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रियलिटी शो ने 30 साल बाद मिलाया बाप बेटी को

१० अगस्त २०११

कैमरा चालू होते ही स्टूडियो में मौजूद दर्शकों की आंखें बाप बेटी की भावुक मुलाकात पर जम गईं. कंबोडिया का एक रियलिटी शो 30 साल से बिछड़े बाप को बेटी के पास ले आया है. इस नाटक के पात्र असल जिंदगी की भूमिका में हैं.

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तस्वीर: dpa

42 साल की सेम सावोयुन बाप से मिलते ही फूट फूट कर रोने लगीं. वह तो यह मान चुकी थीं कि अब उनकी मुलाकात कभी नहीं हो पाएगी. भरे गले से बस इतनी ही आवाज निकली, "यह मेरा सपना भी नहीं था."

थोड़ी देर बाद भावनाओं का ज्वार थमा तो उन्होंने एंकर से कहा, "मैंने अपने पिता को ढूंढने की बहुत कोशिश की लेकिन मुझे ज्यादा उम्मीद नहीं थी. मुझे कभी नहीं लगा कि ऐसा पल आएगा. डैड को दोबारा पाकर मैं खुशी से पागल हो रही हूं." कंबोडिया के निजी टीवी चैनल बेयॉन टीवी पर रियलिटी शो का यह अंक जुलाई में प्रसारित हुआ.

तानाशाही के अत्याचार

सेम का परिवार कंबोडिया के उन लाखों लोगों में शामिल है जो ख्मेर रूज की तानाशाही के दौरान अलग हो गए. आधुनिक समाज को तोड़ दिया गया और परिवारों के बंधन कट्टर कम्युनिस्ट आंदोलन के लिए अहम नहीं रह गए थे. सेम के पिता साइंग वा ने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी को खोजने की बहुत कोशिश की. सेम अपनी एक आंटी के साथ रहने गई थीं और फिर 1975-79 के बीच चले आंदोलन की तेज हवा में वे बिछड़ गए. इसके बाद उनका कुछ पता नहीं चला. 65 साल के साइंग ने आंसू पोछते हुए कहा, "मुझे नहीं पता था कि वह कहां चली गई और जिंदा भी है या मर गई."

सेम उस वक्त बच्ची ही थी जब कम्युनिस्ट आंदोलन की आंधी चली. शहरों को खाली किया जा रहा था, लोगों से पैसा छीन लिया गया, स्कूलों को बंद कर दिए गए. कृषि आधारित आदर्श समाज बनाने के नाम पर लोगों को जबर्दस्ती शिविरों में रख कर मजदूरी पर विवश किया गया. वियतनाम की सेना जब तक इस इलाके को मुक्त करा पाती, करीब 20 लाख लोग भूखमरी, ज्यादा काम या सजा की वजह से मारे गए. जो बच गए वो दशकों तक अपने परिवार के लोगों को ढूढने के लिए संघर्ष करते रहे. लोगों के पास परिजनों को ढूंढने के लिए स्मृतियों के सिवा और कुछ नहीं था क्योंकि ख्मेर ने सत्ता से बाहर किए जाने से पहले दस्तावेजों को भी मिटा दिया.

टीवी शो की मदद

सेम अपने पिता से 1977 में अलग हुईं, उसके कुछ ही दिन पहले उसकी मां दक्षिणी टाकियो प्रांत में जबरन मजदूरी कराए जाने की वजह से किसी अज्ञात बीमारी की शिकार हो गई. सेम ने बताया, "मेरी मां की मौत के बाद मेरे दादा मुझे टाकियो प्रांत से लेकर मेरी आंटी के पास चले गए, उसी वक्त मैंने अपने पिता को आखिरी बार देखा था." दक्षिण पश्चिमी हिस्से में सिहानुक प्रांत में भी आंटी का साथ ज्यादा दिन तक नहीं बना रहा क्योंकि वियतनामी फौज और ख्मेर रूज के बीच हुई जंग के दौरान उन्हें अचानक घर छोड़ कर भागना पड़ा. सेम ने कहा, "जब मुझे घर छोड़ने को कहा गया तो मैं बस भागने लगी और जब रूकी तो आंटी से बिछड़ चुकी थी."

सेम अब सिहानुक प्रांत में एक छोटी सी एक छोटी सी दुकान चलाती हैं उन्होंने शादी कर ली उनके छह बच्चे भी हैं पर तब भी उन्हें रिश्तेदारों की गैरमौजूदगी अकेलापन महसूस कराता था. सेम जब परिवार से बिछड़ीं तब उनकी उम्र बहुत कम थी और उन्हें अपने अतीत की बहुत कम जानकारी थी. जब परिवार को ढूंढने की उनकी कोशिशें कामयाब नहीं हुईं तो उन्होंने टीवी शो की मदद लेने का फैसला किया, "मैं तब बस सात या आठ साल की रही होउंगी मुझे ठीक ठीक नहीं याद कि मेरा गांव कहां था."

यह सपना नहीं है

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जब सेम अपनी कहानी बयां कर रही थीं तब पीछे एक स्क्रीन पर दिखाया जा गया कि उनका गांव ढूंढने के लिए शो का कार्यदल कहां कहां और कैसे गया. शो की खोजी टीम गांव गांव जा कर बुजुर्ग लोगों से बात करती रही कि शायद किसी को सेम के परिवार के बारे में पता हो. स्थानीय दफ्तरों में दस्तावेजों की पड़ताल भी की गई. इस खोजी दल ने न सिर्फ सेम के पिता बल्कि उनकी आंटी को भी ढूंढ निकाला. टीवी शो के दूसरे हिस्से में आंटी को भी परिवार से मिलाया गया.

शो की प्रोड्यूसर प्राक सोखायुक ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "सेम की जिंदगी में इस खुशी को शामिल होते देख मैं बेहद खुश और उत्साहित हूं."

इट्स नॉट ए ड्रीम यानी यह सपना नहीं है नाम का यह शो पिछले साल शुरू हुआ और अब तक इसके पास अपने रिश्तेदारों की तलाश के लिए हजारों लोगों ने अर्जी लगाई है. शो वियतानाम की जंग में बिछड़े 10 परिवारों को अब तक मिला चुका है. ख्मेर रूज के शासन के दौरान हुए जुल्मों के बारे में जानकारी जुटाने वाले केंद्र, डॉक्यूमेंटेशन सेंटर ऑफ कंबोडिया के प्रमुख यूक चांग ने बताया कि कंबोडियाई लोगों का अपने बिछड़े परिवारों को ढूंढना बहुत आम बात है, "परिवार ख्मेर संस्कृति की ताकत रही है और कई लोग यह मानने को तैयार नहीं कि उनके रिश्तेदारों की मौत हो चुकी है."

बदल गई जिंदगी

इस शो के अलावा भी कंबोडिया के रेडियो और टीवी पर बिछड़े लोगों के बारे में अकसर जानकारी प्रसारित होती रहती है. डॉक्यूमेंटेशन सेंटर उन लोगों की एक सूची तैयार कर रहा है जिनके मौत की पुष्टि हो चुकी है. सेंटर ने लाखों लोगों के नाम जुटाए हैं और 2013 तक उन लोगों के नाम छाप कर जारी करने की तैयारी चल रही है. चांग खुद भी इस जंग के दौरान बच गए लोगों में से एक हैं उनके मुताबिक कंबोडियाई लोगों के लिए ये जानना जरूरी है कि उनके रिश्तेदारों का क्या हुआ जिससे कि वो इस दुख से उबर कर आगे बढ़ सकें.

पिता से मिलने के बाद सेम ने कई दिन उनके और रिश्तेदारों के साथ बिताए, इस मुलाकात ने उनकी जिंदगी बदल दी और यह स्वप्न नहीं है.

रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन

संपादनः ए कुमार