रूस में गर्भपात के विज्ञापन के लिए नया कानून
२ जुलाई २०११रूस की सरकार का मानना है कि देश में गर्भपात का चलन जन्म दर कम होने की बड़ी वजह है. दरअसल रूस उन देशों में से है जहां गर्भपात कराने वाले महिलाओं की संख्या बहुत अधिक है. सरकार को चिंता है कि यदि इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो देश की जनसंख्या कम होने लगेगी. इसीलिए संसद के निचले सदन में इस कानून को पारित किया गया.
अब से रूस में गर्भपात पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का दस फीसदी हिस्सा गर्भपात से होने वाले सेहत के खतरे पर होगा. महिलाओं को जानकारी दी जाएगी कि एक बार गर्भपात कराने का असर यह भी हो सकता है कि शायद वे कभी मां ना बन पाएं. साथ ही रूस की सरकारी समाचार एजेंसी आरआईए की नई रिपोर्टें भी विज्ञापन का हिस्सा होंगी.
रूस की निचली संसद की वेबसाइट के अनुसार 2007 में रूस में 15 लाख गर्भपात के मामले दर्ज किए गए. हैरानी की बात यह है कि उस साल रूस में जन्म लेने वाले बच्चों की कुल संख्या भी करीब इतनी ही थी. सांसद विक्टर स्वागेल्स्की ने समाचार एजेंसी आरआईए से बातचीत में कहा, "इन विज्ञापनों के कारण लड़कियों को लगने लगता है कि गर्भावस्था में उन्हें कभी कोई दिक्कत नहीं होगी." उन्होंने कहा कि इस कानून का बनना जरूरी इसलिए हो गया था क्योंकि "रूस में गर्भपात को लेकर स्थिति निराशाजनक है."
गायब होता रूस
रूस दुनिया का पहला देश है जहां गर्भपात को कानूनी तौर पर स्वीकृति मिली. 1920 में ही यहां महिलाओं को गर्भपात की अनुमति मिल गई थी. लेकिन 1936 में रूस के तानाशाह स्टालिन ने इस पर रोक लगाई जो 1954 में उनकी मौत तक जारी रही. स्टालिन इस रोक से देश में जन्म दर बढ़ाना चाहते थे. बाद में जन्म दर बढ़ने के लिए रूस की साम्यवादी सरकार ने लोगों को उपहारों और पैसों का प्रलोभन भी दिया. लेकिन 1991 में सोवियत संघ के खत्म होने के बाद से जन्म दर में भारी कमी देखी गई.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार 2050 तक रूस की आबादी बीस प्रतिशत तक कम हो चुकी होगी और केवल 11 करोड़ ही रह जाएगी. संयुक्त राष्ट्र ने यह सलाह दी है कि रूस को प्रवासियों के लिए दरवाजे खोल देने चाहिए, ताकि उसकी आबादी सामान्य हो सके.
रिपोर्ट: रॉयटर्स/ईशा भाटिया
संपादन: एन रंजन