येनाः ज्ञान विज्ञान का स्टोरहाउस
२७ अगस्त २००९जीडीआर (पूर्वी जर्मनी) के दौर का ये कामयाब निर्माण प्रयोग लांगे एलंड (लंबी मुश्किल) भी कहा जाने लगा, शायद कुछ विडंबना कुछ व्यंग्य के बोध के साथ. लेकिन येना का परिचय सिर्फ इतना ही नहीं है. फ्रीडरिश शिलर यूनिवर्सिटी के बिना येना का क्या अर्थ. शहर की जो अब विश्व ख्याति है उसकी जड़ें यूनिवर्सिटी में ही हैं. शहर की प्रसिद्धि का एक और आयाम है उसका एक नायक कार्ल सआइत्ज़ जिसने यूनिवर्सिटी की परिकल्पना की और जिसकी व्यापार की समझ ने सफलता की अलग कहानी लिख दी.
कार्ल सआइत्ज़ – ओपटिक्स का प्रणेता
येना में आधुनिक उद्योग का दौर 1870 में शुरू हुआ जब इस वैज्ञानिक ने एनर्स्ट आब्बे और ओट्टो शॉट जैसे शोधकर्ताओं के साथ मिलकर ओपटिक्ल इंजीनियरिंग की नींव रखी. उनके शुरुआती आविष्कारों ने येना से लेकर पूरी दुनिया में धूम मचा दी. और ये आविष्कार थे- खगोलीय उपकरण, माइक्रोस्कोप और पहला तारामंडल प्रेक्षागृह. येना के ऑप्टिक्ल संग्रहालय की प्रदर्शनियों में ऐतिहासिक दास्तानें बढ़चढ़कर बताने को महज़ यहीं ऐतिहासिक खोजें नहीं हैं, और भी बहुत कुछ है. आर्थिक मामलों में भी ये वैज्ञानिक दूरदर्शी थे. ऑप्टिकल सआइत्ज़ उपक्रमों और ग्लास केमिकल प्लांट शॉट एंड जन. यूनिवर्सिटी से इतर शहर के आर्थिक ढांचे को परिपक्व बनाने के लिए अस्तित्व में आए. नए निर्माण प्लांट येना की आर्थिकी के बड़े संबल हैं. हज़ारों कामगार येना में उमड़ आए और शहर की आबादी डेढ़ सौ फीसदी बढ़ गयी. सआइत्ज़ ने रोज़गार के अवसर ही पैदा नहीं किए. शहर के कर्णधार के रूप में उन्होंने येना को “फोक्सहाउस” भी दिया, जिसमें एक विशाल कंसर्ट हॉल भी बनाया गया है. उन्हीं के रहमोकरम से युनिवर्सिटी की एक नयी मुख्य इमारत भी निर्मित की गयी थी.
दुस्साहसी प्रयोगों की लैब
तत्कालीन कम्युनिस्ट जर्मनी बड़े गर्व से सआइत्ज़ का नाम लेता था. दूसरे विश्व युद्ध के बाद सआइत्ज़ की फैक्ट्रियां “फोक्सेआइगेनन बेट्रिबेन(फएब-वीईबी)” यानी राष्ट्रीयकृत कंपनियां बन गयीं. और अपने नाम में आए बदलावों के साथ इन कंपनियों ने अपना उत्पादन जारी रखा. येना को आदर्श समाजवादी शहर माना जाता था. इसी संदर्भ मे ये भी उल्लेखनीय है कि कार्ल मार्क्स ने येना से ही अपनी डॉक्टरेट की उपाधि ली थी, हालांकि उन्हें यहां प्रोफेसरी नहीं मिल पायी. शहर में समाजवादी वास्तुशिल्प के प्रतीक के रूप में अत्याधुनिक रिसर्च टॉवर खड़ा किया गया था. पहले ये जगह सआइत्ज़ उपक्रमों के लिए थी लेकिन बाद में ये जगह यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का निवास स्थल बन गयी. पूर्वी जर्मनी के विख्यात आर्किटेक्ट हरबर्ट हेनसेलमान ने इसे एक विशाल टेलीस्कोप के रूप में बनाया था. शहर का ऐसा निशान जिसे लोग दूर से ही देख कर पहचान लें. जर्मनी के पुनर्मिलन के बाद इस टॉवर को नए सिरे से सजा संवार कर एक सोफ्टवेयर कंपनी को बेच दिया गया.
विज्ञान को नमस्कार और उसके एक पुरोधा गोएथे को भी
शहर की किसी गली को चुनें और वो आपको इतिहास की पगडंडी पर ले जाएगी. पुराने मकानो पर यादगार चिन्ह हैं. कवि फ्रीडिरिश शिलर का समर हाऊस, दार्शनिक योहान गॉटलीब फिश्टे का निवास, और कई वनस्पति उद्यान जहां पृथ्वी के सभी जलवायु क्षेत्रों से करीब बारह हज़ार पौधों के घर हैं. सैलानी ज़ाहिर है यहां उस अद्भुत वृक्ष को देखना नहीं भूलते जिसका नाम है गिंगको या मेडन हेयर ट्री. कहते हैं महाकवि गोएथे ने ही यूरोप में सबसे पहले ये वृक्ष प्रजाति लगायी थी. येना में प्राकृतिक विज्ञानों के अध्ययनों को प्रोत्साहित करने के लिए ही सार्वभौम ज्ञान के पुरोधा गोएथे अक्सर वाइमार से येना आते थे. उन्होंने इलाके में नियमबद्ध ढंग से अहम शोधकार्यो का सिलसिला शुरू किया और उनके लिए आदर्श स्थितियां निर्मित कीं जैसे- पुस्तकालय, प्राकृतिक विज्ञानों से जुड़ी संदर्भ सामग्री पांडुलिपियां और प्रयोगशालाएं. ये उनका ही प्रभाव था कि येना की यूनिवर्सिटी में पढ़ाए जाने वाले विषयों में रसायन विज्ञान, खनिज विज्ञान और वनस्पति विज्ञान को भी जगह मिली.
चिकित्सा विज्ञान में गोएथे जैसी विभूति के अध्ययन और प्रयोग विज्ञान के लिए और इस शहर के लिए अविस्मरणीय घटना थे.
आते रहे आते रहे शोध करने वाले
18वीं सदी में येना की तुलना लंदन और पेरिस से की जाती थी. येना को गोएथे ने कहा था "ज्ञान और विज्ञान का गोदाम." और इस गोदाम में उस दौर की हर बड़ी शख्सियत ने पांव रखे. हेगेल, फिश्टे, शेलिंग, शिलर और श्लेगल जैसे दिग्गजों ने युनिवर्सिटी में अध्यापन किया और उनके व्याख्यानों को सुनने के लिए ह्योल्डेरलिन, नोवालिस और ब्रेनटानो जैसे महारथी येना में थे. ये लोग जर्मन के क्लासिकी दौर और रोमानवाद के प्रकाशस्तंभ सरीखे थे. और हां, डार्विन के बाद ईवोल्युशन थ्योरी के सबसे बड़े ज्ञाता एर्नस्ट हाएक्केल को कोई कैसे भूल सकता है. वो भी येना के छात्र थे. अपने दौर के कई विद्वान मशहूर प्रकाशक एर्न्स्ट फ्रोममान के घर पर चाय पीने के लिए जुटते थे. ये जगह अब जर्मन भाषा और साहित्य विभाग का मुख्यालय है. यही वो जगह है जहां से जॉर्ज विलहेल्म फ्रीडरिश हेगेल(या कहें सिर्फ हेगेल) को भागना पड़ा था. नेपोलियन की सेना ने येना पर चढ़ाई कर दी थी और हेगेल भागते हुए अपने साथ सिर्फ अपना प्रमुख दार्शनिक अध्ययन "फेनोमेनोलोगी" ही ले जा सके थे.
पुरानी दीवारों में नया आलोड़न
तो ऐसा था येना शहर. अपनी समाजवादी रोशनी में इतनी उद्दाम मानवीय बौद्धिक वैज्ञानिक हलचलों से थरथराता हुआ शहर. आज भी येना की गलियों में अतीत के आलोड़न की ध्वनियां आप सुन सकते हैं- महसूस कर सकते हैं. येना में शहर और युनिवर्सिटी एक दूसरे से घुलमिल गए हैं. अपनी पहचान से ऐसा विलय भला कितने शहरों की ख़ूबी बन पाता है. शिक्षा और विज्ञान और आर्थिकी का ऐसा समृद्ध घरौंदा यहां आने वाले शोधार्थियों विज्ञानियों तकनीशियनों छात्रों और अर्थ-विशेषज्ञों की वजह से आज भी गुलज़ार है. कहना चाहिए कि एक परंपरा और एक संस्कृति की तरह, विज्ञान येना में समाया हुआ है. एक शहर के लिए इससे बड़ी उपलब्धि क्या होगी.