1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

साइबेरिया, मीथेन, जलवायु परिवर्तन, Climate Change, Siberia, Methane

२८ अगस्त २०१०

दुनिया का फ्रीजर कहे जाने वाले साइबेरिया में बर्फ पिघलने से सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन से पृथ्वी के और अधिक गरम होने की आशंका है. पर्माफ्रॉस्ट में दबी मीथेन के बाहर आने से भारी तबाही का डर बढ़ रहा है.

https://p.dw.com/p/Oxsg
साइबेरिया की सर्दीतस्वीर: picture-alliance/dpa

वैज्ञानिकों के अनुसार पिघलती बर्फ से वातावरण में मीथेन गैस की अधिकता से तबाही मच सकती है. रूस के साइबेरिया को दुनिया का सबसे ठंड़ा प्रदेश कहा जाता है. वहां पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की शुरुआत हो चुकी है. इससे उसमें दबी गैसें वातावरण में मिलने लगी हैं. पर्माफ्रॉस्ट बर्फ के नीचे दबी मिट्टी की उस परत को कहते हैं जो कम से कम दो साल तक लगातार शून्य से भी नीचे तापमान में रहती है.
बर्फीली जमीन में छिपी है गैसः साइबेरिया की 80 प्रतिशत भूमि पर्माफ्रॉस्ट जोन में आती है जिसकी गहराई 1 से 1.5 किलोमीटर तक है. इस जमी हुई जमीन की परत में दबे कार्बन जीवाश्मों (मृत जीव व सड़ चुके वनस्पति) की अधिकता से इसमें भारी मात्रा में मीथेन गैस बुलबुलों की शक्ल में जमा हो चुकी है. एक अनुमान के मुताबिक साइबेरिया के येडोमा पर्माफ्रॉस्ट में 500 गीगाटन कार्बन जमा है और मिश्रित पर्माफ्रॉस्ट में 400 गीगाटन कार्बन दबा हुआ है.

यह पर्माफ्रॉस्ट मुख्य तौर पर दो प्रकार का होता है. पहला मिश्रित मिट्टी और काई बहुल आर्द्रभूमि यानी वेटलैंड से बना होता है जो 10,000 साल पुराना हो सकता है. इसमें 50 प्रतिशत तक कार्बन यौगिक होते हैं जो किसी भी मिट्टी के मुकाबले 10 गुना हैं. दूसरा येडोमा कहलाता है और यह पेलिस्टोसिन युग के मिट्टी और बर्फ भंडार होते हैं जो 50-90 प्रतिशत तक बर्फ से बने होते हैं. इसमें कार्बन यौगिक 2 से 5 प्रतिशत तक हो सकते हैं.

Flash-Galerie Wintereinbruch
तस्वीर: AP

पर्माफ्रॉस्ट साइबेरिया में एक लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला है तथा इसमें किसी भी मिट्टी के मुकाबले 10 गुना कार्बन घटक जमे हैं. येडोमा की औसत गहराई 25 मीटर तक है. यहां की बिना जमी मिट्टी में भी लगभग 60 गीगाटन कार्बन घटक हैं. कुल मिलाकर साइबेरिया में 730 गीगाटन कार्बन बर्फ के नीचे या जमीन में दबा है जिसमें लगातार रासायनिक क्रिया के चलते मीथेन गैस बन रही है.

क्या है ग्रीनहाउस इफेक्टः एक निश्चित मात्रा में कार्बन डायऑक्साइड पृथ्वी के लिए फायदेमंद मानी जाती है जो पृथ्वी को ठंडा होने से बचाती है. एक तरह से यह गैस पृथ्वी के लिए कंबल का काम करती है. इसके बिना तापमान 10 से 20 डिग्री तक गिर सकता है. पर अत्यधिक उत्सर्जन से इन गैसों की अधिकता से वातावरण अत्यधिक गर्म हो रहा है जिसे ग्रीनहाउस इफेक्ट कहा जाता है.

गरमाती समस्याः अब सबसे बड़ी समस्या है कि पृथ्वी लगातार गरम हो रही है. आर्कटिक सागर पर फैली बर्फ की चादर हर गरमी में पिछले 20 सालों की तुलना में 20 प्रतिशत तक सिकुड़ चुकी है. वहां पाई जाने वाली ब्लू आइस भी पिघलने लगी है, जो हजारों साल से जमी है. इससे आर्कटिक की बर्फीले चादर पतली होती जा रही हैं. कनाडाई आर्कटिक क्षेत्र में जहाजरानी उद्योग के बढ़ने से भी इन क्षेत्रों में बर्फ पिघलने की दर बढ़ी गई आंकी गई है. जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा और सीधा असर पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में देखा जा सकता है.

Ein Jogger läuft durch Schnee bedeckte Felder im Odenwald
तस्वीर: picture-alliance / Annette Heinze

गरम होता फ्रीजरः आर्कटिक गरम होता जा रहा है और साइबेरिया भी इसका अपवाद नहीं. दुनिया का फ्रीजर कहलाने वाला टुंड्रा प्रदेश अब सफेद से हरा होने लगा है. यहां पर तापमान में पिछले 40 सालों में 0.02 से 0.05 डिग्री सेल्सियस की बढ़त दर्ज की गई. इस रफ्तार से अगर तापमान बढ़ता रहा तो 2050 तक साइबेरिया में तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा.

वातावरण के गर्माने से साइबेरिया की पर्माफ्रॉस्ट पिघलने लगी है, जिससे वहां बड़ी बड़ी झीलें बनने लगी हैं. सैटेलाइट चित्रों से पता चलता है कि साइबेरिया के चेर्स्की क्षेत्र की झीलों का क्षेत्रफल 14 प्रतिशत तक बढ़ गया है. इसी प्रकार साइबेरिया के येडोमा पर्माफ्रॉस्ट जोन में पाई जाने वाली थर्मोकार्स्ट झीलों के क्षेत्र भी 12 प्रतिशत तक का विस्तार देखा गया है.

जब येडोमा पर्माफ्रॉस्ट पिघलेगी तो उसमें मौजूद मिट्टी और कार्बन घटकों से पिघलने से बड़ी मात्रा में मीथेन का उत्सर्जन होगा. पर्माफ्रॉस्ट में जमी मीथेन रासायनिक प्रक्रिया कर बाहर आने के लिए जब पानी की सतह पर आती है तब वे अत्यधिक ठंडे तापमान के कारण बर्फ में बुलबुलों की शक्ल में जम जाती है.

पानी में घुलती आगः अनुसंधान के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि जब इन बुलबुलों को तोड़ा गया तो कई बार घर्षण से झील में से आग की लपटें निकल रही हैं. गौरतलब है कि मीथेन अत्यधिक ज्वलनशील गैस है और साइबेरिया में पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से मीथेन का बड़ी मात्रा में निकलना किसी भयानक संकट को जन्म दे सकता है.

Russland Kamtschatka
तस्वीर: picture-alliance/dpa

अनुसंधान के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि पिछले 30 साल में थर्मोकार्स्ट झीलों से मीथेन उत्सर्जन 58 प्रतिशत बढ़ा है. इसका कारण है कि झीलों के बनने और विस्तारित होने की प्रकिया में अब तक बर्फीली मिट्टी में जमा कार्बन घटक पानी में मिल जाते है और वे सड़ने लगते हैं. इस प्रकिया में मीथेन गैस का निर्माण होता है. इन झीलों की सतह पर गैस के बुलबुलों का निर्माण होने लगता है जिसमें 90 प्रतिशत तक मीथेन गैस होती है.

अब यहां से मीथेन इतनी बड़ी मात्रा में निकल रही है कि बुलबुले इन झीलों को सर्दियों में भी जमने नहीं दे रहे हैं. कई जगहों पर इन बुलबुलों से बने स्याह हॉटस्पॉट देखे जा सकते हैं. 2006 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार पिघलती पर्माफ्रॉस्ट सालाना 4 टेराग्राम मीथेन वातावरण में छोड़ रही है जो किसी भी आद्र क्षेत्र के मुकाबले 63 प्रतिशत ज्यादा है. इसके बहुत ही घातक परिणाम हो सकते हैं क्योकि मीथेन को ग्रीनहाउस गैस माना जाता है जो कार्बन डायऑक्साइड से 23 गुना शक्तिशाली होती है.

विनाश की आशंकाः आशंका है कि साइबेरिया की सारी पर्माफ्रॉस्ट पिघलने पर वातावरण में 50 गीगाटन मीथेन मिल सकती है जो वातावरण में अभी मौजूद मीथेन से 10 गुना ज्यादा है. पर्माफ्रॉस्ट पिघलने के विनाशकारी परिणाम होंगे. अत्यधिक मीथेन निकलने से वातावरण अधिक गरम होगा जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग का बढ़ना तय है.

रिपोर्टः संदीपसिंह सिसोदिया (वेबदुनिया)

संपादनः ए जमाल