विडियो में कत्ल करते दिखे फौजी को मौत की सजा
१३ अगस्त २०११वकीलों का कहना है कि ऐसा पाकिस्तान में पहली बार हुआ है जब किसी नागरिक अदालत ने फौजी को मौत की सजा सुनाई हो. हालांकि रेंजर्स नाम का यह अर्धसैनिक बल तकनीकी रूप से पाकिस्तान के गृह मंत्रालय के तहत आता है. लेकिन इसे पाकिस्तान की राजनीतिक रूप से ताकतवर फौज का एक अहम हिस्सा माना जाता है.
क्या है घटना
रेंजर्स के कुछ जवानों ने कराची में सरफराज शाह नाम के उस युवक को घेर लिया था. एक सार्वजनिक पार्क में बैठे पढ़ रहे 22 साल के शाह को एक रेंजर ने बहुत नजदीक से गोली मारी. सरफराज काफी देर तक सड़क पर पड़ा तड़पता रहा. वह फौजियों से मदद की गुहार लगाता रहा. लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की. बाद में उसे अस्पताल ले जाया गया लेकिन बचाया न जा सका.
इस सारी घटना को एक स्थानीय टीवी चैनल के कैमरामैन ने रिकॉर्ड कर लिया था. पाक टीवी चैनलों में इस खबर को बार बार दिखाया गया और देश भर में घटना की निंदा हुई. बाद में उस क्लिप को यूट्यूब पर भी डाल दिया गया जहां दुनियाभर के लाखों लोगों ने उसे देखा. इससे पाकिस्तानी फौज की खासी किरकिरी हुई.
कराची की आतंकवाद निरोधी अदालत में इस मुकदमे की सुनवाई हुई. शुक्रवार को जज बशीर अहमद खोसो ने फैसला सुनाया जिसमें 35 साल के शाहिद जफर को गोली चलाने का दोषी पाया गया. उसे मौत की सजा सुनाई गई. साथ ही उस पर दो लाख रुपये जुर्माना भी किया गया.
तुरत सुनवाई फुरत फैसला
जज खोसो ने जफर से कहा, "तुम्हारे खिलाफ सरफराज शाह को कत्ल करने के गुनाह साबित हुआ है और मैं तुम्हारे लिए मौत की सजा का एलान करता हूं. तुम्हें दो लाख रुपये का जुर्माना भी अदा करना होगा."
इस घटना में शामिल पांच अन्य जवानों को उम्रकैद सुनाई गई. उस वक्त गोली चलाने वाले जफर के साथ ये पांचों जवान वहां मौजूद थे. उन्होंने सरफराज शाह की पिटाई की थी. तब एक नागरिक ने शाह पर खुद को लूटने का आरोप लगाया था और वही उसे फौजियों तक लाया था. उस नागरिक को भी उम्र कैद दी गई है. इन सभी को आदेश दिया गया है कि एक एक लाख रुपया पीड़ित के परिवार को अदा करें.
इस सनसनीखेज मामले की सुनवाई बेहद तेज गति से हुई. घटना के कुछ हफ्तों के भीतर ही सात लोगों को आरोपी बनाया गया. 29 जून को उन पर कत्ल और आतंकवाद के आरोप लगाए गए. इस फैसले का सरकारी वकीलों और पीड़ित के परिवार ने स्वागत किया है. हालांकि बचाव पक्ष ने ऊपरी अदालत में अपील की बात कही है.
सरकारी वकील मोहम्मद खान बुरिरो ने कहा, "यह ऐतिहासिक फैसला है. इससे जाहिर होता है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. संस्थागत तौर पर तो रेंजर्स इस कत्ल में शामिल नहीं थे. मुकदमे के दौरान यह साबित हुआ कि यह दोषियों का ही काम था."
सरफराज शाह के भाई सालिक शाह ने भी फैसले पर राहत जताई. उन्होंने कहा, "मेरे परिवार को बहुत तसल्ली मिली है. हमें न्याय मिल गया है."
भयानक विडियो
पाकिस्तान में इस घटना की इतनी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी कि सरकार ने प्रांत के पुलिस और रेंजर्स प्रमुख को फौरन पद से हटा दिया. घटना का विडियो देखकर उसकी भयावहता का पता चलता है. विडियो में हल्के नीले रंग की कमीज और काली पैंट पहने एक निहत्था युवक नजर आता है. उसे कुछ रेंजर्स बेरहमी से पीट रहे हैं. वह गिड़गिड़ा कर छोड़ देने की गुहार लगा रहा है. फिर अचानक गोली चलने की आवाज आती है और सब पीछे हट जाते हैं. युवक चिल्लाता हुआ सड़क पर गिर जाता है. वह तड़पने लगता है. उसकी कराहटें साफ सुनाई देती हैं.
लेकिन फौजियों का गुस्सा कम नहीं होता. वे अब भी चिल्ला रहे हैं. युवक मदद के लिए पुकार रहा है. वह यह कहता भी सुनाई देता है कि यारो अब मुझे अस्पताल तो पहुंचा दो. युवक की पैंट खून से भीगती साफ नजर आती है. उसके शरीर से खून की धार बह निकली है जिससे सड़क लाल हो रही है. बीच बीच में वह उठकर बैठता है. खड़ा होने की कोशिश करता है. लेकिन धीरे धीरे उसकी ताकत कम हो रही है. उसकी आवाज धीमी पड़ती जा रही है. और फिर धीरे धीरे उसकी आवाज गुम हो जाती है. वह ठंडा पड़ जाता है. उसके शरीर में हरकत बंद हो जाती है. खून से लाल हो चुकी सड़क पर बस एक शरीर रह जाता है.
कत्ल का शहर कराची
विडियो में कहीं दिखाई नहीं देता कि शाह के पास हथियार था. उसके बावजूद रेंजर्स के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक ने दावा किया था कि शाह के पास गैर लाइसेंसी हथियार था.
पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी कराची हिंसाग्रस्त शहर है. वहां पिछले तीन साल में सैकड़ों लोगों की जानें जा चुकी हैं. इस वजह से सरकार ने वहां अर्धसैनिक बल तैनात कर रखे हैं. कराची और उसके आसपास 10 हजार से ज्यादा अर्धसैनिक बल तैनात रहते हैं. लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन सैनिकों को नागरिक क्षेत्रों में काम करने की ट्रेनिंग हासिल नहीं है.
वैसे पाकिस्तान में किसी फौजी को मौत की सजा का यह पहला मामला नहीं है. 1992 में कोर्ट मार्शल के जरिए कैप्टन अरशद जमील को मौत की सजा सुनाई गई थी.तब 15 फौजियों का कोर्ट मार्शल हुआ था. उन पर हैदराबाद जिले एक जमीन विवाद को लेकर एक परिवार के नौ सदस्यों को कत्ल कर देने का जुर्म साबित हुआ था. जमील के बाकी साथी नॉन कमिशंड अफसर थे. उन्हें उम्र कैद दी गई. जमील को 1996 में फांसी दे दी गई.
मौत के इंतजार में हजारों
पाकिस्तान में मौत की सजा तो दी जाती है लेकिन उस पर अमल होने में बहुत वक्त लगता है. इसकी वजह अपील की लंबी प्रक्रिया है. इसलिए मौत की सजा पाए और सजा पर अमल किए गए मामलों की तादाद में बहुत फर्क है. एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक 2007 से 2010 के बीच 1184 लोगों को मौत की सजा दी गई. लेकिन अमल 171 सजाओं पर ही हुआ.
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले अंसार बर्नी वेलफेयर ट्रस्ट के सरीम बर्नी का कहना है, "पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है जहां इतनी बड़ी तादाद में लोग मौत का इंतजार कर रहे हैं. आठ हजार से ज्यादा लोग मौत की राह पर खड़े हैं. उनमें से कुछ तो 20-20 साल से इंतजार कर रहे हैं क्योंकि उनकी सजाओं पर फैसला नहीं हुआ है."
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः एन रंजन