"राजीव पाकिस्तान को और पाकिस्तानी उन्हें चाहते थे"
२० मई २०११आज मणिशंकर अय्यर की पहचान पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के रूप में हैं. लेकिन राजनीति में वह राजीव गांधी से प्रेरित होकर आए. उन्होंने आईएफएस छोड़ा और भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री की कोर टीम में शामिल हुए. राजीव गांधी पर वह कई किताबें लिख चुके हैं. उनकी 20वीं बरसी पर पेश है मणिशंकर अय्यर से खास बातचीत.
आप राजीव गांधी की शख्सियत को कैसे बयान करेंगे.
बहुत मेहनतकश आदमी थे. उनके मन में हमेशा नई नई कल्पनाएं आती रहती थीं. दिल, दिमाग, आत्मा से 100 प्रतिशत धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति थे. उनको हिंदुस्तान पर बहुत गर्व था. सबसे बडी बात यह है कि भारत की जनता को उन पर बहुत बड़ा विश्वास था. वह समझते थे कि जितना भी अनपढ़ हो, जितना भी गरीब हो, जितना भी बेआवाज हो, लेकिन आम आदमी समझता है कि उसकी प्राथमिकताएं क्या हैं और न्यूनतम मांगें कौन सी हैं जिनको पूरा करना चाहिए. हम ऐसे लोगों को साधन मुहैया कराएं और उन पर ही छोड़ दें, बजाय एक माई बाप सरकार बनने के. आत्मविश्वास के साथ वे ही अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के जरिए अपनी मांगों को पूरा करें.
जो उनका सबसे बड़ा योगदान रहा, वह था पंचायती राज. वह अहिंसा में भी अटूट विश्वास रखते थे. उन्होंने 1988 में परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए जो योजना संयुक्त राष्ट्र में पेश की, अब दुनिया मान रही है कि उनकी सोच सही थी. वह इतने दूरदर्शी थे.
राजीव गांधी खुद युवा थे, आप भी युवा थे. तो जब फैसले लेने की बारी आती थी तो कितनी तवज्जो युवाओं की आवाज पर होती थी और कितनी अनुभवी आवाजों पर.
वह खुद तो युवा नेता थे, लेकिन मात्र युवाओं के तो नेता नहीं थे. देश के नेता थे. हां, उनके इर्दगिर्द जो लोग थे, मशविरा देते थे, शायद हम सब तकरीबन 40 से 50 साल के थे. इसलिए आप कह सकते हैं कि उनकी जो नौकरशाही थी, वो जवान थी. लेकिन उनका मंत्रिमंडल हो या संसद हो, तो वहां बुजुर्गों का अनुभव भी था और युवाओं का जोश भी था. कोई यह नहीं कह सकता है कि बुजुर्ग नेता है और बुजुर्गों से ही बात करता है, या फिर युवा नेता है तो युवाओं से बात करता है.
उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा.
उनके साथ काम करके बहुत मजा आता था. हमेशा ठहाके गूंजते रहते थे. गंभीर मुद्दों पर भी चर्चा होती थी. माहौल में तनाव होता था, लेकिन वह अपने व्यक्तित्व के दम पर तनाव को दूर कर देते थे. वह बहुत आत्मविश्वासी, शांत और बिना किसी हड़ब़ड़ी के समस्याओं को हल तलाशने के लिए वचनबद्ध रहते थे. इसलिए उनके साथ काम करके सीखने को ही नहीं मिलता था, बल्कि बहुत मजा भी आता था. लेकिन अपने राष्ट्र के मूल्यों को बनाए रखने पर भी उनका पूरा ध्यान होता था.
आज कहा जा रहा है कि भारत एक उभरती हुई सुपरपावर है, लेकिन जिस समय राजीव गांधी ने देश की बागडोर संभाली थी, तो आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर भारत का विश्व मंच पर उतना असर नहीं था. अब जो भारत की छवि है इसे आकार देने में राजीव गांधी की कितनी भूमिका रही.
एक तो मैं बहुत दुखी हूं. बकवास की जा रही है कि हम उभरती हुई सुपरपावर हैं. उभरती हुई सुपरपावर का क्या मतलब बनता है कि आप लीबिया में दखल दो, अफगानिस्तान पहुंच जाओ, इराक में सरकार को पलटो. ऐसी सुपरपावर बनने की कोई आशा नहीं है. मुझे दुख है कि हमारी 70 से 80 फीसदी जनता गरीबी में फंसी हुई है, उसकी उपेक्षा हो रही है. जो लोग कामयाब हुए हैं, उन्हीं को हिंदुस्तान बताया जा रहा है. लेकिन हकीकत यह है कि आज के भारत में और महात्मा गांधी के भारत में इतना ज्यादा अंतर नहीं है कि हम गरीबी को भूलें और समृद्धि की तरफ ही सोचें.
महात्मा गांधी से ही राजीव जी ने प्रेरणा ली. उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि हम हथियारों के लिहाज से शक्तिशाली बन जाएं. या फिर हमारे पास इतनी समृद्धि आ जाए कि सब लोग हमारी तरफ देखें और चौंक जाएं. उन्होंने सभ्यता की बात की. उन्होंने हमारी संस्कृति की बात की. उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया और मानवता को आगे ले जाने में जो भारत और चीन का, एशिया का योगदान रहा 18वीं सदी तक, उस मकाम पर हमें दोबारा पहुंचना है. वह चाहते थे कि हमारा भारत समस्त सभ्यता के लिहाज से महान हो. सारी मानव जाति को अपनी बिरादरी समझे.
लेकिन अगर आप समझें कि बहुत बड़ी हमारी फौज हो, आर्थिक शक्ति इतनी हो कि दुनिया हमारे सामने कांपे, यह सब राजीव की, सोच में नहीं था.
अय्यर साहब, आपने भारतीय राजनयिक के तौर पर पाकिस्तान में भारत की नुमाइंदगी की. बहुत से पाकिस्तानी राजनयिकों और राजनेताओं से आपका संपर्क रहा है, तो उनके मन में राजीव गांधी की कैसी छवि आपने देखी.
राजीव गांधी प्रधानमंत्री के तौर पर तीन बार पाकिस्तान गए. जो बातें उन्होंने वहां कहीं, उनसे पता चलता है कि वह पाकिस्तान के साथ बहुत करीबी दोस्ती चाहते थे. उनके मन में पाकिस्तानियों या मुसलमानों के खिलाफ कोई बात नहीं थी. जब वह कैंब्रिज और लंदन में पढ़ते थे तो उनके करीबी दोस्तों में से दो-तीन पाकिस्तानी थे. उनके साथ उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए भी संपर्क रखा. चूंकि वह पाकिस्तानियों को चाहते थे, पाकिस्तानी भी उन्हें चाहते थे.
हमें गांधी जी ने यह सिखाया है लेकिन हमें इसे अकसर भूल जाते हैं कि घृणा के बदले में घृणा ही मिलती है और प्यार के बदले एकदम प्यार न मिले, तब भी रफ्ता रफ्ता अंत में प्यार का बदला प्यार ही होगा. और खून का बदला कभी खून नहीं होना चाहिए. इस सिद्धांत पर राजीव जी बहुत विश्वास रखते थे. मैं उम्मीद करता हूं कि भारत इस पथ से न हटे.
राजीव गांधी की विरासत को भारत या फिर कांग्रेस पार्टी किस तरह संभाल पाई है.
संभालना चाहिए. कभी कभी मैं निराश हो जाता हूं कि उस पथ से हम अलग हो रहे हैं. लेकिन कुछ है हमारी पार्टी में कि वापस उस पथ पर पहुंच जाते हैं. हाल ही में जब प्रधानमंत्री अफगानिस्तान गए. वहां जो उनके बयान थे, तो मैंने सोच रहा था कि यही तो है राजीव जी की भाषा. शुक्र है उस भाषा का इस्तेमाल हम दोबारा करने लगे हैं. वैसे ही जब वह संयुक्त राष्ट्र में जाते हैं तो राजीव जी की झलक मिलती है.
इसलिए मैं नहीं समझता कि हम हमेशा राजीव के सिद्धांत और सोच के प्रति वफादार रहेंगे. लेकिन शुक्र है कि किसी न किसी तरह हम अलग हो भी गए तो वापस वहां आ जाते हैं. तो उस विरासत को हम कायम रखेंगे. उसमें चार चीजें बहुत जरूरी हैं. पहली लोकतंत्र और उस लोकतंत्र को निचली माटी तक पहुंचाने के लिए पंचायती राज. पंचायती राज को हम आगे बढ़ाएं तो कह सकते हैं कि राजीव जी के अहम योगदान को कायम रख रहे हैं.
दूसरी बात वह समाजवाद कहते थे. वह ऐसा समाजवाद नहीं था जो ब्रिटिश म्यूजियम या कहीं और से आया हो. वह समाजवाद था, जो भारत की अंदरूनी सूरतेहाल को देख कर तय किया गया था. हालांकि उसमें निजी क्षेत्र के लिए अच्छी जगह थी. जरूरत यह है कि हम गुरबत की तरफ देखें, समृद्धि पर देखने पर ज्यादा जोर न लाएं. अब इस पथ से हम थोड़ा अलग हो रहे हैं. हमें तब तक गरीबी उन्मूलन को प्राथमिकता देनी होगी जब तक देश की ज्यादातर आबादी गरीबी से न निकल जाए.
तीसरी चीज थी गुटनिरपेक्षता. गुटनिरपेक्षता उस जमाने का अच्छा नाम था जब दुनिया दो गुटों में बंटी हुई थी. लेकिन आज के दिन में, 21वीं सदी में जब हम गुटनिरपेक्षता की बात करते हैं तो यह मतलब है कि हमारी आवाज आजाद होनी चाहिए. किसी और के हवाले अपने देश की सोच को नहीं देना चाहिए.
कभी कभी मेरे जैसे लोगों को फिक्र होती है कि हमारा रिश्ता अमेरिका के साथ इतना करीब न हो जाए कि हम उनके गुलाम बन जाएं. लेकिन अब मुझे प्रधानमंत्री ने जिम्मेदारी दी है कि राजीव गांधी के निरस्त्रीकरण के सिद्धांत को आगे बढ़ाया जाए, तो मुझे विश्वास है कि हम दुनिया में अपनी आवाज को आजाद ही रखेंगे.
चौथी और सबसे जरूरी चीज है सेक्युलरिज्म यानी पंथनिरपेक्षता. राजीव जी कहते थे कि एक पंथनिरपेक्ष भारत ही जी सकता है. वह तो यहां तक कहते थे कि जो भारत पंथनिरपेक्षता को छोड़ कर सांप्रदायिक बन जाए, उसे रहने की इजाजत ही नहीं होनी चाहिए. तो यहां तक वह मानते थे कि हमारी राष्ट्रीयता का आधार सेक्युलरिज्म है, और कुछ नहीं.
तो ऐसे में, यदि हम भारत को लोकतांत्रिक रखें, हम भारत को समाजवादी रखें, भारत की आवाज दुनिया में आजाद रखें और सबसे जरूरी भारत को हम सेक्युलर रखें तो कह सकते हैं कि राजीव जी का शरीर हमें छोड़ कर चला गया है लेकिन उनकी आत्म और सोच हमारे बीच में आज तक भी है.
इंटरव्यूः अशोक कुमार
संपादनः ए जमाल