रूस के खिलाफ ईयू की सख्ती
२० दिसम्बर २०१४पोलेंड के डोनाल्ड टुस्क ने यूरोपीय परिषद की अध्यक्षता संभाली है और इस हैसियत में वे अब ब्रसेल्स में होने वाली यूरोपीय शिखर भेंटों के प्रमुख हैं. और चूंकि नए झाड़ू को बेहतर सफाई करनी चाहिए, उन्होंने प्रक्रियाओं में बदलाव किया है. एक शाम की मुलाकात के बाद बैठक समाप्त और उन्होंने यूरोपीय नेताओं को क्रिसमस की छुट्टी दे दी. हालांकि वे यूरोप की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक को बिना सुलझाए घर ले जा रहे हैं.
लेकिन एक शाम के खाने पर रूस से निबटने के सैद्धांतिक तरीकों को तय करने के अलावा और कुछ नहीं किया जा सकता है. और हाशिए पर पता चलता है कि सहमति पर जोर देने के बावजूद इन नेताओं का रुख कितना अलग अलग है. लिथुवानिया की राष्ट्रपति डालिया ग्राइबाउसकाइटे ने कुछ खुशी दिखाई जब उन्होंने कहा कि रूस के खिलाफ प्रतिबंध अब असर दिखा रहे हैं. बाल्टिक देश के नागरिक के रूप में उनकी भावना पर संदेह नहीं किया जा सकता, लेकिन राजनीतिक तौर पर यह बुद्धिमानी नहीं है. यूरोपीय नेताओं की ऐसी टिप्पणियां राष्ट्रपति पुतिन को उनकी दलीलों में मजबूत करते हैं.
यूरोपीय की विदेश नीति दूत फेडेरिका मोगेरिनी इस मामले में ग्राइबाउसकाइटे से ज्यादा समझ भरी हैं. रूसी अर्थव्यवस्था का पतन कोई अच्छी खबर नहीं है, न यूरोप के लिए, ना ही बाकी दुनिया के लिए और न ही रूसी नागरिकों के लिए. हमें पता है कि इटली की मोगेरिनी शुरू में प्रतिबंधों के खिलाफ थीं, जिसकी वजह से उन्हें मैर्केल का गुस्सा झेलना पड़ा था. लेकिन उनका यह आकलन सही है.
अड़ी हैं मैर्केल
लेकिन जर्मन चांसलर रूस में हाल के विकास से प्रभावित नहीं दिखतीं और पुतिन के खिलाफ कड़े रवैये पर कायम हैं. हफ्तों की मध्यस्थता की कोशिशों के बाद, जिसे रूसी राष्ट्रपति ने नजरअंदाज कर दिया, अब वे उन्हें दिखने वाले नतीजों पर आंकना चाहती हैं. मिंस्क में हुए समझौते का सिर्फ एक मुद्दा संघर्ष विराम हासिल हुआ है. लेकिन और ज्यादा किए जाने की जरूरत है ताकि कॉन्टैक्ट ग्रुप की एक और बैठक हो सके सभी पक्ष बातचीत की मेज पर लौट सकें.
मैर्केल ने साफ कर दिया है कि वे मॉस्को के लिए पेशगी का समर्थन नहीं करेंगी. प्रतिबंधों को तभी उठाया जाएगा, जब यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता के मुद्दे पर प्रगति होगी. और मॉस्को से दहलाने वाली आर्थिक खबरों के बावजूद चांसलर की नजर अगले साल पर है, जब प्रतिबंधों को आगे बढ़ाने की बात तय होनी है.
सिद्धांतों का सवाल
इस रवैये का साथ अंगेला मैर्केल हठीलापन और सिद्धांतों के लिए प्रतिबद्धता दिखा रही हैं. उनका संदेश है: यूरोपीय इस पर एकमत हैं कि लोगों के स्वनिर्णय के अधिकार की रक्षा होनी चाहिए और यूरोप प्रभाव वाले क्षेत्र की राजनीति में वापसी नहीं चाहता. सवाल यह है कि इसके मद्देनजर पुतिन के साथ फिर से राजनीतिक कारोबार में वापसी कैसे संभव है.
प्रतिबंधों का रूस की अर्थव्यवस्था पर कुछ असर तो हुआ ही है, भले ही वे वर्तमान संकट का कारण नहीं हैं. लेकिन वे रूस की नीतियों में बदलाव लाने में भी नाकाम रहे हैं. स्थिति उलझ गई है. यदि पुतिन को रिययत दी जाती है तो पूर्वी यूक्रेन की मौजूदा स्थिति और पक्की हो जाएगी. और यदि रियायत नहीं दी जाती है तो विवेक के ऊपर हठ और खब्त की जीत होगी और वे अपने देश को बर्बाद करते जाएंगे. रूसी सरकार के दिवालिया होने के यूरोपीय संघ पर गंभीर नतीजे होंगे और उसे बहुत नुकसान होगा. लेकिन फिर साझा मूल्यों की रक्षा करनी होगी. स्थिति मिकाडो जैसी है, जिसका ध्यान पहले टूटा, वो हारा.
ब्लॉग: बारबरा वेजेल/एमजे