राष्ट्रपति गाउक का मुश्किल इस्राएल दौरा
३० मई २०१२गाउक के इस्राएल दौरे का लक्ष्य राजनीतिक रूप से उथलपुथल वाले समय में इस्राएल के साथ जर्मनी की दोस्ती पर जोर देना है. इस्राएली राष्ट्रपति शिमोन पेरेस के साथ मुलाकात में गाउक ने कहा कि इस्राएल की सुरक्षा और अस्तित्व का समर्थन जर्मनी की नीति है. उन्होंने कहा कि जर्मनी उन ताकतों का जोरदार विरोध करता है जो इस्राएल के अस्तित्व के अधिकार को खतरे में डालते हैं.
संवेदनापूर्ण दौरा
राष्ट्रपति गाउक का यह दौरा इस मायने में भी अहम है कि वे भूतपूर्व जीडीआर से आते हैं. कम्युनिस्ट जीडीआर का इस्राएल के साथ औपचारिक रिश्ता नहीं था क्योंकि पूर्वी बर्लिन की सरकार अपने को फासीवाद विरोधी राज्य मानती थी, न कि हिटलर के तीसरे राइष का उत्तराधिकारी. उसने जर्मन इतिहास की जिम्मेदारियों का बोझ उठाने से मना कर दिया था. इसके विपरीत पश्चिमी जर्मनी के लिए इस्राएल के साथ एकजुटता उसकी राजनीति का आधार था. राष्ट्रपति ने अपने दौरे की शुरुआत यहूदी स्मारक याद वाशेम के संवेदनापूर्ण दौरे के साथ की.
जर्मनी के पहले चांसलर कोनराड आडेनावर ने ही 1948 में गठित यहूदी राज्य के साथ अच्छे रिश्ते बनाने का प्रयास शुरू कर दिया था. 1953 में उन्होंने और इस्राएल के संस्थापक डाविड बेन गुरियों ने पुनर्निर्माण संधि पर दस्तखत किए थे. 1965 में दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्ते बने और आज जर्मनी इस्राएल के सबसे निकट सहयोगियों में माना जाता है. चांसलर अंगेला मैर्केल ने तो इस्राएल की सुरक्षा को देश की नीति घोषित कर दिया है.
लेकिन जर्मनी की जनता अपनी सरकार की नीति को आंख मूंद कर नहीं मानती. इस्राएल जर्मन जनमत में निरंतर प्रतिष्ठा खो रहा है. श्टैर्न पत्रिका द्वारा कराए गए एक सर्वे में 59 फीसदी लोगों ने इस्राएल को आक्रामक देश कहा. यह दस साल पहले के मुकाबले दस प्रतिशत ज्यादा है. दो तिहाई जर्मन मानते हैं कि इस्राएल अपने हितों के लिए दूसरों का ख्याल नहीं रख रहा है. सिर्फ 36 फीसदी लोग कहते हैं कि इस्राएल के साथ सहानुभूति जताई जा सकती है, यह आंकड़ा तीन साल पहले के मुकाबले दस फीसदी कम. जबकि जर्मनी के 13 फीसदी लोग अब यह मानते हैं कि इस्राएल को अस्तित्व का हक नहीं है.
दोस्ती और दूरी
म्यूनिख के इतिहासकार मिषाएल वोल्फजोन का कहना है, "जर्मनी और इस्राएल के बीच दोस्ती नहीं है." 1981 से दोनों देशों के बीच दूरी बढ़ रही है और इसे जनमत सर्वेक्षणों में देखा जा सकता है. 1967 के छह दिवसीय युद्ध के बाद जर्मनी में इस्राएल की अत्यंत अच्छी साख थी, जिसे 1973 के योम किप्पुर युद्ध से धक्का लगा. 1981 में रिश्ते बुरी तरह खराब हो गए जब सउदी अरब को हथियार बेचने के मुद्दे पर जर्मन चांसलर हेल्मुट श्मिट और इस्राएली प्रधानमंत्री मेनाचेम बेगीन के बीच ठन गई.
इतिहासकार वोल्फजोन का कहना है कि आज अस्राएल जर्मन जनमत में सबसे अलोकप्रिय देशों में शामिल है. खासकर युवा लोगों के बीच इस्राएल के प्रति दूरी बढ़ रही है. वे इस्राएल के प्रति ऐतिहासिक अपराध में अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं मानते. लेकिन इस्राएल में दिलचस्पी बनी हुई है.
इस्राएली मूल की जर्मन इतिहासकार तमार अमार-डाल इसे अपने अनुभव से जानती हैं. वे बर्लिन की फ्री यूनिवर्सिटी में इस्राएल का इतिहास पढ़ाती हैं और वे अपने कोर्स में दिलचस्पी में कमी की शिकायत नहीं कर सकतीं. उनका कहना है, "जर्मनों के लिए इस्राएल कुछ आकर्षक, कुछ रहस्य सा है जिसे तोड़ना मुश्किल है. इस्राएल एक ऐसी राष्ट्रीय परियोजना है जिसका सफल होना जर्मनों के अपराधबोध को कम कर सकता है."
चुनौतीपूर्ण रिश्ते
लेकिन अमार डाल का मानना है कि यहूदी परियोजना 70 साल बाद विफल हो गई है. यहूदी राज्य न तो अपने यहूदी नागरिकों को सुरक्षा दे पा रहा है और न ही गैर यहूदी नागरिकों को. "लोग अब जर्मनी में भी समझने लगे हैं कि इस स्थिति के लिए इस्राएल की निराशाजनक नीति भी जिम्मेदार है." अमार-डाल का मानना है कि इस्राएल और जर्मनी के बीच सामान्य रिश्ते मुमकिन नहीं हैं, क्योंकि यहूदियों पर जर्मन अत्याचार बहुत उग्र और राक्षसी थे.
इसके बावजूद युद्ध की समाप्ति के बाद 70 सालों से दोनों देशों के औपचारिक संबंध अच्छे और स्थिर हैं. 2008 से दोनों देशों के बीच नियमित रूप से मंत्रिमंडल के स्तर पर सम्मेलन होता है. यूरोपीय संघ के अंदर जर्मनी को इस्राएल का भरोसेमंद समर्थक माना जाता है. हथियारों के विक्रेता के रूप में भी जर्मनी का सम्मान है. कुछ सप्ताह पहले ही जर्मनी ने इस्राएली नौसेना को डोल्फीन प्रकार की चौथी पनडुब्बी बेची है. इस्राएल ने जर्मनी को परमाणु क्षमता वाले छह पनडुब्बियों का ऑर्डर दिया है, जिसमें से हर एक की कीमत 50 करोड़ यूरो है. खर्च का एक हिस्सा जर्मन सरकार उठा रही है. उसने पहले दो पनडुब्बी तोहफे में दिए जबकि बाकी के लिए लाखों की सबसिडी दे रही है.
पनडुब्बियों की बिक्री के कारण ही नोबल पुरस्कार विजेता लेखक ग्युंटर ग्रास ने मध्य एशिया में बढ़ते तनाव और इस्राएल सरकार की आलोचना को जाहिर करने के लिए कविता लिखी थी. इस कविता के लिए ग्रास की काफी आलोचना हुई. इस्राएल ने ग्रास को अवांछनीय व्यक्ति घोषित कर दिया. राष्ट्रपति गाउक के दौरे पर इस आलोचना का साया बना रहा.
रिपोर्ट: बेटिना मार्क्स/मझा(एएफपी)
संपादन: आभा मोंढे