यूएन में छाया भारत का आकाश
२९ नवम्बर २०१२सिर्फ 40 अमेरिकी डॉलर या 2,000 रुपये वाले इस कंप्यूटर को भारत में तैयार किया गया है. हालांकि इसके कुछ हिस्से दूसरे देशों में भी बने हैं. भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अपनी अध्यक्षता के दौरान इसे दुनिया के सामने रखा और इस मौके पर महासचिव बान की मून ने यह कह कर सबको हैरान कर दिया कि उन्हें पता है कि हिन्दी शब्द आकाश का मतलब क्या होता है. बान ने कहा, ""सुरक्षा मुद्दों पर तो भारत अग्रणी है ही लेकिन विकास और तकनीक के क्षेत्र में भी वह आगे है. इंफॉर्मेशन सुपर हाइवे पर एक सुपर पावर है. आकाश जैसी तकनीक लोगों को उनकी पूरी क्षमता विकसित करने में काम आयेगी."
आकाश की टचस्क्रीन कनाडा की कंपनी ने तैयार की है, जबकि उसका मदरबोर्ड चीन में बना है. लेकिन आखिरी एसेंब्लिंग भारत में हुई है. इस मुद्दे को लेकर थोड़ा विवाद भी पैदा हो गया लेकिन इसे बनाने वाली कंपनी डेटाविंड के भारतीय मूल के सीईओ सुनीत सिंह टूली ने कहा, "पिछले तीन दिनों से मैं इस आरोप से जूझ रहा हूं कि आकाश पूरी तरह भारत में बना कंप्यूटर नहीं है. लेकिन यह विवाद क्यों." उनका कहना है कि उन्हें इस बात का गर्व है कि चीन ने भी इसे तैयार करने में मदद की है, "चीन और भारत पड़ोसी देश हैं. चीन विश्व समुदाय का हिस्सा है. मेरे दिमाग में इस बात को लेकर किसी तरह का विवाद नहीं है."
उन्होंने कहा कि आकाश सिर्फ एक कंप्यूटर नहीं, बल्कि वैश्विक खोज की मिसाल है, "हिन्दुस्तान में सबसे ज़रूरी जिम्मेवारी बच्चों की शिक्षा की है. हिन्दुस्तान में जहां 22 करोड़ बच्चे स्कूल में हैं तो लगभग 14 करोड़ स्कूल नहीं जाते हैं. बच्चों की शिक्षा स्तर सुधारने के लिए आकाश का लाभ उठाया जाएगा." टूली ने बताया कि इस साल के आखिर तक उनकी कंपनी एक लाख आकाश टैबलेट कंप्यूटर तैयार कर देगी. कंपनी का इरादा है कि अगले पांच छह साल में सभी बच्चों को आकाश हासिल हो सके.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी दूत हरदीप सिंह पुरी का इस रिलीज में बड़ा योगदान रहा. उन्होंने भी कहा कि जिस वक्त भारत ने इस टैबलेट को बनाने का जिम्मा लिया था तो कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं था कि इसके सभी हिस्से भारत में बनेंगे. उन्होंने बताया कि भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 11 नवंबर को इस टैबलेट को रिलीज किया है और भारत के अध्यक्ष रहते हुए वे इसे संयुक्त राष्ट्र में लाना चाहते थे. उन्होंने कहा, "आकाश 2 एक बहुत विशेष उपकरण है, जो विकास खोज में नए आयाम लाता है. शानदार तकनीक को उस लागत पर प्रदान कराता है जो जरूरतमंदों के लिए फायदेमंद है. कम कीमत के बावजूद उसमें इस्तेमाल की गई तकनीक और दूसरे एप्लीकेशन उच्च क्वालिटी के हैं."
टूली ने बताया कि टचस्क्रीन की फैक्ट्री अमृतसर शहर में लग गई है, जहां महीने भर में पूरा काम शुरू हो जाएगा. वहां फिलहाल 30 लाख टचस्क्रीन बनेंगे. एक बार यह फैक्ट्री शुरू हो गई, तो टचस्क्रीन कनाडा में नहीं, बल्कि भारत में बनने लगेंगे, "हम यकीन करते हैं कि स्थानीय तौर पर इनका उत्पादन हो सकता है. हम समझते हैं कि अगले साल तक, जब तक भारत में टचस्क्रीन बनने लगेगा, तब तक भारत में ही मदरबोर्ड भी बन सकेगा. चीन और दूसरे देश हमारी मदद करेंगे और कुछ पुर्जे भी हमें मुहैया कराएंगे. यह एक वैश्विक कहानी है."
कंपनी की योजना है कि डेढ़ साल के अंदर इसकी कीमत 40 डॉलर से घटा कर 25 डॉलर (लगभग 1,300 रुपये) कर दिए जाएं.
रिपोर्टः अंबालिका मिश्रा (न्यूयॉर्क), पीटीआई/एजेए
संपादनः एन रंजन