विलुप्त होने के कगार पर इरावाडी डॉल्फिन
१७ अगस्त २०११मेकांग नदी में पाई जाने वाली इरावाडी डॉल्फिन की आबादी करीब 85 है. डॉल्फिन के बच्चों की संख्या कम होती जा रही है. पर्यावरण संगठन वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) ने संकेत दिए हैं कि इरावाडी डॉल्फिन के विलुप्त होने का खतरा है. इरावाडी डॉल्फिन 190 किलोमीटर के इलाके में पाई जाती हैं.
मछली पकड़ने वाले जाल का इस्तेमाल या धमाका, जहर और बिजली के प्रयोग से मछली पकड़ने से डॉल्फिन की संख्या तेजी से घट रही है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के मुताबिक 2007 और 2010 में किए गए सर्वे से पता चलता है कि डॉल्फिन की आबादी तेजी से घट रही है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के फ्रेश वॉटर प्रोग्राम के निदेशक ली लिफेंग ने एक बयान में कहा, "ऐसे मजबूत संकेत हैं कि कुछ ही जवान जीव वयस्क होने तक बच पाते हैं. बूढ़ी डॉल्फिन के मरने के बाद उनकी जगह जवान डॉल्फिन नहीं आ पा रही हैं. छोटी आबादी वाली यह डॉल्फिन प्रजाति जोखिम में हैं क्योंकि यह पहले से ही कम संख्या में है. हम डॉल्फिन के भविष्य को लेकर चिंतित हैं."
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का कहना है कि शोध से पता चलता है कि लाओस और कंबोडिया की सीमा के बीच डॉल्फिन की संख्या 7 या 8 के ही करीब हैं. ऐसा इस तथ्य के बावजूद है कि दोनों ही देशों में डॉल्फिन को बचाने के लिए कानून है.
डॉल्फिन को बचाने के लिए पर्यावरण संगठन ने कंबोडिया से स्पष्ट कानूनी ढांचा बनाने की वकालत की है. उसने कहा है कि अगर जरूरत पड़े तो मछली पकड़ने के लिए जाल के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दे. ली ने कहा, "मेकांग नदी में प्रतिष्ठित डॉल्फिन को बचाने के लिए सबको मिलजुलकर कार्य करना चाहिए. डॉल्फिन को बचाने का यह अच्छा मौका है."
एक जमाने में डॉल्फिन विएतनाम के मेकांग डेल्टा से लेकर कंबोडिया के टोनले साप तक पाई जाती थी. लेकिन तेल के लिए इनका शिकार होने लगा. इरावाडी डॉल्फिन एशिया और दक्षिण-पूर्वी एशिया के तटीय इलाकों में पाई जाती है. यह तीन नदियों में मिलती हैं. म्यांमार की मेकांग, इरावाडी और इंडोनेशिया की महाकाम नदी में.
भारत ने हाल ही में डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया है. सरकार ने गंगा डॉल्फिन को बचाने की मुहिम तेज कर दी है. डॉल्फिन की चर्बी से तैयार होने वाला तेल बेहद कीमती होता है और इसी लालच में शिकारी गंगा डॉल्फिन का शिकार करते हैं. अवैध शिकार की वजह से भारत में इन डॉल्फिनों की संख्या सिर्फ 2000 रह गई है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/आमिर अंसारी
संपादन: महेश झा