विरोध के बीच परमाणु कचरे से लदी ट्रेन जर्मनी पहुंची
२६ नवम्बर २०११150 टन परमाणु कचरे से लदी मालगाड़ी शुक्रवार को फ्रांस से जर्मनी की सीमा में प्रवेश कर गई. एंटी न्यूक्लियर कार्यकर्ताओं के विरोध की वजह से ट्रेन को 24 घंटे तक फ्रांस में रोके रखा गया. रात में सुरक्षाकर्मियों की भारी मौजूदगी में ट्रेन जर्मनी के लोअर सैक्सनी प्रांत में दाखिल हुई. इस दौरान रेलेवे ट्रैक पर 200 प्रदर्शनकारी जमा थे.
प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर बोतलें और पेंट बम भी फेंके. हालांकि पुलिस का कहना है कि पटरी साफ करने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
परमाणु विरोधी संगठन आउसेसट्राहल्ट के प्रवक्ता योखेन स्टा का कहना है कि आगे भी ट्रेन को रोकने के कई प्रयास किए जाएंगे. ट्रेन पश्चिमोत्तर जर्मनी के गोरलेबेन जा रही है. गोरलेबन में अस्थाई भंडारण केंद्र बनाया गया है. स्टा कहते हैं, "लोग ट्रैक और सड़कों को बंद करेंगे. हम नहीं चाहते कि बात आगे बढ़े. हम चाहते हैं कि पुलिस लोगों के साथ समझदारी और सही ढंग से पेश आए."
मालगाड़ी में रेडियोधर्मी विकिरण वाले 11 कंटेनर हैं. मालगाड़ी को सही सलामत मंजिल तक पहुंचाने के लिए 19,000 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है. लोअर सैक्सनी में शनिवार सुबह भी लोगों ने प्रदर्शन किए. प्रदर्शनकारियों ने रेलवे क्रॉसिंग पर बड़े बड़े पत्थर रख दिए. प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए पुलिस ने वाटर कैनन का इस्तेमाल भी किया. मालगाड़ी के रास्ते के रास्ते में आने वाले अन्य राज्यों में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हो रहे हैं.
फ्रांस में जर्मनी के परमाणु कचरे की दोबारा प्रोसेसिंग होती है, इस प्रकिया को रिप्रोसेसिंग कहा जाता है. रिप्रोसेसिंग के बाद कचरे का फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है. जर्मन सरकार 2022 तक सारे परमाणु बिजलीघर बंद करने का फैसला कर चुकी है. इस वजह से जर्मनी आखिरी बार रेडियोधर्मी कचरा ले रहा है.
2012 से जर्मनी रिप्रोसेसिंग के लिए परमाणु कचरा फ्रांस नहीं भेजेगा. मौजूदा खेप को जर्मनी भंडारगृह में रखेगा और इसी का इस्तेमाल करेगा. रिप्रोसेसिंग के दौरान नाभिकीय कचरे से प्लूटोनियम और यूरेनियम तत्व निकाल लिए जाते हैं लेकिन इसके बावजूद कचरे में रेडियोधर्मिता बनी रहती है. प्लूटोनियम का इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने में होता है. वहीं प्लूटोनियम और यूरेनियम निकालने के बाद परमाणु कचरे का ऊर्जा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
जर्मनी के एंटी न्यूक्लियर आंदोलन को यूरोप में सबसे बड़ा माना जाता है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि ट्रेन जिस रास्ते से गुजरेगी वहां के स्थानीय लोग खतरे की जद में रहेंगी. विरोध करने वालों का तर्क है कि अगर यात्रा के दौरान कोई हादसा या हमला हुआ तो स्थानीय लोगों और पर्यावरण का क्या होगा.
रिपोर्ट: एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स/ओ सिंह
संपादन: एन रंजन