राजीव गांधीः कई मायनों में सबसे अलग
१९ मई २०११उन्होंने कभी राजनीति में आने का सोचा भी नहीं था. वे एक पायलट थे, जिसे मुश्किल मौसम में भी अपने हवाई जहाज को सकुशल मंजिल तक पहुंचाना होता है. भाई संजय गांधी की मौत के बाद काफी हिचकिचाहट के साथ वे राजनीति के अहाते में आए, और 1984 में अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अप्रत्याशित रूप से उन्हें पार्टी व देश का नेतृत्व संभालने का मौका मिला.
राजीव गांधी से पहले जो नेता प्रधानमंत्री बने, उनमें से राष्ट्रीय नेता के रूप में जवाहरलाल नेहरू की अदम्य प्रतिष्ठा थी, इंदिरा गांधी ने कभी हार न मानने वाली एक जुझारू नेता के रूप में धाक जमाई थी, मोरारजी देसाई व चरण सिंह भी राष्ट्रीय आंदोलन के दायरे से आए पेशेवर राजनीतिज्ञ थे. इनके विपरीत राजीव गांधी किसी उद्यम में काम करने की संस्कृति में विकसित हुए थे और एक कॉर्पोरेट नजरिये के साथ उन्होंने अपने पद की जिम्मेदारी निभाई.
सुरक्षा गार्डों के मोटर साइकिल काफिले की परवाह न करते हुए तेज गाड़ी चलाते हुए आगे बढ़ जाना युवा प्रधानमंत्री की आदत थी. कुछ इसी लहजे में उन्होंने भारतीय राजनीति को औपनिवेशिक विरासत से काटते हुए उभरती नई शताब्दी के रास्ते पर आगे बढ़ाया. हर मामले में उन्हें सफलता नहीं मिली. श्रीलंका में सेना भेजने का दुखद फैसला भारत की विदेश नीति के लिए विवादास्पद व खुद उनके लिए अंततः जानलेवा बना. कंप्यूटर आधारित कांग्रेस जनता से दूर हटी. चुनाव में इंदिरा गांधी की हार को आपात स्थिति के गलत फैसले के कारण हुई एक दुर्घटना माना गया था. लेकिन 1989 में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की हार एक जनादेश था. मिस्टर क्लीन अब बोफोर्स मामले के बाद आरोपों में घिर चुके थे. आरोप, जो आज तक साबित नहीं हुए हैं.
लेकिन राजीव गांधी की सबसे बड़ी देन थी विचारधारा से मुक्त व्यवहारमुखी राजनीति. और इस राजनीति के चलते भारत शायद उभरते हुए भूमंडलीकरण की चुनौतियों से निपट सकने के हासिल बना, भले ही कुछ देर से. बिल्ली सफेद हो या काली, उसे चूहे पकड़ने चाहिए - यह टिप्पणी चीन के नेता डेंग शियाओपिंग की थी, लेकिन भारत में राजीव गांधी पहले नेता थे, जो कमोबेश इसी सिद्धांत पर आगे चलते रहे.
और इसकी वजह से सारी दुनिया में भारत की छवि बदली. भारत को अब उपनिवेशवाद की लकीरों को पीटने वाला तीसरी दुनिया का एक देश नहीं, बल्कि अपनी संभावनाओं के मुताबिक महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने वाली उभरती एक ताकत के रूप में देखा जाने लगा. वे एक ऐसे नेता थे, जो भाषण नहीं देते थे, बात करते थे. और बात करने वाली यह शैली पश्चिम के नेताओं को खास कर भाई, हालांकि सोवियत संघ के साथ भारत की परंपरागत मैत्री बनी रही.
राजीव गांधी की दुखद हत्या के बाद काफी कुछ बदला है. कांग्रेस कमजोर हुई, सत्ता से बाहर रही, लेकिन भारत का लोकतंत्र उससे कमजोर नहीं हुआ. आज फिर कांग्रेस सत्ता में है. उनकी आर्थिक नीति के नतीजे उस समय शायद ही दिख रहे थे, आज सबके सामने हैं. मध्यवर्ग ने अंगड़ाई लेना शुरू किया था, आज सारी दुनिया में उसकी चर्चा है. विचारधारा से मतलब न रखने वाले राजीव गांधी ने नई सहस्राब्दी के लिये भारत की विचारधारा की नींव रखी. वे स्वप्नद्रष्टा नहीं थे, लेकिन किसी न किसी रूप में आज के भारत को उनके सपनों का भारत कहा जा सकता है. जिन सवालों को वे सुलझा नहीं पाए या अनदेखा कर गए, वे आज भी बने हुए हैं.
लेखक: उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादन: एस गौड़