युद्ध करा रहा है जलवायु परिवर्तन
२६ अगस्त २०११मशहूर वैज्ञानिक पत्रिका नेचर के ताजा अंक में इस रिसर्च का जिक्र है, जिसमें कहा गया है कि अल नीनो से प्रभावित देशों में आंतरिक उथल पुथल ला नीना प्रभावित देशों से कहीं ज्यादा होता है. रिसर्चरों का दावा है कि हॉर्न ऑफ अफ्रीका में सूखा और इसकी वजह से गृह युद्ध की जो स्थिति है, वह सीधे सीधे जलवायु परिवर्तन का नतीजा है.
लेकिन रिसर्चरों का कहना है कि सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि कुछ जगहों पर मनुष्य निर्मित ग्लोबल वॉर्मिंग है. इसकी वजह से हिंसा फैल रही है, जो आने वाले दशकों में भयावह स्वरूप ले सकती है.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मौसम वैज्ञानिक मार्क केन का कहना है, "यह बिना किसी शक के दिखाता है कि मौसम में बदलाव की वजह से लोगों में लड़ने की इच्छा पैदा हो रही है."
अल नीनो का प्रभाव
पहले इस क्षेत्र को अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन के नाम से जाना जाता था, जो दो से सात साल के बीच आया करता था और इसका प्रभाव नौ महीने से दो साल तक रहता था. इसकी वजह से खेती, जंगल और मछलीपालन में भारी नुकसान उठाना पड़ता था.
इसके कारण आने वाला अल नीनो बारिश के तरीकों और तापमान में अजीबोगरीब परविर्तन कर देता है. इसकी वजह से अफ्रीका के ज्यादातर हिस्सों, दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया में जबरदस्त गर्मी पड़ती है और शुष्क हवाएं चलती हैं.
जब यह चक्र उलटी तरफ चलता है, तो उससे ला नीना का उद्भव होता है, जो प्रशांत के पूर्वी हिस्सों में भारी बारिश का कारण बनता है.
रिसर्च में इन मौसमी बदलाव को 1950 से 2004 के बीच के काल में सीमा संघर्ष और गृह युद्ध जैसी हिंसक घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में देखा गया तो चौंकाने वाले नतीजे आए. इन आंकड़ों में 175 देशों के 234 संघर्षों को शामिल किया गया. इस दौरान हुई लड़ाइयों में 1000 से ज्यादा लोगों की जान गई.
भूख, गरीबी, त्रासदी
कुल मिला कर अल नीनो की वजह से दुनिया भर में 21 प्रतिशत गृह युद्ध हुए हैं और इनमें से 30 प्रतिशत देश अल नीनो प्रभावित इलाके में हैं. मुख्य रिसर्चर सोलोमन सियांग का कहना है कि अल नीनो एक अदृश्य कारण है, जिसकी वजह से सीमा संबंधी संघर्ष हुआ. हालांकि यह एकमात्र कारण नहीं है. इसकी वजह से फसलों को नुकसान होता है, तूफान आता है, जिससे तबाही होती है, पानी से होने वाली महामारी फैलती है. इससे नुकसान होता है, भूखमरी और बेरोजगारी फैलती है, तथा असमानता फैलती है, जो विभाजन और क्षोभ की वजह बनती है.
इसके अलावा जोखिम के जो दूसरे कारक हैं, उनमें जनसंख्या वृद्धि और देश की समृद्धि है. यह बात भी मायने रखती है कि सरकार अल नीनो से निपटने में कितनी कारगर है. सियांग का कहना है, "हालांकि हम इन सभी मुद्दों पर एक साथ नियंत्रण करने की कोशिश करते हैं. लेकिन हम कह सकते हैं कि अल नीनो की वजह से बड़ी संख्या में गृह युद्ध हो सकता है."
सोमालिया की मिसाल
हालांकि हॉर्न ऑफ अफ्रीका में अभी जो कुछ हो रहा है, उसे रिसर्च में शामिल नहीं किया गया था. लेकिन फिर भी वह इस त्रासदी की सबसे बड़ी मिसाल हो सकती है. सियांग का कहना है, "दो साल पहले वैज्ञानिकों ने पूर्वानुमान लगाया था कि सोमालिया में इस साल सूखा पड़ेगा. लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे गंभीरता से नहीं लिया गया."
उन्होंने उम्मीद जताई कि उनके रिसर्च से भविष्य में अंतरराष्ट्रीय समुदाय और राहत एजेंसियों को मदद मिल सकेगी और वे वक्त रहते कदम उठा सकेंगे.
रिपोर्टः एएफपी/ए जमाल
संपादनः महेश झा