यहूदी विरोध के दंश से अब भी जूझता जर्मनी
१३ नवम्बर २०११जर्मन सरकार की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट में पता चला है कि यहूदियों के प्रति जर्मन समाज के दिल में अब भी कहीं न कहीं कड़वाहट पल रही है. रिपोर्ट का दावा है कि रोजमर्रा की जिंदगी में जर्मन यहूदियों को अब भी भेदभाव सहन करना पड़ रहा है.
जर्मन युवा यहूदी शब्द का इस्तेमाल गाली के रूप में तब भी करते हैं जब उनके गुस्से की वजह कोई यहूदी नहीं होता. यहां तक कि तुम्हारा रिश्ता ऑशवित्ज से है यह भी अकसर सुनाई दे जाता है. इन सब के बारे में हाल ही में जारी एक रिपोर्ट से पता चला है. रिपोर्ट जर्मन सरकार की तरफ से नियुक्त विशेषज्ञों ने तैयार की है. ये विशेषज्ञ अब एक निश्चित अंतराल पर सरकार को लगातार जर्मन समाज में यहूदी विरोधी भावना इस बारे में नई जानकारी देते रहेंगे.
प्रारंभिक रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने भेदभाव की एक पूरी सूची तैयार की है. इसमें भेदभाव चाहे निजी गुटों के बीच हो, पब में, खेल के मैदान में, फुटबॉल स्टेडियम या फिर ऑनलाइन की दुनिया में सबका जिक्र किया गया है. रिपोर्ट बताती है कि जर्मन यहूदियों के लिए यहूदी विरोधी भावना जीवन की सच्चाई है. हालांकि इस तरह का कोई भी विचार या भावना जर्मनी में आधिकारिक रूप से गैरकानूनी है. यहूदी विरोधी भावना देश के भीतर कम से कम 20 फीसदी आबादी के बीच किसी न किसी रूप में मौजूद है.
गोपनीय यहूदी विरोध
सरकार के पैनल में लंदन के इतिहासकार पीटर लॉन्गरीश और हाइडलबर्ग कॉलेज ऑफ जूइश स्ट्डीज के प्रमुख जोहान्स हाइल भी हैं. इनकी रिसर्च हाल में किए गए कई सर्वे पर आधारित है. पुलिस के पास मौजूद आंकड़े बताते हैं कि यहूदी विरोधी भावना से जुड़े 90 फीसदी अपराध के लिए धुर दक्षिणपंथी चरमपंथी जिम्मेदार हैं. इन लोगों पर आरोप है कि ये भड़काने वाले बयान देते हैं, यहूदी कब्रों का अनादर करते हैं, होलोकॉस्ट से इनकार करते हैं और यहूदियों के खिलाफ कुछ छोटे मोटे हमले करते हैं. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कई बार मीडिया की खबरों से ऐसा जाहिर होता है कि यहूदियों के खिलाफ हमलों के पीछे ज्यादातर अरब मूल के लोगों और मुसलमानों का हाथ है, जो सच नहीं है. मध्यपूर्व में चल रहे विवाद की वजह से यह विचार पैदा हुआ है, "इस तरह के लोगों के पास यहूदी विरोध का दुष्प्रचार करने के लिए खास मकसद है" लेकिन इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.
समय से पीछे
अपनी रिपोर्ट की बातों की व्याख्या करने के दौरान विशेषज्ञों ने जर्मन सरकार की शिक्षा की भी नाकामी के लिए आलोचना की. उनका दावा है कि बच्चों को नाजीवाद के दौरान यहूदियों पर हुए जुल्मों के बारे में पढ़ाना भर ही काफी नहीं है. जर्मनी की इस्राएल के प्रति एक विशेष जिम्मेदारी है. इसके बजाय इस बात पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिए कि यहूदी विरोध की भावना मध्यपूर्व के विवाद, इस्लाम और आर्थिक संकट से जुड़ी है.
नया नजरिया कुछ हद तक इस बात की व्याख्या कर देता है कि क्यों 1970 के बाद से ही जर्मन समाज में यहूदी विरोध की भावना जो खत्म हो रही थी वह जारी नहीं रह सकी. इस तरह का चलन उभर कर आया है कि वह पीढ़ी जो राष्ट्रीय समाजवाद से प्रभावित थी, खत्म हो गई है. चिंता इस ओर भी है कि यहूदी विरोधी लेख और विडियो इंटरनेट पर खूब प्रसारित हो रहे हैं और उन्हें रोक पाना मुश्किल साबित हो रहा है.
व्यापक रणनीति की कमी
रिपोर्ट में इस बात की भी दलील दी गई है कि अंतरराष्ट्रीय आर्थिक तंत्र की बढ़ती आलोचना ने पुराने यहूदी विरोधी बातों को फिर से उभार दिया है. लालची यहूदी और यहूदी साजिशों की बात की जाने लगी है.
इसकी पुष्टि 2009 में बीलफेल्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च से भी हो जाती है. इस रिसर्च में पता चला था कि हर पांच में से एक आदमी यह महसूस करता है कि यहूदी लोगों का आर्थिक दुनिया पर बहुत असर है. रिसर्च में शामिल 40 फीसदी लोगों की राय थी कि आज के यहूदी अभी भी जर्मनी के नाजी अतीत से लाभ उठा रहे हैं.
हालांकि विशेषज्ञों ने जर्मनी मे यहूदी विरोध से निबटने की कोशिशों की ओर ध्यान दिलाया है लेकिन उनका यह भी कहना है कि कोई व्यापक रणनीति नहीं है. आंकड़ों की निगाह से देखें तो जर्मनी यूरोपीय टेबल में यहूदी विरोध की समस्या के मामले में बीच में हैं. हालांकि उसका यह दर्जा पोलैंड, हंगरी और पुर्तगाल से ऊपर है जहां यहूदियों के साथ बड़े व्यापक रूप से भेदभाव होता है.
रिपोर्टः बर्न्ड ग्रैसलर/एन रंजन
संपादनः वी कुमार