विज्ञान के शहर में लौटने लगी रौनक
७ जुलाई २०१२सोवियत रूस के जमाने में साइबेरिया का आकादेमदोहोगोक रहने के लिए सबसे शानदार ठिकानों में से एक था. अच्छी तनख्वाह, खूबसूरत तट और खुफिया एजेंसियों की निगाह से काफी दूर आकादेमदोहोगोक में रहने वालों के पास बड़ा सुकून था. सोवियत युग का अंत यहां की रौनक भी छीन कर ले गया. नोवोसिबिर्स्क से बस कुछ ही दूर इस शहर को 1950 के दशक में पढ़ने लिखने वालों के रहने और काम करने के लिए विकसित किया गया. रूसी भाषा के शब्द आकादेमदोहोगोक का अर्थ भी छोटा अकादमिक शहर होता है. पर अब शहर की रौनक लौट रही है.
राष्ट्रपति के समर्थन से इसे रूस में फिर से अविष्कारों का केंद्र बनाने की तैयारी हो रही है. चीड़ के पेड़ से हरे भरे और इंसान की बनाई विशाल झील वाले इस शहर में एक के बाद एक कर कई उच्च तकनीकी संस्थान उभरने लगे हैं और सिलिकॉन फॉरेस्ट के रूप में इसकी पहचान बनने लगी है. शहर में बदलाव की सबसे बड़ी पहचान बनी है नारंगी रंग की विशालकाय आधुनिक इमारत जिसमें बायो और नैनो टेक्नोलॉजी के कई बड़े संस्थान चल रहे हैं. रशियन एकेडमी ऑफ साइंसेज के साइबेरिया विभाग के प्रमुख वासिले फोमिन कहते हैं, "आकदेमदोहोगोक विज्ञान के मामले में साइबेरिया में सबसे आगे हैं."
सोवियत युग के अंत के बाद यहां आने वाले फंड में भारी कमी हुई जिसकी वजह से यहां से वैज्ञानिक और छात्र दूसरी जगहों का रुख करने लगे. ज्यादातर प्रतिभाओं ने तो विदेश का ही टिकट कटा लिया. फोमिन के मुताबिक शहर में एक बार फिर वैज्ञानिकों का आना शुरू हो गया है. वह कहते हैं, "हम बच गए हैं, विदेश से मदद मिल रही है. वो हमें पैसा दे रहे हैं, हमारे साथ करार कर रहे हैं और हमारे कार्यक्रमों से जुड़ रहे हैं. हमने प्रभावशाली तरीके से काम करना सीख लिया है, जिम्मेदारी उठाना और रिसर्च के नतीजों को संपादित करना भी. साथ ही ग्रांट पाने के लिए संघर्ष करना भी सीखा है." फोमिन ने बताया कि कुछ सालों तक मंद रहने के बाद रूस में आर्थिक विकास के कारण वैज्ञानिक खोजों की मांग बढ़ने लगी है.
रूसी अधिकारी देर से ही सही लेकिन पश्चिमी और एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के साथ कदम मिलाने के लिए सावधानी से आकादेमदोहोगोक पैसा और नई जिंदगी दे रहे हैं. तेल निर्यात पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए रूसी अधिकारियों ने अविष्कार औऱ तकनीक पर फिर से ध्यान देने की सोची है जो सोवियत युग के अंत के बाद मची अफरातफरी में कही खो गई थी. प्रधानमंत्री दमित्री मेदवेदेव ने मास्को के उपनगर स्कोलकोवो को रूस के अविष्कारों का केंद्र बना दिया है. लेकिन रवैये में आए बदलावा को आकादेमगोहोदोक में महसूस किया जा सकता है. यहां के एक पुराने रिसर्चर पावे कोस्त्रीकोव बताते हैं, "पहले छात्र पढ़ाई करने के बाद डिग्री लेने के साथ ही पश्चिमी देशों में चले जाते थे. अब उनमें से बहुत यहां रूक रहे हैं क्योंकि यूनिवर्सिटी में अच्छी तनख्वाह मिल रही है और रहने को घर भी." शहर में बन रही जहां तहां इमारतें इस बात की गवाही भी दे रही हैं. हालांकि रूस से प्रतिभाओं के बाहर जाने की दर अब भी 20 फीसदी के ऊपर ही हैं खासतौर से जीव विज्ञान के क्षेत्र में. कोस्त्रीकोव बताते हैं कि यहां स्थिति बाकी जगहों से काफी बेहतर है.
एनआर/आईबी (एएफपी)