शह भी दे सकता हूं, मात भीः आनंद
२५ मई २०१०आनंद ने बुल्गारिया की राजधानी सोफिया में वेसेलिन टोपालोव को 13वीं और आखिरी बाजी में पराजित करके चौथी बार वर्ल्ड शतरंज चैंपियनशिप पर कब्जा किया. वह इस जीत को खास बताते हैं, "आम तौर पर लोग मुझ पर आरोप लगाते हैं कि मुझमें किलर इंस्टिंक्ट नहीं है. लेकिन मेरी चालें बोलती हैं. मैंने लगातार तीसरी बार वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती है. और यह बेहद खास है."
आनंद का दावा है कि उन्होंने अब तक जितने भी मुकाबले खेले हैं, उनमें टोपालोव के खिलाफ यह बाजी सबसे मुश्किल था. उन्होंने कहा कि बुल्गारिया के ग्रैंड मास्टर एक बेहतरीन शतरंज खिलाड़ी हैं. दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी का कहना है, "यह मेरा सबसे मुश्किल मुकाबला था. हर मैच बेहद मुश्किल था. किसी भी गेम को पूरा करने में हमें चार घंटे से कम नहीं लगे. यह एक बेहद तनाव भरा मुकाबला था."
बारहवीं बाजी में दोनों खिलाड़ियों के बीच कोई बात नहीं हुई. आनंद ने कहा, "मुझे पता था कि टोपालोव साथ मुकाबला बराबरी पर नहीं खत्म करना चाहेंगे. हमारे बीच बेहद तनाव भरा मैच हुआ और हमने पूरे मैच के दौरान एक बार भी आपस में बात नहीं की. उन्होंने सिर्फ मैच के बाद ही मुझसे कुछ कहा."
विश्वनाथन आनंद ने इस चैंपियनशिप को पहले के तीन खिताबों से अलग बताते हुए कहा कि पहले वह एक बड़ा अंतर हासिल कर लेते थे और बाद में उन्हें जीतने में ज्यादा मुश्किल नहीं होती थी. लेकिन इस बार मामला आखिरी बाजी तक चलता रहा.
इस बार की चैंपियनशिप में बहुत कुछ पहली बार हुआ. ज्वालामुखी की राख की वजह से आनंद पहली बार चैंपियनशिप के लिए विमान की जगह बस से गए. 1921 के बाद पहली बार फाइनल में कोई रूसी खिलाड़ी नहीं था और पहली बार किसी मुकाबले में पहली बाजी हारने के बाद किसी ने चैंपियनशिप पर कब्जा किया. आनंद कहते हैं, "पहली बार मुझे सभी बाजियां खेलनी पड़ीं. इससे पहले हर बार मुकाबला तय बाजियों से पहले ही खत्म हो जाया करता था."
रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल
संपादनः ओ सिंह