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म्यांमार में दो पत्रकारों को सात साल की सजा

३ सितम्बर २०१८

म्यांमार की एक अदालत ने गोपनीयता कानून के उल्लघंन मामले में समाचार एजेंसी रॉयटर्स के दो पत्रकारों को सात साल की सजा सुनाई है. इन पत्रकारों को रोहिंग्या मामले की रिपोर्टिंग की दौरान गिरफ्तार किया गया था.

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Myanmar verurteilte Journalisten
तस्वीर: Reuters/A. Wang

ब्रिटिश काल से चल रहे इस गोपनीय कानून में 14 साल की अधिकतम सजा का प्रावधान है. दोनों पत्रकारों वा लोन (32) और क्यो सो ओ (28)  ने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार किया है. उन्होंने अदालत से कहा है कि उन्हें पिछले साल दिसंबर में उस वक्त गिरफ्तार किया गया जब वह रखाइन प्रांत के एक गांव में 10 रोहिंग्या मुसलमानों की हत्या और सेना व पुलिस द्वारा किए गए अपराधों की जांच कर रहे थे.

Myanmar verurteilte Journalisten
तस्वीर: Reuters/A. Wang

उन्होंने बताया कि गिरफ्तारी से पहले एक बार पुलिस ने उन्हें डिनर के लिए आमंत्रित किया था, जहां उन्हें डॉक्यूमेंट्स दिए गए थे. हालांकि अदालत पर पत्रकारों की बातों का कोई असर नहीं हुआ. कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, "ये साफ है कि आरोपियों का राज्य के हितों को नुकसान पहुंचाने का इरादा था, और इसलिए उन्हें गोपनीयता कानून के तहत दोषी माना जाता है."  

इस मामले की दुनिया भर में आलोचना हुई है और पत्रकारों की स्वतंत्रता से जुड़े कई सवाल उठे हैं. फैसला आने से दो दिन पहले यांगून की सड़कों पर करीब 100 से भी अधिक पत्रकारों और कार्यकर्ताओं ने जेल में बंद दोनों पत्रकारों के समर्थन में मार्च किया था. मार्च में शामिल एक पत्रकार ने एएफपी से कहा, "हम वा लोन और क्यो सो ओ की तुरंत रिहाई चाहते हैं. सूचना का अधिकार और सूचना तक लोगों की पहुंच आज आसान नहीं रही."

संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ समेत कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अलावा अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने भी दोनों पत्रकारों की रिहाई की मांग की है. रॉयटर्स के एडिटर स्टीफन जे एडलर ने कहा, "यह म्यांमार समेत रॉयटर्स के पत्रकार वा लोन व क्यो सो ओ और पूरी प्रेस के लिए एक बुरा दिन है." अब बचाव पक्ष इस फैसले के खिलाफ क्षेत्रीय अदालत और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है.

हाल में ही संयुक्त राष्ट्र ने रखाइन में हुई हिंसा से जुड़ी एक स्टडी पेश की है. इसमें म्यांमार के सेना प्रमुख मिन आंग हलैंग को रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ छेड़े गए "जातीय समुदाय" का आरोपी कहा गया था. वहीं नफरत फैलाने जैसे आरोपों के चलते फेसबुक ने भी सेना प्रमुख समेत 19 सैन्य अधिकारियों को अपने प्लेटफॉर्म से ब्लॉक कर दिया था.

एए/ (एएफपी, रॉयटर्स)