रेप कांड के बाद भी नहीं बदली सोच
९ जनवरी २०१३हरियाणा के खेदर गांव में महिलाओं को सुरक्षा देने के नाम पर मूर्खतापूर्ण फैसले किए गए हैं. कुछ गानों को "अश्लील" घोषित कर दिया गया है और शादियों में उन्हें बजाने पर रोक लगा दी गई है. इसके अलावा लड़कियों के जीन्स पहनने पर पाबंदी लग गई है और उनके लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल भी मना हो गया है. गांव प्रमुख शमशेर सिंह का कहना है, "दिल्ली में जो कुछ हुआ, उसकी वजह से यहां के गांवों के प्रधान बहुत सदमे में थे. उन लोगों ने रविवार को यहां बैठक की. अगर दिल्ली में सामूहिक बलात्कार हो सकता है तो हमारे यहां भी ऐसा हो सकता है."
उनका कहना है, "शहरों में लड़कियां जो चाहें, पहन सकती हैं लेकिन हमारा गांव एक छोटी जगह है. अगर यहां एक लड़की पश्चिमी कपड़े पहनना शुरू कर देगी, तो उसका देखा देखी दूसरी लड़कियां भी ऐसा ही करने लगेंगी."
सोच में फर्क
सिंह के ये विचार भारत में शहरी और ग्रामीण आबादी के बीच सोच के भारी अंतर को दिखाते हैं. शहरों में लड़कियों के पास ज्यादा अधिकार हैं, वे अपनी पसंद के काम कर सकती हैं या अपनी पसंद से शादी कर सकती हैं. दूसरी तरफ महात्मा गांधी जिसे "भारत की आत्मा" कहते थे, उन गांवों में महिलाएं आज भी पुरुषों के आगे बेबस हैं.
गांवों की यह मानसिकता उस विचार पर भी आघात करती है कि दिल्ली के बलात्कार कांड के बाद भारत में कुछ बड़ा बदलाव होने वाला है क्योंकि भारत की सवा अरब आबादी में लगभग 80 करोड़ इन्हीं गांवों में रहती है. कई लोग मानते हैं पश्चिमी सभ्यता की नकल की वजह से ऐसा हुआ है और इस घटना के बाद से इस थ्योरी में उनका विश्वास और बढ़ा है.
दिल्ली में 16 दिसंबर को जिस लड़की का बलात्कार हुआ, वह अपने दोस्त के साथ फिल्म देख कर घर लौट रही थी. तब तक अंधेरा हो चुका था और उन्हें सवारी नहीं मिल रही थी. इसके बाद एक बस वाले ने उन्हें घर छोड़ने की बात कही.
ऊटपटांग बयान
गांवों की इन्हीं मानसिकता की तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत और आध्यात्मिक गुरु कहे जाने वाले आसाराम बापू के बयान भी आए हैं. इन बातों से लगता है कि दिल्ली बलात्कार कांड के बाद भी आम भारतीय की मानसिकता नहीं बदली है.
कांग्रेस के दिग्विजय सिंह का कहना है कि आरएसएस हमें 18वीं सदी में ले जाना चाहती है लेकिन सिर्फ भागवत नहीं, बल्कि कई और नेताओं ने भी अजीबोगरीब टिप्पणियां की हैं, जिनसे इस बात पर शक पैदा होता है कि भारत ने इस कांड से कुछ सीखा है. मध्य प्रदेश की एक कैबिनेट मंत्री महिलाओं को "दायरे में" रहने की सलाह देती हैं, तो राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे प्रदर्शन करने वाली महिलाओं को "रंगाई पुताई" करके आने वाली औरतें बताते हैं.
पीछे जाती सोच
हरियाणा में वीमेन्स स्टडीज रिसर्च सेंटर की निदेशक ऋचा तंवर का कहना है कि दिल्ली बलात्कार कांड के बाद कई गांवों की सोच और "पीछे की ओर" जा रही है, "वे लड़कियों पर सख्ती कर रहे हैं कि वे अकेले बाहर न जाएं, सफर न करें. मोटर साइकिलों पर न चढ़ें और मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें या लड़कों से बात न करें." उनका कहना है कि मर्दों का एक तर्क रहता है कि औरतों की वजह से ही उनके खिलाफ अपराध होता है और इस घटना के बाद वे इस तर्क को बढ़ा चढ़ा के पेश कर रहे हैं.
भारत के कई हिस्सों में खाप पंचायतों का बोलबाला है, जो तालिबान के तरीके अपनाते हुए फैसले सुनाती है. हालांकि अपराध के आंकड़े इस बात को बिलकुल गलत बताते हैं कि घुलने मिलने या पश्चिमी पहनावे से महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ते हैं. साल 2011 में 53 शहरों में बलात्कार के कुल 24,206 मामले दर्ज किए गए. इनमें से सिर्फ 2,579 मामले बड़े शहरों के हैं यानी 10 फीसदी के आस पास. बाकी मामले गांवों और छोटे शहरों के हैं.
महिला कार्यकर्ताओं की चेतावनी है कि ये तो सिर्फ सरकारी आंकड़े हैं, गांवों में तो महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले बहुत कम दर्ज होते हैं. उन पर सामाजिक दबाव बहुत ज्यादा होता है. भले ही दिल्ली बलात्कार कांड भारतीयों की सोच पर बहुत ज्यादा फर्क न डाल पाए, लेकिन शहरीकरण की वजह से महिलाओं की स्थिति बेहतर हो सकती है. संयुक्त राष्ट्र का आंकड़ा बताता है कि 2020 तक भारत की 28 फीसदी आबादी बड़े शहरों में रहने लगेगी और 2030 तक यह आंकड़ा 60 फीसदी का होगा.
एजेए/एमजे (एएफपी)