम उठाने की बात कही थी जिनमें बजट नीतियों पर देशों की संप्रभुता खत्म होने जैसे संकेत मिले.
यूरोपीय संघ के मौजूदा अध्यक्ष पोलैंड ने भी सारकोजी और मैर्केल की बैठक से आए उपायों पर असंतोष जताया है. पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने एक बहस के दौरान टेलीविजन पर कहा, "हम मैर्केल-सारकोजी समिट के नतीजों से संतुष्ट नहीं हैं. इसमें यूरोजोन के वित्तीय प्रबंधन का नेतृत्व करने का माद्दा नहीं है. हम और ज्यादा ठोस उपाय चाहते हैं."
बाजार विश्लेषक ने चेतावनी दे दी है कि यूरो को बचाने के लिए फंड का आकार बढ़ाने के बारे में कोई ठोस आश्वासन मिल नहीं रहा है और देशों के बीच राजनीतिक असहमति बढ़ती जा रही है. इसका कर्ज में दबे देशों पर खतरनाक असर हो सकता है. साल. ओपेनहाइम के चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर वोल्फगांग लिओनी कहते हैं, "जो फैसले हो रहे हैं उनमें ठोस उपाय तो बहुत कम हैं. बाजार ऐसा बिल्कुल नहीं चाहते."
यह असंतोष लगातार गिरते बाजारों के रूप में जाहिर भी हो रहा है. लेकिन असंतोष संकट को खत्म नहीं करेगा, और ज्यादा बढ़ाएगा. ऐसा न अंगेला मैर्केल चाहेंगी, न निकोला सारकोजी.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः आभा एम