रेडियोधर्मी कचरे का जीवनकाल कैसे घटे
४ जुलाई २०१०परमाणु बिजलीघरों से निकलने वाला ख़तरनाक़ रेडियोधर्मी कचरा ही परमाणु ऊर्जा के विरोधियों का सबसे मुखर तर्क बन गया है. उदाहरण के लिए, थोरियम पर आधारित रिएक्टर-ईंधन के जल जाने से जो कचरा बनेगा, उस में यूरेनियम और प्लूटोनियम के भी इतने आइसोटोप (समस्थानिक) होंगे कि वह अगले दस लाख वर्षों तक रेडियोधर्मी विकिरण पैदा करता रहेगा.
इतने लंबे समय के लिए किसी परमाणु कचरे का निरापद भंडारण संभव नहीं है. एक ही उपाय है, कचरे के क्षरण (डीकेय) की क्रिया को कृत्रिम ढंग से बढ़ा कर क्षरण पूरा होने की अवधि को घटाना. धीरे-धीरे ही सही, प्रकृति में भी भारी नाभिक वाले रासायनिक तत्व (एलीमेंट) इसी क्रिया के द्वारा हल्के तत्वों में बदलते रहते हैं.
न्यूट्रॉन कणों की बौछार
किसी तत्व का परमाणुभार जितना ही कम होगा, वह रेडियोधर्मिता के पैमाने पर उतना ही निष्क्रिय और निरापद होगा. इसे कृत्रिम ढंग से करने के लिए परमाणु के नाभिक पर न्यूट्रॉन कणों की बौछार करनी होगी. इस क्रिया को अंग्रेज़ी में ट्रांसम्यूटेशन कहते हैं, हिंदी हम नाभिकीय उत्परिवर्तन कह सकते हैं.
जर्मनी में इसी ट्रांसम्यूटेशन के द्वारा परमाणु कचरे के भंडारण की समस्या का हल निकालने की कोशिश की जा रही है. इस समय 17 परमाणु बिजलीघर काम कर रहे हैं. उन्हें 2022 तक बंद कर देने का विचार है. तब तक जर्मनी के भूमिगत अस्थायी परमाणु कचरा आगारों में 127 टन प्लूटोनियम, छह टन नेप्चूनियम और 14 टन अमेरीसियम जैसे भारी रेडियोधर्मी तत्व जमा हो चुके होंगे. इन चीज़ों के लिए दुनिया में कोई अंतिम आगार नहीं है.
नुस्खा है ट्रांसम्यूटेशन
जर्मनी में ड्रेस्डन के पास रोसनडोर्फ़ परमाणु शोध केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. आर्न्ड युंगहांस कहते हैं कि कभी न कभी तो एक आगार बनाना ही होगा. डॉ. युंगहांस ट्रांसम्यूटेशन के विशेषज्ञ हैं और लंबे समय से ऐसे किसी अंतिम आगार को सुरक्षित और टिकाऊ बनाने का नुस्खा ढूंढ रहे हैं. कहते हैं, "नुस्खा यही हो सकता है कि न्यूट्रॉन कणों की तेज़गति बौछार से सिद्धांततः परमाणु कचरे वाले दीर्घजीवी परमाणु नाभिकों को भी अल्पजीवी रेडियोधर्मिता में उत्परिवर्तित किया जा सकता है. स्वाभाविक है कि इसके लिए ख़ास क़िस्म के संयंत्रों की ज़रूरत पड़ेगी. इस समय तो ऐसे संयंत्र कहीं हैं नहीं. केवल आरंभिक रूपरेखाएं और योजनाएं ही हैं."
लगभग प्रकाश जितनी बौछार-गति
इस समय के परमाणु रिएक्टर यूरेनियम के नाभिक को तोड़ने के लिए अपेक्षाकृत मंदगति न्यूट्रॉन कणों का उपयोग करते हैं. नाभिक के टूटने से प्लूटोनियम, नेप्चूनियम और अमेरीसियम जैसे कई अवांछित तत्व भी बनते हैं. ऐसे तेज़गति न्यूट्रॉन, जो प्रकाश की गति से कुछ ही कम गति पर चल रहे हों, इन भारी तत्वों के नाभिकों को भी खंडित कर उन्हें अहानिकर तत्वों में बदल सकते हैं. प्रयोगशाला में तो इस तरह के प्रयोग सफल रहे हैं. प्रश्न यह है कि क्या वे औद्योगिक पैमाने पर भी काम करेंगे. युंगहांस कहते हैं, "ट्रांसम्यूटेशन संयंत्र या इस काम के लिए बने विशेष रिएक्टरों में यदि प्लूटोनियम का इस्तेमाल हो सके, तो कचरे के भंडारण-काल को काफ़ी कम किया जा सकता है, क्योंकि प्लूटोनियम ही इस समय को सबसे अधिक लंबा करता है. तब भंडारण-काल को दो लाख साल से घटा कर 20 हज़ार साल पर लाया जा सकता है. यह पहला प्रयास हो सकता है. इस के बाद यदि और आगे जाना संभव हुआ, तो प्लूटोनियम से भिन्न ऐक्टीनाइड कहलाने वाले अन्य भारी तत्वों को भी इसी तरह उत्परिवर्तित कर एक हज़ार साल पर लाया जा सकता है. यह आदर्श स्थिति होगी. लेकिन, फ़िलहाल कोई नहीं जानता कि यह संभव भी है या नहीं."
नाभिकीय क्षरण
डॉ. युंगहांस और उनके साथी शीघ्र ही एक परीक्षण संयंत्र में बहुत छोटे पैमाने पर यह देखने के लिए इस तरह के प्रयोग करने जा रहे हैं कि बहुत तेज़गति न्यूट्रॉन कणों की बौछार से नाभिकीय क्षरण की किस तरह की श्रृखलाबद्ध अभिक्रियाएं (चेन-रिएक्शन) पैदा की जा सकती हैं, "इस साल हम अधिकतम संभव तेज़गति तक पहुंच गये हैं, इसलिए अब भावी संभावनाओं को जानने के प्रयोग शुरू कर सकते हैं. इस संयंत्र में हम परमाणु कचरे का ट्रांसम्यूटेशन तो बिल्कुल नहीं कर सकते, लेकिन उसकी एक ग्राम या मिलीग्राम जितनी मात्रा में हो सकने वाली अभिक्रियाओं की संभावनाओं को ठीक-ठीक जान ज़रूर सकते हैं."
ऐसे परमाणु रिएक्टर तो अभी हैं ही नहीं, जहां परमाणु कचरे के उत्परिवर्तन का प्रयोग हो सके. आजकल के रिएक्टरों को ठंडा रखने के लिए ग्रेफ़ाइट या भारी पानी जैसी जिन चीज़ों का उपयोग होता है, उन से काम नहीं चलेगा. अत्यंत तेज़गति न्यूट्रॉन कणों को संभाल सकने वाले रिएक्टरों के लिए बहुत ज्वलनशील सोडियम जैसी तरल धातुओं वाले प्रशीतक की ज़रूरत पड़ेगी और यह एक बहुत बड़ी चुनौती है.
रिपोर्ट: राम यादव
संपादन: ओ सिंह