वहाबी रिपब्लिक बन रहा है पाकिस्तान
२५ अगस्त २०१२इस्लामी गणतंत्र पाकिस्तान में ऐसे लोगों को ढूंढना मुश्किल नहीं जो तालिबान और उनके आत्मघाती हमलों से नफरत करते हैं. इन हमलों ने पिछले सालों में सैकड़ों पाकिस्तानियों की जान ली है. लेकिन सउदी अरब और उसकी वहाबी विचारधारा के खिलाफ आवाज उठाना आम नहीं है. मुस्लिम तीर्थ काबा वाला सउदी अरब का मक्का शहर मुसलमानों के पवित्र तीर्थस्थलों में एक है. सिर्फ इसकी वजह से लाखों पाकिस्तानियों के लिए सउदी अरब पवित्र मुल्क है. इसलिए बहुत से पाकिस्तानी मुसलमानों के लिए सउदी अरब की आलोचना का मतलब इस्लाम की आलोचना है.
1979 में ईरान में अयातोल्लाह खोमैनी की शिया क्रांति से पहले पाकिस्तान के ईरान और सउदी अरब दोनों से ही अच्छे ताल्लुकात थे. ईरानी क्रांति के बाद पाकिस्तान सउदी अरब के ज्यादा करीब हो गया. 1980 के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत संघ के कब्जे के खिलाफ हुए युद्ध में दोनों देशों के रिश्ते और मजबूत हुए. उस समय पाकिस्तान और सउदी अरब दोनों ही अमेरिका के निकट सहयोगी बन गए और उन्होंने अफगानिस्तान में मुजाहिदीनों को पूरा समर्थन दिया. अफगान युद्ध समाप्त हो गया, लेकिन सउदी अरब और उग्रपंथी वहाबी संगठनों के प्रति पाकिस्तान का झुकाव समाप्त नहीं हुआ.
उग्रवाद की जड़ें
पाकिस्तान के पूर्व कानून मंत्री इकबाल हैदर का कहना है कि पाकिस्तान में सक्रिय ज्यादातर जिहादी और आतंकवादी संगठन वहाबी हैं. "चाहे वह तालिबान हो या लश्कर ए तैयबा, उनकी विचारधारा बिना किसी शक के सउदी वहाबी है. इस सभी संगठनों को पाकिस्तानी सेना और उसकी सुरक्षा एजेंसियों का समर्थन मिलता है."
पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की सरकार में कानून मंत्री रहे हैदर सौनिक तानाशाह जियाउल हक को इस बात के लिए जिम्मेदार मानते हैं कि 1980 के दशक में वहाबी संगठनों को धन और हथियार देना सरकारी नीति बनाया गया. उनका कहना है कि जनरल जिया ने उनका इस्तेमाल शिया सहित दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ किया. हैदर के अनुसार शिया समुदाय ईरान से सहानुभूति रखता था. पाकिस्तान में ईरान के लिए समर्थन समाप्त करवाने के लिए सउदी अरब जनरल जिया के जरिये वहाबी संगठनों की मदद करता था.
नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि सउदी अरब पाकिस्तान में हजारों मदरसों को वित्तीय मदद देता है. लेकिन इतिहासकार डॉ. मुबारक अली का कहना है कि भारतीय उपमहाद्वीप पर वहाबी असर उतना ही पुराना है जितना बहाबी विचारधारा. "वहाबी विचारधारा के संस्थापक अरब सलाफी धर्मशास्त्री अब्दुल वहाब की मौत 18वां सदी में हो गई. वहाबी धर्मप्रचारकों ने 1880 से ब्रिटिश भारत में आना शुरू किया. उन्होंने बहुत से भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए उकसाया." अली का कहना है कि भारत में देवबंद समुदाय भी वहाबी असर से ही निकला है.
मुबारक अली का कहना है कि पाकिस्तान में वहाबी संगठनों को सरकार का समर्थन था, हालांकि वह एक अल्पसंख्यक सुन्नी संप्रदाय है. उनके विचार में वहाबी विचारधारा ने पाकिस्तान की संरचना असर डाला ही है, बहुलवादी भारत-पाक तहजीब को भी नुकसान पहुंचाया है. वहाबी हर तरह के सांस्कृतिक बहुलवाद के खिलाफ हैं, इसलिए वे दरगाहों, संगीत समारोहों और दूसरे सांस्कृतिक केंद्रों पर हमला करते हैं जो उनके विचार में इस्लामी नहीं हैं. वहाबी असर से पाकिस्तान का अरबीकरण हुआ जिसके कारण लोग खुदा हाफिज के बदले अल्ला हाफिज कहने लगे हैं या रमजान को रमादान कहने लगे हैं.
सउदी-अमेरिकी मोर्चा
पश्चिमी देश पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई पर तालिबान को समर्थन देने का आरोप लगाते हैं. उनका कहना है कि अफगानिस्तान की सीमा पर पाकिस्तान के कबायली इलाकों में उन्हें सुरक्षित पनाह मिली हुई है, जहां से वे अफगानिस्तान में हमला करते हैं, लेकिन पाकिस्तान सरकार उनके खिलाफ कुछ नहीं कर रही है.
इकबाल हैदर कहते हैं कि यह अजीब सी बात है कि पश्चिमी देश पाकिस्तान की तो आलोचना करते हैं लेकिन सउदी अरब को कुछ नहीं कहते जो पाकिस्तान में उग्रपंथी वहाबी संगठनों को सबसे ज्यादा मदद देता है. पाकिस्तान में बहुत से उग्रपंथी शिया संगठन भी सक्रिय हैं. हैदर कहते हैं, "सउदी अरब पश्चिम एशिया में अमेरिका के सबसे बड़े सहयोगियों में है, वह पाकिस्तान और अमेरिका के बीच मध्यस्थ का भी काम करता है. शाह के शासन के समय यह काम तेहरान करता था, अब रियाद कर रहा है."
हैदर का आरोप है कि सरकार देश के गिलगित बाल्टिस्तान इलाके में शिया लोगों का नरसंहार कर रही है. पिछले हफ्ते मनशेरा में तालिबान ने एक बस में रावलपिंडी से गिलगिट जाते हुए 22 शिया लोगों को बेरहमी से मार डाला था. हमलावरों ने पहले शिया के रूप में उनकी शिनवाख्त की और फिर गोलियों से भून डाला. कुछ पाकिस्तानी विश्लेषक इसके वहाबी संगठनों और राज्य द्वारा शिया लोगों की जातीय सफाई करार दे रहे हैं.
इकबाल हैदर का आरोप है कि सरकार अपने भू-राजनीतिक और सामरिक हितों के लिए देश में वहाबी वर्चस्व चाहती है. वे कहते हैं, "ये हमले नए नहीं हैं. तालिबान ने परवेज मुशर्रफ के शासन में भी गिलगित में शिया पर कई हमले किए. सेना उन्हें रोकने की कोशिश नहीं करती." हैदर का कहना है कि अफगानिस्तान से तालिबान लड़ाके बेरोकटोक गिलगित बाल्टिस्तान में घुस सकते हैं, पाकिस्तानी सेना उन्हें नहीं रोकती.
रिपोर्ट: शामिल शम्स/एमजे
संपादन: आभा मोंढे