विकास के लिए जापान जरूरी
२५ मई २०१३मित्सुबिशी, होंडा, टोयोटा, सुजूकी जैसी कंपनियों का देश जापान, भारत की सामरिक और सामाजिक संरचना के लिए कितना अहम है ये जानने के लिए डॉयचे वेले हिन्दी ने बात की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सुदूर पूर्वी मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली से. उनसे बातचीत के प्रमुख अंश...
डॉयचे वेलेः आपको क्यों लगता है कि भारत और जापान के बीच साझेदारी अहम है?
प्रोफेसर कोंडापल्लीः भारत ने उदारीकरण का कार्यक्रम 1991 में शुरू किया था. उदारीकरण इसलिए शुरू किया गया था क्योंकि भारत की आर्थिक हालत उस समय खस्ता थी. उसकी बैंकों में विदेशी मुद्रा के नाम पर दो या तीन अरब डॉलर थे. उसे आईएमएफ को कर्ज का भुगतान करना था लेकिन बचत के नाम पर भारत के पास कुछ नहीं था. तब भारत ने ताइवान से उम्मीद की थी कि वह भारत के सेंट्रल बैंक में कुछ धन डाले लेकिन उस समय ताइवान की नीति उतनी भारत समर्थक नहीं थी. उसने भारत की अपील पर ध्यान ही नहीं दिया. इसके बाद टोक्यो ने भारत को मदद दी. ये पहला मौका था जब भारत और जापान आर्थिक मंच पर नजदीक आए. अब जब भारत अपने आस पास निवेशकों को देख रहा है तो उसमें पहले नंबर पर जापान है क्योंकि 950 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार जापान के पास है इसके अलावा भारत और जापान में कोई ऐतिहासिक मतभेद भी नहीं है.
आज किस क्षेत्र में ये दोनों देश साझेदारी कर सकते हैं
इसमें सबसे अहम तो आर्थिक और तकनीकी सहयोग है. उसके अलावा नौसैनिक सहयोग है. साथ ही अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी सहयोग हो सकता है. चूंकि जापान और भारत दोनों मुश्किल पड़ोस से जूझ रहे हैं इसलिए दोनों बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर भी साझेदारी कर सकते हैं. हालांकि अभी तक की बातचीत में इस मुद्दे पर कोई खास हल नहीं निकल पाया है.
भारत के प्रधानमंत्री की जापान यात्रा में असैनिक परमाणु क्षेत्र में साझेदारी भी शामिल है. फुकुशिमा के बाद भारत को जापान से परमाणु ऊर्जा मामले में क्यों साझेदारी करनी चाहिए?
2006 में भारत और अमेरिका के बीच 123 समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. आज दुनिया के 12 देश भारत को असैनिक परमाणु तकनीक और परमाणु ईंधन जैसे यूरेनियम या थोरियम दे सकते हैं. जापान अभी तक इस मुद्दे पर हिचकिचा रहा था एक तो उसके संविधान की वजह से और दूसरा हिरोशिमा, नागासाकी की पृष्ठभूमि के कारण. आज फुकुशिमा एक कारण है जो जापानियों के फैसले को प्रभावित कर सकता है. खासकर एक ऐसे देश को जिसने परमाणु अप्रसार संधि या एफएमटी, जैसे किसी भी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. हालांकि 2006 में अमेरिका के साथ हुए 123 समझौते में कहा गया है कि भारत अपने परमाणु कार्यक्रम का 60 फीसदी परमाणु ऊर्जा संयंत्र आईएईए के सुरक्षा कानून के अंतर्गत रखेगा. जबकि 40 फीसदी सेना के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. तो कुल मिला कर भारत ने यह साफ किया है कि जो भी तकनीक या ईंधन जापान, अमेरिका, रूस या फ्रांस, कनाडा, या ऐसे देश जिन्होंने भारत के परमाणु कार्यक्रम के बारे में समझौता किया है उसकी सामग्री वह हथियारों के लिए इस्तेमाल नहीं करेगा.
जापान का नया रुख कैसा लगता है आपको?
जापान में नई बहस ये शुरू हुई है कि भारत निवेश के लिए शानदार मौका है. तोशिबा वेस्टिंग हाउस भारत के साथ पहले से बात कर रहा है. कि प्लांट बनाए जाएं. मित्सुबिशी के पास भी परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने की दक्षता है. वे भी जापानी सरकार पर दबाव डाल रहे हैं कि भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाए जाएं. लगता है कि प्रधानमंत्री के दौरे के समय बचे खुचे मतभेद भी खत्म हो जाएंगे.
क्या आपको लगता है कि एशिया में चीन का दबदबा कम करने के लिए भारत जापान के साथ साझेदारी कर रहा है?
नहीं. कोई नहीं जानता कि भारत जापान वार्ता में चीन का क्या हाथ है लेकिन भारत जापान से बातचीत सिर्फ आर्थिक विकास और तकनीकी बेहतरी के लिए करने जा रहा है. चूंकि यूरो जोन के संकट के कारण भारत को भी काफी परेशानी उठानी पड़ी. यूरो जोन में भारत के संरचनात्मक सुधार के लिए कोई कर्ज उपलब्ध नहीं हैं. अब विश्व मुद्रा कोष और विश्व बैंक यूरो जोन की तरफ वित्तीय मदद दे रहे हैं. भारत धीमी आर्थिक विकास दर से जूझ रहा है. और उसका एक मुख्य लक्ष्य है ये देखना कि कैसे वह जापान से निवेश आकर्षित कर सकता है. यह निवेश भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी अच्छा होगा. इसी कारण भारत ने व्यापक साझेादारी संबंधी समझौता दक्षिण कोरिया और जापान के साथ किया है.
इंटरव्यूः आभा मोंढे
संपादनः एन रंजन